तीन तलाक
जिन्दगी गमों का सागर हो गयी,
जबसे तुमने दिल से निकाला,
खुशियाँ जिन्दगी की काफ़ूर हो गयी।।
ये विरासत थी हस्तियाँ बनाने की,
अरमानों के सपने सजाने की,
वो हँसी रात की अश्रुयों में विलीन हो गयी।।
जिन आँखों ने वात्सल्य निहारा था,
हुयी अकेली सायें की परछाई बिन जब से,
आज उनकी आत्मा क्षीण हो गयी।।
गिरी जो गाज बेटी की अस्मत पर नैन पथरीले भये,
जिन्दगी दुश्वार हो गयी तेरे तीन शब्दों से,
अप्सरा थी उस रात जो अब कैसे मलीन हो गयी।।
ये कैसा धर्म है कैसी शरीयत का कैसा कानून,
जो जुल्म की देता इजाजत आत्मा का करता खून,
ऐ वासना के रहनुमाओं क्यों बुद्धि मलीन हो गयी।।