रविवार, 10 मार्च 2024

माॅं की याद– दिनाँक १० मार्च २०२४

मैं एक छोटा सा बच्चा था,
तेरी ऊंगली थाम के चलता था,
तू अगर दूर नज़र से होती थी,
तो मैं आँसू आँसूरोता था...!!

एक ख़्वाब का रोशन बस्ता,
तू रोज़ मुझे पहनाती थी,
जब डरता था मैं रातों में,
तू अपने साथ सुलाती थी...!!

माॅं तूने कितने वर्षों तक,
इस फूल को सीॅंचा हाथों से,
जीवन के गहरे भेदों को,
मैं समझा तेरी बातों से...!!

मैं तेरे हाथ के तकिये पर,
अब भी रात को सोता हूॅं,
माॅं मैं एक "नादान" सा बच्चा,
अब भी तेरी याद में रोता हूॅं...!!

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024

राष्ट्रीय महिला दिवस १३ फ़रवरी २०२४

हो नारी तुम, कभी किसी के रोके नहीं रूकती हो,
हे नारी तुम खुद से सभी के दिलों में एक पहचान बनाती हो।।

माँ, बहन और पत्नी हर रूप में ढल जाती हो,
हे नारी तुम हर किरदार बखूबी निभाती हो,
घर हो या बाहर कर्तव्य पथ पर हर जगह साथ निभाती हो,
हे नारी तुम खुद से सभी के दिलों में एक पहचान बनाती हो।।

बनी अगर माॅं तो श्वास और प्राण देती हो,
बनी जो बहन अगर तो आदर और मान देती हो,
बन गयी अगर भार्या तो प्यार और सम्मान भरपूर देती हो,
हे नारी तुम खुद से सभी के दिलों में एक पहचान बनाती हो।।

उड़ने को आकाश में हौंसलों के पंख फैलाती हो,
चाह लेती हो जो वो हमेशा करके ही दिखा देती हो,
हालातों से लड़कर सपनों को साकार बना देती हों,
हे नारी तुम खुद से सभी के दिलों में एक पहचान बनाती हो।।

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

अंग्रेज़ी नव वर्ष क्यों मनायें? दिनाँक २६ जनवरी २०२४

कॉपी/पेस्ट कविता कुटुम्ब एप से

_*🙏अपना नववर्ष मनाएंगे🙏*_

*हवा लगी पश्चिम की*
*सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।*

*ईस्वी सन तो याद रहा ,*
*पर अपना संवत्सर भूल गए ।।*

*चारों तरफ नए साल का ,*
*ऐसा  मचा है हो-हल्ला ।*

*बेगानी शादी में नाचे ,*
*जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।*

*धरती ठिठुर रही सर्दी से ,*
*घना कुहासा छाया है ।*

*कैसा ये नववर्ष है ,* 
*जिससे सूरज भी शरमाया है ।।*

*सूनी है पेड़ों की डालें ,* 
*फूल नहीं हैं उपवन में ।*

*पर्वत ढके बर्फ से सारे ,* 
*रंग कहां है जीवन में ।।*
👇👇
*बाट जोह रही सारी प्रकृति ,* 
*आतुरता से फागुन का ।*

*जैसे रस्ता देख रही हो ,* 
*सजनी अपने साजन का ।।*

*अभी ना उल्लासित हो इतने ,* 
*आई अभी बहार नहीं ।*

*हम अपना नववर्ष मनाएंगे ,* 
*न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।*

*लिए बहारें आँचल में ,*
*जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।*

*फूलों का श्रृंगार करके ,* 
*धरती दुल्हन बन जाएगी ।।*

*मौसम बड़ा सुहाना होगा ,*
*दिल सबके खिल जाएँगे ।*

*झूमेंगी फसलें खेतों में ,* 
*हम गीत खुशी के गाएँगे ।।*
🚩🚩👇👇🚩🚩
*उठो खुद को पहचानो ,* 
*यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।*

*चिन्ह गुलामी के कंधों पर ,* 
*कबतक ढोते रहोगे तुम ।।*

*अपनी समृद्ध परंपराओं का ,* 
*आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।*

*आर्यवृत के वासी हैं हम ,* 
*अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।*
        🙏🙏🙏🙏


सोमवार, 21 अगस्त 2023

नाग पँचमी दिनाँक २१ अगस्त २०२३

आज नाग पञ्चमी है,
चलो साथी वो बमी ढूँढते है, 
जहाँ विषधर रहते हैं,
वो जगह कहाँ नहीं,
जहाँ विषधर नहीं मिलते,
अपने आस पास देखों और ढूंढों
पहचानों उन नागों को,
जो डसते है अपनी सोच से,
जो नहीं चलते कभी भी सीधी राह,
जरूरी नहीं वह सरीसृप प्रजाति से हों,
वह हर प्राणधारी में हो सकते हैं,
जो आपको काट लेते है अपनी हवस के लिये,
अपनी खीज से चिढ़–चिढ़े अपनी संतुष्टि के लिये,
जो नहीं मिलती उन्हें फिर भी, 
गर्वित महसूस करते है वो स्वयं को,
खुद में खुद दूसरों को डसकर,
विचार रूपी मंथन से मथकर,
भुजंग में इतना दम कहाँ,
जो एक बार में बहुतों को विषाक्त कर दे,
ये नाग सोच रूप से डसते हैं,
आपके अपने, आपके आस–पास ही तो बसते हैं,
इनको पूजना जरूरी तो नहीं लेकिन,
आज के समय में मज़बूरी जरूर है,
ये वो नाग हैं जो आपकी प्रगति पर
कुण्डली मारकर बैठ जाते हैं,
और जब तक नहीं उठते जब तक,
उनको आत्म संतुष्टी न हो जाये,
अथवा उठा न दिये जाये,
दोनों ही रूप में यह स्वास्थ्य व समय
के लिये अच्छे नहीं है,
अच्छा तो यही हैं कि नागों को, 
हाथ जोड़कर अथवा चढ़ावा चढ़ाकर (पूजा अर्चन कर) वहाँ से निकल लो,
इस प्रकार नाग पंचमी का पर्व मना लो।।

स्वरचित :– पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

बुधवार, 28 जून 2023

समझ आदमी के लिये दिनाँक २९ जून २०२३

इस चराचर जगत में प्रभु ने क्या–क्या ना बनाया,
जीव बनायें बहुत से एक जीव उसने आदमी सजाया,
बनाकर पेड़–पौधे जीव–जन्तु, कीड़े और मकोड़े,
समझाया उसने आदमी को विवेक जगाया ना कर्म कर खोड़े,
सृष्टि के क्रम वास्ते मोहमाया सजाकर प्यार की दी भूति,
फिर भी नासमझ रहे बने मतलबी, इंसान बने थोड़े,
ज्ञान दिया विज्ञान दिया चर–चराचर को सजाने हेतु,
मानव तूने लिया रोग लगा सब कुछ हथियाने हेतु,
संग्रह कर तूने दे दी चुनौती उस परम पिता परवरदिगार को,
मानव होकर ही बाँट दिया मानव को कुलषित कर विचार को,
मत मथकर तूने रच डाले ग्रन्थ मनभरकर अभिमान को,
ये तेरा है ये मेरा है कह बाँट दिया अल्लाह और भगवान को,
सब जीव प्यार करें नित्य नियम कर दिनचर्या से,
आदमी तू ही बस राज सजाता मध्य रख खुद के किरदार को,
भूल गया तू उसको जिसने रचा ये सारा जहान   रे,
कर्म कर चाहे जैसे फल है आधार ये समझ अब भी "नादान" रे,
सुधार गति क्यों मारे मति ना रहा न रहेगा कोई सदा इस जहान में,
जैसे कर्म करेगा बन्दे वैसे फल देगा भगवान रे।।

पिता दिनाँक १८ जून २०२३

वहीं ज़मीं मेरी वहीं मेरा आसमान है, 

वहीं है खुदा मेरा वहीं मेरा भगवान है।।

नींद अपनी भुला के सुलाया हमको,

आँसू अपने सुखा के हँसाया हमको,

देकर सर्वस्व जिसने भुलाया स्वयं को, 

पिता ही तो हैं जिसने हर ख़ुशी से मिलाया हमको,

पिता के बिना जिन्दगी विरान है,

सफ़र तन्हा और राह सुनसान है,

वहीं था जमीं मेरी वहीं आसमां है,

वहीं है खुदा मेरा वहीं मेरा भगवान है।।


रविवार, 18 जून 2023

आज की हकीकत (कड़वा सच) दिनाँक १० मई २०२३

सच्चाई की नज़र से ज़मींनीं हकीकत को देखा तो सितारा दूर नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी (स्वार्थ) के आईने से देखा तो मंजर जो दिखाया नज़र आया,
थी बात बस इतनी सी अहम के वजूद से जो मेरा न था मेरा नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी को दूर कर दुनियाँवी नज़र से देखा तो जमीं में मिला पाया।।

छल,बल के साथ जो चला मंज़िल–ए–मुक़ाम  पाने को वो सफ़ेद पॉश नज़र आया,
चाहत थी शिखर छूने की जिसकी वो शिखर पर चढ़ता ही नज़र आया,
सत्यमेव जयते मंत्र के साथ जो चलता रहा भरी धूप में मंजर धुंधला नज़र आया,
राजनीति के परिवेश में सच को कभी जीतता तो कभी हारता नज़र पाया।।

खत्म थी सांसे जिनकी मुर्दा थे शमशान में  बहुत सी ज़िंदा लाशों को चलता पाया,
ज़मीर की बात मत कर "नादान" वास्ते मतलब बहुतों का गिरता नज़र आया,
अहम के वहम से भरी दुनियाँ में मैं ही मैं बाक़ी थी बाकि ख़्वाब नज़र आया,
झूठ बिकता रहा सरे बाज़ार सच्चाई के आईने को काला नज़र पाया ।।