बुधवार, 15 अप्रैल 2015

प्यार अब कहाँ है, १५ अप्रैल २०१५

प्यार आज मतलबी,
फसाना हो गया,
जज्बात छोड़कर,
धनेन्द्र का ठिकाना हो गया।
क्यों बैठा है डोर को पकड़े,
पतंग का अब हवाओं में,
आना जान जो हो गया।
'नादान' तू अब भी संभल जा,
प्यार के परिंदों का छप्पर छोड़,
महलों का आशियाना हो गया।
शुभरात्री शुभरात्री शुभरात्री ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏