मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

शर्म, दिनाँक २३ फरवरी २०२२

न देखिये आस-पास कुफ़्र न देखकर विनाश कीजिये,
उठा जो आचरण दिया ओर उठाकर विकास कीजिये।।
बड़ी मेहनत की थी सदियों की एहसास-ए-इज्ज़त सजाने में,
बनाकर जगह थेकली की, लगाकर न फिर नुमाइश कीजिये ।।
गिरकर न नज़रों से खत्म करो, अदब के खजाने को,
बन्दगी न करो न सही, शर्म है गहना तो शर्म कीजिये ।।

खानदान की कीमत पता चलती है हुस्न-ए-सलूक से,

अदब का हर पहलू इससे है, नजरों में थोड़ी हया कीजिये ।।

मिलती नही मन्जिल में बा-वफ़ा अब हर मुसाफ़िर से,
आजकल गुरबत में है "नादान" जरा ईनायत कीजिये ।।