ये कैसा है दोस्ताना,
कुछ मित्र अछूत है,
कुछ अछूत मित्र है,
ना करते है बात,
स्वाभाविक है नही मुलाकात,
फिर डर कैसा है,
जो घर कर बैठा है,
मित्र से जो करे बात,
मित्र मीत ना बन जायें,
बातों ही बातों मे,
प्रीत ना हो जाये,
इसलिए ना करते बात,
यहाँ सब मित्र है कहने को,
ना सुबह की नमस्ते,
ना सांझ की शुभता,
ये फेसबुक की दुनिया है,
जब से आयें फेसबुक पर,
ये ही ना समझे ना जाना,
ये कैसा है दोस्ताना।।