शनिवार, 30 अगस्त 2014

प्रीत ना होती जग में ३० अगस्त २०१४

प्रीत न होती जग में क्या हो जाता,
ना बनते मीत जग सूना हो जाता।
या विश्वदेव कुटम्बकम का नारा सार्थक हो जाता,
प्रीत ना होती जग मे क्या हो जाता।।
ना बंधते बंधन कसमों के,
प्यार वफा जैसे शब्दों के,
ना तडपन होती मन में,
ना धड़कन बढ़ती दिल में,
ना होती जग में हँसाई,
ना होती कोई रूसवाई,
ना बनती कोई बातें,
ना होते रिश्तों के धागे,
ना होता सजना संवरना,
ना होता बनना बिगड़ना,
ना दिल में चाहत होती,
ममता भी ना होती सीनों में,
निर्जीव सी दुनिया होती,
पर जीवन सजीव हो जाता,
निर्जीव दुनिया में अपना सपना हो जाता,
क्योंकि ना मतलब होता मतलब का,
जो होता तेरा वो मेरा हो जाता,
ना कोई कहता मेरा सब सबका हो जाता,
ना होता फसाद धर्म नाम पर,
जाति होती बस मानव नाम पर,
ना होता सीमा का अतिक्रमण,
स्वछन्द होता विश्व भ्रमण,
होती सबको एक ही आशा,
सब समझते प्यार की भाषा,
नादान भी जग में जी पाता,
सपना है अपना सार्थक हो जाता,
ना बनते मीत जग सूना हो जाता।
या विश्वदेव कुटम्बकम का नारा सार्थक हो जाता,
प्रीत ना होती जग मे क्या हो जाता।।