गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

अलविदा पुरातन 31 दिसंबर 2015

बीत गया जो बीत गया,वो समझो एक सपना है,
आगे देखो मंजिल है बाकि,जो शेष है वही अपना है||

क्या खोया क्या पाया हमने,हिसाब ये इतिहास करेगा,
कर्तव्यबोध से जो मुकाम, भविष्य मे यक्ष दिखना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||1|

रच रहे है जो आज नींव,कल के स्वपन सजाने को,
कमी रह गयी जो बुनियादों में,उसको दूर कल करना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||2||

बन गया जो विक्षोभ यहाँ पर,कलंकित हुई जिससे मानव जाति,
बन गयी जो दीवार यहाँ पे,चूक हुयी कहाँ उसका पता लगाना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||3||

चूके थे जिस छोर पे हम, उस पर ध्यान लगाना है,
शिक्षा की अलख जगा जगाकर,मन का भेद मिटा उसको दूर गिराना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||4||

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

मध्य वर्ग व किस्मत। दिनाँक 09 जौलाई 2015

यह कविता मध्य वर्गीय इंसान की व्यथा पर आधारित है जो किस्मत के हाथों मेहनत के वावजूद भी ऊपर नही उठ पता है उसकी व्यथा को महसूस कर चंद शब्द लिखने की कोशिश की है।

जाने क्यों जी रहा है,ये जहर क्यों पी रहा हैं।
अपने आप से अपने को छलता हैं,
चुपचाप ही आहें भरता हैं,
न किसी से कहता हैं,हरदम सोच में रहता हैं
मेरा भी कोई अपना हो, सच ये मेरा सपना हो,
पता नहीं कौन सा अभिशाप हैं,
कर्म नेक है मेहनत भी विशेष हैं,
सुख तो केवल आस हैं, फल नहीँ पास हैं,
चूक कहाँ होती है,
कर्मयोग क्यों निष्फल हुआ जाता हैं,
क्या कर्म क्रमबद्ध हुआ नही जाता हैं,
क्या कर्मयोग को भाग्य दोष सताता हैं,
ये कैसी विडम्बना हैं,
केवल जीवन में कल्पना ही कल्पना हैं,
सम्पूर्ण जीवन जीना मात्र एक सपना हैं,
जीवन जीने को, जीने का सुख पीने को,
केवल बौद्धिकता ही नहिं जरूरी है,
बौद्धिकता के साथ निभाने को,
जीवन सुगम बनाने को,
किस्मत का साथ जरूरी हैं,
दे भाग्य साथ अगर मणिका भी आ जाती है,
बौद्धिकता तो मणिका के आकाओंके चरण दबाती हैं,
द्विज युगलबन्दी भाग्य के नव चाँद सजाती है,
यह बात तो दीगर हैं श्रंखला बदस्तूर जारी हैं,
यह सर्वसंज्ञान है कि कर्म तो प्रधान है,
फिर भी किस्मत महान है,
किस्मत से ही एक पाँच सितारा जीवन जीता हैं,
दूजे संग जन्मा फुटपात का जीवन जीता हैं,
है ऐसा भी एक वर्ग जो न जीता हैं ना मरता है,
ये है विडम्बना किस्मत की,
दोनों के बीच मध्य वर्ग ही पिसता है,
यह वर्ग मध्य है किस्मत का मारा,
छलाजाता है अपनों से फिर भी बीच रहता है,
इज्जत की खातिर सबकुछ सहता है,
समाज में स्थापित करने को,
कर-कर जद्दोजहद जी रहा हैं,
यों हि जहर पी रहा हैं।

शनिवार, 16 मई 2015

अदृश्य बेईमान १७ मई २०१५

देखें बहुत ईमानदार, नहीं मिले ईमान वाले,
जो हुये चर्चित जितने, वो उतने बडे हुये ईमान वाले।।

कई देखें है साहबान, रु एक तन्ख्वाह लेते,
गाँव में फांके थे कल, आज शहर में महलों वाले।।

जिन्होंने लिये सर्टिफिकेट उम्र भर, ईमानदारी के,
टेबल के नीचे मिलें हाथ उनके, ईमान बेचने वाले।।

खाली है खातों में जो,सफेद कुर्ते या सूट-बूट में है वो,
शायद काली कमाई से है वो, आज कोठी-बंगलो वाले।।

एन.जी.ओ या धर्मार्थ चलाते है जो, गरीबों के वास्तों,
काटकर हक मुफलिसों के, शौक पाले है रहीसों वाले।।


सोमवार, 20 अप्रैल 2015

कर्म और सम्बन्ध २० अप्रैल २०१५

मतलबी दुनिया में कौन किसी का होता है,
धोखा वही से मिलता है जहाँ भरोसा होता है।

जिंदगी एक फसाना है वैभवता की होड में,
है सम्बन्ध समाप्त सब लोलुपता कि खोड में।

मोह फसाँ है माया में माया पास सब अपनाते,
कंगाली अगर आ जाये रिश्ते भी है दरक जाते।

जीवन एक रंगमंच है घटनाएँ है नटकार,
हारे तो विलयन जीत गये तो कलाकार।

अरे 'नादान' कर्म का करता जा तू दान,
सफलता में सब अपने विफलता मे होगी पहचान।

माया तो आनी-जानी है परोपकार साथ निभाता है,
होता है महान वही जिसका नाम सबकी जुबा़ँ पर होता है।

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

प्यार अब कहाँ है, १५ अप्रैल २०१५

प्यार आज मतलबी,
फसाना हो गया,
जज्बात छोड़कर,
धनेन्द्र का ठिकाना हो गया।
क्यों बैठा है डोर को पकड़े,
पतंग का अब हवाओं में,
आना जान जो हो गया।
'नादान' तू अब भी संभल जा,
प्यार के परिंदों का छप्पर छोड़,
महलों का आशियाना हो गया।
शुभरात्री शुभरात्री शुभरात्री ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

रविवार, 29 मार्च 2015

कबीरदास दिनांक २९-०३-२०१५

यूँ तो सभी का होता है अवतरण धरा पर ,
और फिर होता है अवसान।
जाने कितने ही संत आये और गये धरा पर,
ना हुआ कोई ना होगा जग में जैसा कबीर महान।।

जन्म हुआ जब इनका कोई निकट नही रहा अपना,
पालन - पोषण मिला टोटे में शिक्षा बनी रही सपना।
सभी धर्मों में चर्चित रहें बन आडम्बर विरोधी,
जात - पात छुआछूत को धतियारा बनकर संस्कृति के आरक्षी।।

क्या हिन्दू क्या मुस्लिम बख्शा नही किसी को सभी को फटकारा,
सभी थे उनके अपने सभी को दिया ज्ञान सहारा।
मूल्य बता गये जीने का सबको जाने सारा जहान,
ना हुआ कोई ना होगा जग में जैसा कबीर महान।।

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

बसंत २४ जनवरी २०१५

ये कैसा बंसत आया रे!
हाहाकार मचा चहुँ ओर,
कुहासा छाया घनघोर,
आरोपों प्रत्यारोंपों का दौर,
मंगल हुआ अमंगल,
ये कैसा बंसत आया रे!
डर लगता है रंगों से भी,
बंसती रंग कि पहचान,
बना दी  राजनीतिक,
राजनीति के कर्मकारो ने,
ये कैसा बंसत आया रे!
विद्वेष कि भाषा पनप रही,
शहर गाँव गलियारो मे,
जहर घोलता है मजहब अब,
मंदिर,मस्जिद,चर्च व गुरुद्वारों में,
ये कैसा बंसत आया रे!
समय कि पुकार सुनो,
आजादी है फिर खतरे मे,
राजनीति के षड्यंत्रों से,
मजहब कि दीवार गिराने,
फिर से अशफाक व बिस्मिल आओ,
जन्मों इस धरा पर,
सर्व समाज बचाओं रे,
ये कैसा बंसत आया रे!
जीवन का सूत्रधार बनो,
फिंरगी सबक मिटाने,
फिर से एक पहचान बनो,
जो आ जायें हर दिन बंसत बहार रे,
हालात-ए-बयाँ मैंने ऐसा गीत गाया रे,
ये कैसा बंसत आया रे!

सरस्वती पूजन कैसे करू २४ जनवरी २०१५

विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।
कल तक मेरे ज्ञान का विश्व लोहा मानता था,
उसको तो जीरो का भान न था,
दशमलव कि पहचान न थी,
कल जिनको हमने ज्ञान दिया,
आज उनसे विज्ञान पाऊँ मैं,
विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।
मेरी संस्कृति मेरी सभ्यता ये दुनिया जानती है,
ये बहुत विरासत है ये भी वो मानती है,
पर चकाचौंध हुई है ज्ञानेन्द्रियाँ मेरी,
भटक गयी मेरी संस्कृति कैसे बतलाऊँ मैं,
विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।
बाल रूप  होता है ज्ञान-ध्यान से अबोध,
ना उसको विद्या बुद्धि का बोध,
होता है सत्य-असत्य परे वो,
इसीलिए भगवान रूप मानते है वो और मै,
पर आज का भगवान रूप बहुत रोता है,
ढाबे और होटल पर प्लेटें धोता है,
देख दुर्दशा उसकी मेरा विवेक भी खोता है,
फिर तू ही बता माँ बुद्धिदायनी,
विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।

बुधवार, 21 जनवरी 2015

जमाना बदल गया।२२ जनवरी २०१५

कहते है लोग जमाना बदल गया,
कैसे समझे कैसे जाने जमाना बदल गया,
वहीं पशु है,है पक्षी वही,
है जंगल के नर भक्षी वही,
वही चाह है इंसा की,
रोटी कपड़ा मकान मंशा वही,
चांदनी है चाँद की वही,
भेदभाव रहित शीतलता पाते सभी,
सूर्य ने ना बदला चोला कभी,
देता है सबको रोशनी पहले जैसी आज भी,
ना बदले तारागण ना बदले देवगण,
ना बदली नक्षत्रों ने चाल,
बस बदला गया है अपना व्यवहार,
आज इंसा की फितरत हो गयी,
भाव शून्य कर मतलबी जिहृवा हो गयी,
रिश्ते नाते सब जाने कहाँ खो गये,
वास्ते मतलब र्दुजन अब सगे हो गये,
जहां मे अब हर इंसा बदल गया,
कहते है लोग जमाना बदल गया,
कैसे समझे कैसे जाने जमाना बदल गया,

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

अनोखी दोस्ती फेसबुक पर २० जनवरी २०१५

ये कैसा है दोस्ताना,
कुछ मित्र अछूत है,
कुछ अछूत मित्र है,
ना करते है बात,
स्वाभाविक है नही मुलाकात,
फिर डर कैसा है,
जो घर कर बैठा है,
मित्र से जो करे बात,
मित्र मीत ना बन जायें,
बातों ही बातों मे,
प्रीत ना हो जाये,
इसलिए ना करते बात,
यहाँ सब मित्र है कहने को,
ना सुबह की नमस्ते,
ना सांझ की शुभता,
ये फेसबुक की दुनिया है,
जब से आयें फेसबुक पर,
ये ही ना समझे ना जाना,
ये कैसा है दोस्ताना।।

बुधवार, 14 जनवरी 2015

पतंग - देश १५ जनवरी २०१५


ना कटे पंतग ना रूके पंतग,
बन विहंग सम उडती रहें,
ज्यों ज्यों डोर चलें मांजे की,
त्यों त्यों खुशी उमड़ती रहें,
आसमान एकसमान है,
पर रंग अनेक है,
क्या तेरी हरी,
क्या मेरी लाल,
क्या उसकी नीली,पीली,
सब साथ उडें मगन हो राह पर,
करें डोर जब मिलकर ढीली,
आओ मिलकर कसम उठाये हम,
अब कभी न काटेंगे हम अपनी पतंग,
ये डोर हो विभोर जब चले,
मस्त होकर पवन भी बह चले,
ये गगन एक है एकसमान उडें,
ये तेरी पतंग मेरी पतंग सबकी पतंग।।

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नूतन वर्ष कैसे मनायें ०१ जनवरी २०१५

आओ नववर्ष मनायें इस तरह,नव सपनों का श्रंगार करें।।
विश्व पूत बन, शांति दूत बन,विश्व शांति का संचार करें।।

नीयत नेक कर, कर्म विशेष कर,
नव शक्ति सृजन कर, नव कीर्ति का मान धरें।।

राष्ट्र प्रबल हो, राज सबल हो भारत भू सिरमौर बनें,
कला हो शिखर पर, मानव शून्य बन कला का भान करें।।

आतंकी आकर तंगी से घिर जायें,स्व भरण हेतु, परिवार पोषण हेतु,
सजग हो सचल दल बन आर्थिक गलीयारा सजायें।।

आडम्बरी नतमस्तक हो जन परिहासों से,धर्म की नींव हो चारित्रिक विचारों से,
हर क्षेत्र हो विजय क्षेत्र, हर यौवन बन कर्म क्षेत्र विजय पथ निर्माण करें।।

आओ नववर्ष मनायें इस तरह,नव सपनों का श्रंगार करें।।
विश्व पूत बन, शांति दूत बन,विश्व शांति का संचार करें।।

जिंदगी क्या से क्या हो गयी ३० दिसम्बर २०१४


जिंदगी ना जाने कहाँ से कहाँ गयी और क्या हो गयी,
देते है दोष जमाने को,अपनो मे दुनिया अब बेगानी हो गयी,
रिश्तों की नींव दरकती है आज मतलबी फसानों पर,
महफिल तो क्या सजे,दोस्तों की दोस्ती जाने कहाँ खो गयी,
वादे और बातें कहाँ कीमत रखती है आज सिक्कों के बाजार में,
चंद यादे है दोस्ती की आज क्रान्ति और कांती के आजार में।।

बदलती दुनिया और हम २८ दिसम्बर २०१५


देखा है दुनिया में हर गिरेबा को बदलते हुये,
"नादान" हूँ शायद इसलिए हर अक्स में अपनापन ढूँढ़ता हूँ ।
बदलते समय के हरपल में इंसानियत का रूख बदलते देखा है,
इस दुनिया के दोस्तों के दस्तूर बदलते देखा है,
आप मिलाये या ना मिलाये,दोस्ती के कदम दोस्त के साथ,
हम ना बदले है ना बदलेंगे कभी, हमने दोस्तों के लिये अपना अक्स उजडते देखा है।

अपने अथवा पराये २१ दिसम्बर २०१४

कैसे बताये तुमको वो अपने थे या पराये।।

एक दोस्त बना अपना,
मिलकर देखा दोनों ने सपना,
रखेंगे एक नींव,
मिले जिससे भारी सीख,
सोचकर चले मंजिल की ओर,
पहुंचेंगे उस छोर,
बढा़ते ही कदम दो,
खायी दोनों ने सौ,
मिलाकर हरकदम साथ हरदम,
मिलकर बनायेंगे सुरमयी सरगम,
छेडेंगे जब वीणा के तार,
सुर हो जायेंगे दो से चार,
सा रे गा मा पा धा नी सा,
संगीत के शब्द सरीखा होगा व्यवहार,
सफर सरल हो जायेगा,
अपना निश्चल प्रेम कहलायेगा,
सोच रहे थे मन ही मन,
होकर के प्रेमालिंगन,
इतने में शोर हुआ,
कुछ को लगा अन्याय घनघोर हुआ,
इज्जत के छलावे में,
गैरों के बहकावे ने,
अपना सपना तोड़ दिया,
पहले पहल लगाकर पहरा,
दिया अपनों ने जख्म था गहरा,
फिर जाती भेद में बता विभेद,
धर्म शास्त्र पर तान दिया,
पर दोनों थे धर्मनिरपेक्ष,
जाती पर भी था आपेक्ष,
दोनों ही मतवाले थे,
धुन के पक्के वाले थे,
जब इतने पर ना बात बनी,
दोनों ने घरौंदा छोड़ दिया,
सबसे नाता तोड़ दिया,
तोड़कर नाता चले जब,
वो फुले ना समाये,
मिलेंगे अब उस दुनिया में,
जहाँ न जात-धर्म ना अपने-पराये,
जिसके कारण तोड़ा नाता कैसे बताये तुमको,
ना समझ आयें कि वो उनके अपने थे या पराये।।