शनिवार, 20 सितंबर 2014

सलाह-ए-इश्क २१ सितम्बर २०१४

क्यूँ झुकाकर नजरें मुस्कराकर देखते हो,
नजर में रह जाओगे या नज़र में आ जाओगे।

तकते रहे यूँ ही अगर दरम्यान-ए-शख्सियतों के,
बद में आ जाओगे या बदनाम हो जाओगे।

साथी मिल भी गये आपको शोहरत के सहारे,
जरूरी नही उनसे वफा पाओगे या जफा पाओगे,

मंजिल कहाँ मिलती है सबको इश्क के डगर में,
सफ़र में आ जाओगे या सफर मे ही रह जाओगे।

दुश्मन रहा है जमाना सदा मौहब्बत के नुमाईन्दों का,
थककर सो जाओगे जंग में या सुला दिये जाओगे।

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

हाल ए दिल १८ सितम्बर २०१४

जीना हमारा नश्वर हो आया,
तेरी वफा कि कसम याद आ गयी,
रात ज्यों ज्यों कहरने लगी,
त्यों त्यों यादों कि महक चहकने लगी,
तेरी यादों की कसक इस कदर बढी,
जैसे बढ़ती है इंतजार की घडी,
जब कहर सहा ना गया तेरी याद का,
कलम चली इस तरह कि गजल हो गयी,
तू आये ना आये ये तेरी सदा है,
यादों मे रहेंगी तू ये मेरी कदा हो गयी,
हाल देखकर मेरा दोस्त ने पूछ लिया,
किस बेवफा के कारण तेरी ये फिजा़ हो गयी,
नाम ना तेरा ले सका तोहीन प्यार की होती,
समझा दिया उसको हाल मे बीमारी दिल की हो गयी।

रविवार, 14 सितंबर 2014

हिन्दी दिवस

हिन्दी है भाषा मेरी हिन्दी मेरा अभिमान।।
हिन्दी से है भाषा के माथे पर बिंदियाँ,
हिन्द वतन है मेरा हिन्दी भाषा का श्रंगार,
हिन्दी में सीखा अक्षर ज्ञान हिन्दी है भाषा विज्ञान,
हिन्दी में कविता मेरी हिन्दी में बस्ती है जान,
हिन्दी के ह में ना लगे हलन्त ये दुनिया को दिखलाना है।
हिन्दी बने विश्व कि भाषा ये स्वप्न है मेरे संज्ञान,
हिन्दी है भाषा मेरी हिन्दी मेरा अभिमान।।

शनिवार, 6 सितंबर 2014

वह एक है

जर्रे जर्रे  में नूर खुदा का और कण-कण में बसते भगवान।
उसी मिट्टी में कृष्ण जन्मे और उसी में जन्मे रहमान।
सभी बने जब तत्व पाँच से जल,मिट्टी,अग्नि,वायु और पाँचवा आसमान।
फिर इंसानियत को क्यूँ भूल गये अरे नादाँ इंसान।
रूह कहो या कहो आत्मा बोध एक है बताते है विद्वान।
मजहबी शब्दों में फिर क्यों बाँट दिये वही खुदा वही भगवान।
वह एक है वह नेक है जिसने रचा जहान,
पूजा कर रिझा रहे,जिसे हिन्दू और इबादत कर मुसलमान।
ना देखा उसे मंदिर मे ना पाया मस्जिद मे ढूँढ़ मरा नादान।
जर्रे जर्रे  में नूर खुदा का और कण-कण में बसते भगवान।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

मेरे दोहे

०५ सितम्बर २०१४

विद्यालय में नित जाते और ना करते विद्या दान,
वह गुरु कैसे भये जिनका पैसा है भगवान।।

गुरुओं की आज लाटरी पंरपरा हुई अवसान,
सरकारी जेब पर नजर रखें और राजनीति है काम।।

गुरु पंरपरा धूसित भयी शिक्षा भयी व्यापार,
स्कूल बनाओ या शिक्षक बनो समझो बेडा पार।।

गुरु नाम है दाता का विद्या का करे जो दान,
कलंक लगाये जो इस नाम को समझो वह आशाराम।।

गुरु बनकर जो गिर गये कुलषित करे नाम को बनकर के चंडाल,
नाम ना लीजो दया भाव का फाँसी दो तत्काल।।

ज्ञानी पुरुष वह है जिनका शील सुभाय,
कम बोले(वह) ज्यादा तोले(लोग) और अहसास(विरोधियों को) दे कराय।।

जो लोग करत है मीठी बाते और भीतर रखते घात,
नज़र लगाते जाल बिछाते लुका छिपी उनकी लोमड़ी वाली जात।।

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

शिक्षक (गुरु) ०५ सितम्बर २०१४

शिक्षक दिवस है आज जरा भान करें,
गुरु पूजनीय गुरु वंदनीय आओ इनका सम्मान करें।।

गुरु ज्ञान सिखलाते,अच्छे बुरे मे भेद बताते,
जीवन बोध कराते आओ उनका सम्मान करे।।

शिक्षा है मूल मंत्र, जीवन का आधार तंत्र,
बिन शिक्षक कैसे मिलती आओ उनका गुणगान करें।।

वेद पढे़ कुरान पढे़ चाहे बाईबिल या रामायण पढे़,
अक्षर ज्ञान दिया गुरु ने आओ उनका व्याख्यान करें।।

जीवन का आधार गुरु हैं पूजा का सार गुरु है,
मेरे शिक्षक मेरे गुरु है आओ इनका गुणगान करें।।

मेरे जीवन के तीन स्तम्भ मात-पिता और गुरु है,
प्रथम ज्ञान दिया मात-पिता ने दूजे भगवान गुरु है।।

मात-पिता ने दिया स्वर ज्ञान जीवन विज्ञान गुरु ने,
शिक्षा दी जिसने दीक्षा दी आओ उनको नमन करे।।

बुधवार, 3 सितंबर 2014

अपनी व्यथा ०४ सितम्बर २०१४

कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
बचपन तो बचपन होता है सुना था,
सब ज्ञान बोध से अनजाना,
प्यार-दुलार था सब कुछ जिसका खजाना,
ना मिला खजाना रहा अनजाना सबसे,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
अब हुआ व्यस्क तो हुआ रस्क,
शिक्षा का बोध हुआ सुबोध हुआ,
संसाधन ना साधन कमी रही असाधारण,
साया भी उठा पिता का कारण बना अकारण,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
अब बालक बना पालक परिवार का,
ना साथ किसी अपने साथी या रिश्तेदार का,
सब मतलब कि शिक्षा है यारी और रिश्तेदारी,
सब खुले  खजाने मेहनत के है मुहाने,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
अब योगदान हुआ जब जवान हुआ,
सेना कि ईकाई में अपना भी अंशदान हुआ,
अंश के प्रतिमान से नये संबंधों का निर्माण हुआ,
संबंध बनें मंगल के लगा जीवन सुधरेगा,
संबंध थे विकारित खो गये सपने सुहाने,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
परिवार के पोषण के लिया जीता हूँ,
दुनिया को देख व्यथित रहता हूँ,
किसी को अपना पाता हूँ ना किसी से कहता हूँ,
दोराहे पे खड़ा हूँ जिसकी कोई मंजिल है ना मुहाने,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।

फरियाद विरही की ०३ सितम्बर २०१४

ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
तुझ बिन सब सूना- सूना लगता है।।
घर का आँगन, खेत खलियारा,
कल तक था जो मुझको प्यारा,
सब बेगाना लगता है,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
कल तक हरी-भरी थी मेरे जीवन कि बगिया,
आज वीरान है जीवन की नगरिया,
कैसे सहूँ ये अकेलापन,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
ऋतुओं के मेले भी मुझको अब खलते है,
दिन के उजाले अमावस की रात लगते है,
अब मान भी जाओ,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
अगर तुम ना आये तो मै जी ना पाऊँगा,
कैसे कहूँ कि तुम बिन मै रह ना पाऊँगा,
एक बार खता तो बता जा,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
अब साँस अटकी है कोई तुम मे,
अब अन्तिम बेला है जीवन की,
मुक्ति में तो साथ निभा जा,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।