शनिवार, 20 सितंबर 2014

सलाह-ए-इश्क २१ सितम्बर २०१४

क्यूँ झुकाकर नजरें मुस्कराकर देखते हो,
नजर में रह जाओगे या नज़र में आ जाओगे।

तकते रहे यूँ ही अगर दरम्यान-ए-शख्सियतों के,
बद में आ जाओगे या बदनाम हो जाओगे।

साथी मिल भी गये आपको शोहरत के सहारे,
जरूरी नही उनसे वफा पाओगे या जफा पाओगे,

मंजिल कहाँ मिलती है सबको इश्क के डगर में,
सफ़र में आ जाओगे या सफर मे ही रह जाओगे।

दुश्मन रहा है जमाना सदा मौहब्बत के नुमाईन्दों का,
थककर सो जाओगे जंग में या सुला दिये जाओगे।