इस निरीह दुनिया मे कौन किसी का होता है,
चिता की वेदी पर दोस्त समय पूछ रहा होता है,
माटी को माटी में मिलने में,समय लगेगा कितना,
अग्नि में अग्नि मिल चलें,जितना जल्दी हो सके उतना,
वन भरा है वृक्षों से,तना लगा ना कुटिया में,
ये अपना है सपना है,जो छोड़ चला गया दुनियाँ से,
यहाँ भरम क्यों पाले है,लोग बड़े मत वाले है,
धर्म-कर्म कुछ ना समझे बस बहम को पाले है,
समय उसी का होता है,जो चल रहा अकेला होता है,
कलम उठाता नही कर से,लिख रहा इतिहास होता है,
उकेर कर सूत्र जीवन के नव मार्ग सजाता जा,
डगर कठिन होती है जितनी,निकट प्रभु उतना होता है,
"नादान" समझता है बुरा किया उसने ऐसा कर,
समझ कौन सका लीला उसकी,अतंतः शिक्षक की मार का फल अच्छा होता है।।
बुधवार, 8 नवंबर 2017
प्रभु बिन कौन किसी का दिनाँक ०८ नवम्बर २०१७
सदस्यता लें
संदेश (Atom)