मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

जिज्ञासा - नाम की १० दिसम्बर २०१४।


जी चाहता है कि मै भी नाम कमाऊँ,
जाने मुझको दुनिया सारी मै ऐसी पहचान बनाऊँ।।

यूँ तो नाम है बद-नाम में भी मै इत्तफाक नहीं रखता,
कद मेरा रहे जैसा भी सदैव सर उठाकर जी पाऊँ।।

गर्व करे मेरे सगे-सम्बन्धी मित्र और पितृ भी सारे,
काम करूँ मै सदैव ही ऐसा मात-पिता की शान कहलाऊँ।।

हो ना कभी बुरा किसी का स्वप्न में भी भावना आठो याम रहे,
जीवन सफल बने निज कारण से कर्म ऐसा आधार बनें।।

कल रहूँ ना रहूँ दुनिया में,नाम मेरा सदैव आबाद रहें,
हथियार बनें कलम मेरा और मै सिपाही कहलाऊँ।।

जी चाहता है कि मै भी नाम कमाऊँ,
जाने मुझको दुनिया सारी मै ऐसी पहचान बनाऊँ।।