सोमवार, 21 अगस्त 2023

नाग पँचमी दिनाँक २१ अगस्त २०२३

आज नाग पञ्चमी है,
चलो साथी वो बमी ढूँढते है, 
जहाँ विषधर रहते हैं,
वो जगह कहाँ नहीं,
जहाँ विषधर नहीं मिलते,
अपने आस पास देखों और ढूंढों
पहचानों उन नागों को,
जो डसते है अपनी सोच से,
जो नहीं चलते कभी भी सीधी राह,
जरूरी नहीं वह सरीसृप प्रजाति से हों,
वह हर प्राणधारी में हो सकते हैं,
जो आपको काट लेते है अपनी हवस के लिये,
अपनी खीज से चिढ़–चिढ़े अपनी संतुष्टि के लिये,
जो नहीं मिलती उन्हें फिर भी, 
गर्वित महसूस करते है वो स्वयं को,
खुद में खुद दूसरों को डसकर,
विचार रूपी मंथन से मथकर,
भुजंग में इतना दम कहाँ,
जो एक बार में बहुतों को विषाक्त कर दे,
ये नाग सोच रूप से डसते हैं,
आपके अपने, आपके आस–पास ही तो बसते हैं,
इनको पूजना जरूरी तो नहीं लेकिन,
आज के समय में मज़बूरी जरूर है,
ये वो नाग हैं जो आपकी प्रगति पर
कुण्डली मारकर बैठ जाते हैं,
और जब तक नहीं उठते जब तक,
उनको आत्म संतुष्टी न हो जाये,
अथवा उठा न दिये जाये,
दोनों ही रूप में यह स्वास्थ्य व समय
के लिये अच्छे नहीं है,
अच्छा तो यही हैं कि नागों को, 
हाथ जोड़कर अथवा चढ़ावा चढ़ाकर (पूजा अर्चन कर) वहाँ से निकल लो,
इस प्रकार नाग पंचमी का पर्व मना लो।।

स्वरचित :– पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

बुधवार, 28 जून 2023

समझ आदमी के लिये दिनाँक २९ जून २०२३

इस चराचर जगत में प्रभु ने क्या–क्या ना बनाया,
जीव बनायें बहुत से एक जीव उसने आदमी सजाया,
बनाकर पेड़–पौधे जीव–जन्तु, कीड़े और मकोड़े,
समझाया उसने आदमी को विवेक जगाया ना कर्म कर खोड़े,
सृष्टि के क्रम वास्ते मोहमाया सजाकर प्यार की दी भूति,
फिर भी नासमझ रहे बने मतलबी, इंसान बने थोड़े,
ज्ञान दिया विज्ञान दिया चर–चराचर को सजाने हेतु,
मानव तूने लिया रोग लगा सब कुछ हथियाने हेतु,
संग्रह कर तूने दे दी चुनौती उस परम पिता परवरदिगार को,
मानव होकर ही बाँट दिया मानव को कुलषित कर विचार को,
मत मथकर तूने रच डाले ग्रन्थ मनभरकर अभिमान को,
ये तेरा है ये मेरा है कह बाँट दिया अल्लाह और भगवान को,
सब जीव प्यार करें नित्य नियम कर दिनचर्या से,
आदमी तू ही बस राज सजाता मध्य रख खुद के किरदार को,
भूल गया तू उसको जिसने रचा ये सारा जहान   रे,
कर्म कर चाहे जैसे फल है आधार ये समझ अब भी "नादान" रे,
सुधार गति क्यों मारे मति ना रहा न रहेगा कोई सदा इस जहान में,
जैसे कर्म करेगा बन्दे वैसे फल देगा भगवान रे।।

पिता दिनाँक १८ जून २०२३

वहीं ज़मीं मेरी वहीं मेरा आसमान है, 

वहीं है खुदा मेरा वहीं मेरा भगवान है।।

नींद अपनी भुला के सुलाया हमको,

आँसू अपने सुखा के हँसाया हमको,

देकर सर्वस्व जिसने भुलाया स्वयं को, 

पिता ही तो हैं जिसने हर ख़ुशी से मिलाया हमको,

पिता के बिना जिन्दगी विरान है,

सफ़र तन्हा और राह सुनसान है,

वहीं था जमीं मेरी वहीं आसमां है,

वहीं है खुदा मेरा वहीं मेरा भगवान है।।


रविवार, 18 जून 2023

आज की हकीकत (कड़वा सच) दिनाँक १० मई २०२३

सच्चाई की नज़र से ज़मींनीं हकीकत को देखा तो सितारा दूर नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी (स्वार्थ) के आईने से देखा तो मंजर जो दिखाया नज़र आया,
थी बात बस इतनी सी अहम के वजूद से जो मेरा न था मेरा नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी को दूर कर दुनियाँवी नज़र से देखा तो जमीं में मिला पाया।।

छल,बल के साथ जो चला मंज़िल–ए–मुक़ाम  पाने को वो सफ़ेद पॉश नज़र आया,
चाहत थी शिखर छूने की जिसकी वो शिखर पर चढ़ता ही नज़र आया,
सत्यमेव जयते मंत्र के साथ जो चलता रहा भरी धूप में मंजर धुंधला नज़र आया,
राजनीति के परिवेश में सच को कभी जीतता तो कभी हारता नज़र पाया।।

खत्म थी सांसे जिनकी मुर्दा थे शमशान में  बहुत सी ज़िंदा लाशों को चलता पाया,
ज़मीर की बात मत कर "नादान" वास्ते मतलब बहुतों का गिरता नज़र आया,
अहम के वहम से भरी दुनियाँ में मैं ही मैं बाक़ी थी बाकि ख़्वाब नज़र आया,
झूठ बिकता रहा सरे बाज़ार सच्चाई के आईने को काला नज़र पाया ।।

शनिवार, 3 जून 2023

इन्सान और आदमी दिनाँक ०३ जून २०२३

खुशियाँ कम हैं, अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखों परेशान बहुत है ।।

निकट से देखा तो निकला रेत का घर,
किन्तु दूर से इसकी शान बहुत है ।।

कहते हैं सत्य का कोई मुक़ाबला नहीं,
किन्तु आज झूठ की पहचान बहुत है ।।

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
लेकिन यूँ कहने को इन्सान बहुत हैं ।।

बुधवार, 10 मई 2023

आज की हक़ीक़त (कड़वा सच) दिनाँक १० मई २०२३

सच्चाई की नज़र से ज़मींनीं हकीकत को देखा तो सितारा दूर नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी (स्वार्थ) के आईने से देखा तो मंजर दिखाया नज़र आया,
थी बात बस इतनी सी अहम के वजूद से जो मेरा न था मेरा नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी को दूर कर दुनियाँवी नज़र से देखा तो जमीं में मिला पाया।।

छल,बल के साथ जो चला मंज़िल–ए–मुक़ाम  पाने को वो सफ़ेद पॉश नज़र आया,
चाहत थी शिखर छूने की जिसकी वो शिखर पर चढ़ता ही नज़र आया,
सत्यमेव जयते मंत्र के साथ जो चलता रहा भरी धूप में मंजर धुंधला नज़र आया,
राजनीति के परिवेश में सच को कभी जीतता तो कभी हारता नज़र पाया।।

खत्म थी सांसे जिनकी मुर्दा थे शमशान में  बहुत सी ज़िंदा लाशों को चलता पाया,
ज़मीर की बात मत कर "नादान" वास्ते मतलब बहुतों का गिरता नज़र आया,
अहम के वहम से भरी दुनियाँ में मैं ही मैं बाक़ी थी बाकि ख़्वाब नज़र आया,
झूठ बिकता रहा सरे बाज़ार सच्चाई के आईने को काला नज़र पाया ।।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

किसी के प्यार में दिनाँक १९ जुलाई २०१७

हम तो बताते रहे, वो समझे कहाँ हमारी बात,
वो समझदार थे ज्यादा, हम बेकार जज्बाती थे यार।।

उल्फत में भी उनको सीने में समाये रखा,
प्यार की बाते उनसे यूँ ही कह ना पाये यार।।

जबसे उनसे बात हुई वो अपने से ज्यादा अपने लगने लगे,
मुलाकात का वक्त मुक़र्रर न हुआ वो मुलाकातों में आने लगे यार।।

यूँ हर दम वो साथ है मेरे पर परछाई नजर नही आती,
वो रात बहुत हसीन हुई, जब से सपनों में वो आने लगे यार।।

सोमवार, 24 अप्रैल 2023

चाहत गीत – प्रेमी की चाहत में दिनाँक २२ अप्रैल २०२१

उसके बिन चुप चुप रहना अच्छा लगता है,
खामोशी से एक दर्द को सहना अच्छा लगता है।।

जिस हस्ती की याद में आँसू बरसते हैं,
सामने उसके कुछ ना कहना अच्छा लगता है।।

मिलकर उससे बिछड़ ना जायें डरते रहते हैं, 
इसलिये बस दूर ही रहना अच्छा लगता है।।

जी चाहे सारी खुशियाँ लाकर उसको दे दूँ,
उसके प्यार में सब कुछ खोना अच्छा लगता है।।

उसका मिलना ना मिलना किस्मत की बात है,
पल पल उसकी याद में खोना अच्छा लगता है।।

शनिवार, 18 मार्च 2023

सफ़र एक आईने से दिनॉक १९ मार्च २०२३

सफ़र को तुम भी खड़े थे, हम भी खड़े थे,
दोनों ही चलने को तैयार खड़े थे ।।

सफ़र दोनों का था एक ही जैसा,
दोनों के रास्ते कांटों भरे थे ।।

राहें सफ़र आसान न था दोनों के लिये,
हम प्यार संग चले तुम मतलब साथ चले थे।।

चुनी राह दोनों ने आगे बढ़ने की खातिर,
तुम ही क्यों ? निकले आगे, हम वहीं खड़े थे ।।

निकले जो आगे ध्यान उन्हीं पर था हमारा,
सशक्त हम ज्यादा थे, पर विभीषण तेरे संग चल पड़े थे ।।

देखा जो झाँककर अपने सफ़र को आईने में,
कुछ अपने ही थे जो टांग को खींचे पड़े थे ।।

जिन्दगी की दौड़ से हर बार पाया हमनें ये सबक,
"नादान" थे बड़े संजीदा,तुम मतलबी बड़े थे ।।

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

जिन्दगी एक नजर में दिनॉक १७ मार्च २०२३

कभी इधर गया कभी उधर गया,
जिधर भी गया खराब थे उधर के रास्ते ।।

ढेर था विचारों का, हृदय उमंग भरा था,
न कह सका न सुन सका, मन भरा भरा था।।

शिकवा करता क्या किसी से सभी अपने थे,
बैठा जब भी खाली मन सुलझाने मन के फासले।।

कोशिश बेकार गयी हर बार, मुकम्मल करने की,
संजीदा जब भी हुआ, सुधार के वास्ते।।

चल रही है गाड़ी, ठहर सी गई है जिन्दगी,
चलाने हुनर जब भी निकला, घर के वास्ते।।

गिरा उठा, उठा गिरा, जीने के लिये कई बार मरा,
खड़ा ही पड़ा,हर बार मरा जिन्दगी के वास्ते ।।