बुधवार, 28 जून 2023

समझ आदमी के लिये दिनाँक २९ जून २०२३

इस चराचर जगत में प्रभु ने क्या–क्या ना बनाया,
जीव बनायें बहुत से एक जीव उसने आदमी सजाया,
बनाकर पेड़–पौधे जीव–जन्तु, कीड़े और मकोड़े,
समझाया उसने आदमी को विवेक जगाया ना कर्म कर खोड़े,
सृष्टि के क्रम वास्ते मोहमाया सजाकर प्यार की दी भूति,
फिर भी नासमझ रहे बने मतलबी, इंसान बने थोड़े,
ज्ञान दिया विज्ञान दिया चर–चराचर को सजाने हेतु,
मानव तूने लिया रोग लगा सब कुछ हथियाने हेतु,
संग्रह कर तूने दे दी चुनौती उस परम पिता परवरदिगार को,
मानव होकर ही बाँट दिया मानव को कुलषित कर विचार को,
मत मथकर तूने रच डाले ग्रन्थ मनभरकर अभिमान को,
ये तेरा है ये मेरा है कह बाँट दिया अल्लाह और भगवान को,
सब जीव प्यार करें नित्य नियम कर दिनचर्या से,
आदमी तू ही बस राज सजाता मध्य रख खुद के किरदार को,
भूल गया तू उसको जिसने रचा ये सारा जहान   रे,
कर्म कर चाहे जैसे फल है आधार ये समझ अब भी "नादान" रे,
सुधार गति क्यों मारे मति ना रहा न रहेगा कोई सदा इस जहान में,
जैसे कर्म करेगा बन्दे वैसे फल देगा भगवान रे।।

पिता दिनाँक १८ जून २०२३

वहीं ज़मीं मेरी वहीं मेरा आसमान है, 

वहीं है खुदा मेरा वहीं मेरा भगवान है।।

नींद अपनी भुला के सुलाया हमको,

आँसू अपने सुखा के हँसाया हमको,

देकर सर्वस्व जिसने भुलाया स्वयं को, 

पिता ही तो हैं जिसने हर ख़ुशी से मिलाया हमको,

पिता के बिना जिन्दगी विरान है,

सफ़र तन्हा और राह सुनसान है,

वहीं था जमीं मेरी वहीं आसमां है,

वहीं है खुदा मेरा वहीं मेरा भगवान है।।


रविवार, 18 जून 2023

आज की हकीकत (कड़वा सच) दिनाँक १० मई २०२३

सच्चाई की नज़र से ज़मींनीं हकीकत को देखा तो सितारा दूर नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी (स्वार्थ) के आईने से देखा तो मंजर जो दिखाया नज़र आया,
थी बात बस इतनी सी अहम के वजूद से जो मेरा न था मेरा नज़र आया,
ज़मींनीं बात को खुदी को दूर कर दुनियाँवी नज़र से देखा तो जमीं में मिला पाया।।

छल,बल के साथ जो चला मंज़िल–ए–मुक़ाम  पाने को वो सफ़ेद पॉश नज़र आया,
चाहत थी शिखर छूने की जिसकी वो शिखर पर चढ़ता ही नज़र आया,
सत्यमेव जयते मंत्र के साथ जो चलता रहा भरी धूप में मंजर धुंधला नज़र आया,
राजनीति के परिवेश में सच को कभी जीतता तो कभी हारता नज़र पाया।।

खत्म थी सांसे जिनकी मुर्दा थे शमशान में  बहुत सी ज़िंदा लाशों को चलता पाया,
ज़मीर की बात मत कर "नादान" वास्ते मतलब बहुतों का गिरता नज़र आया,
अहम के वहम से भरी दुनियाँ में मैं ही मैं बाक़ी थी बाकि ख़्वाब नज़र आया,
झूठ बिकता रहा सरे बाज़ार सच्चाई के आईने को काला नज़र पाया ।।

शनिवार, 3 जून 2023

इन्सान और आदमी दिनाँक ०३ जून २०२३

खुशियाँ कम हैं, अरमान बहुत हैं,
जिसे भी देखों परेशान बहुत है ।।

निकट से देखा तो निकला रेत का घर,
किन्तु दूर से इसकी शान बहुत है ।।

कहते हैं सत्य का कोई मुक़ाबला नहीं,
किन्तु आज झूठ की पहचान बहुत है ।।

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी,
लेकिन यूँ कहने को इन्सान बहुत हैं ।।