गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

अलविदा पुरातन 31 दिसंबर 2015

बीत गया जो बीत गया,वो समझो एक सपना है,
आगे देखो मंजिल है बाकि,जो शेष है वही अपना है||

क्या खोया क्या पाया हमने,हिसाब ये इतिहास करेगा,
कर्तव्यबोध से जो मुकाम, भविष्य मे यक्ष दिखना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||1|

रच रहे है जो आज नींव,कल के स्वपन सजाने को,
कमी रह गयी जो बुनियादों में,उसको दूर कल करना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||2||

बन गया जो विक्षोभ यहाँ पर,कलंकित हुई जिससे मानव जाति,
बन गयी जो दीवार यहाँ पे,चूक हुयी कहाँ उसका पता लगाना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||3||

चूके थे जिस छोर पे हम, उस पर ध्यान लगाना है,
शिक्षा की अलख जगा जगाकर,मन का भेद मिटा उसको दूर गिराना है||

बीत गया जो बीत गया.......................||4||