शनिवार, 16 मई 2015

अदृश्य बेईमान १७ मई २०१५

देखें बहुत ईमानदार, नहीं मिले ईमान वाले,
जो हुये चर्चित जितने, वो उतने बडे हुये ईमान वाले।।

कई देखें है साहबान, रु एक तन्ख्वाह लेते,
गाँव में फांके थे कल, आज शहर में महलों वाले।।

जिन्होंने लिये सर्टिफिकेट उम्र भर, ईमानदारी के,
टेबल के नीचे मिलें हाथ उनके, ईमान बेचने वाले।।

खाली है खातों में जो,सफेद कुर्ते या सूट-बूट में है वो,
शायद काली कमाई से है वो, आज कोठी-बंगलो वाले।।

एन.जी.ओ या धर्मार्थ चलाते है जो, गरीबों के वास्तों,
काटकर हक मुफलिसों के, शौक पाले है रहीसों वाले।।