मंगलवार, 18 नवंबर 2014

परदा १८ नवम्बर २०१४

परदा
छुपे-छुपे परदानशीं से क्यों रहते हो,
परदे में बहुत से पाप छिपे होते है।।

उठाकर परदा नजारा बाहर का देखों,
यहाँ बहुत से चेहरे हसींन रहते है।।

कुछ हसींना अलग इत्तफाक रखती है,
पर परदे में हर हसींना आफताब लगती है।।

शर्म आँखों में नहीं दिल में बसती है,
समझ से उठाकर परदा देखों हया आप जगती है।।

दिल पर गिराकर परदा चेहरों ने बहुतों को लूटा है,
झाँककर जो दिल में देखा अपने बेगानें और बेगानें अपने लगते है।।

शनिवार, 15 नवंबर 2014

प्रभु की महिमा १६ नवम्बर २०१४

१६ नवम्बर २०१४

देखा है तेरे नूर का अजब नजारा,
कहीं सूखा सघन,कहीं प्यार है नजारा।।

सजाने को जहान तूने,क्या-क्या ना बनाया,
पृथ्वी,चाँद,सितारे,सूरज और आकाश बनाया,
सबको एकसा पाठ पढा़या,झिलमिल मिलकर करते है सारे,
तेरा करिश्मा है न्यारा,मन भावन प्यारा,
कहीं सूखा-----------------------------------।।१।।

थार-मरुस्थल और पर्वत सजायें,वन,उपवन और खलिहान सजायें,
कहीं समतल धरती बडी सी झीलें,कहीं गहरा है सागर बनाया,
सागर को भरने को, कल-कल कर बहती हैं नदियाँ,
तूने जीवन का संगीत सजाया, जीवन का संगीत लगे है प्यारा,
कहीं सूखा--------------------------------------।।२।।

चर-चराचर जगत बनाया, जाने कितने जीव बनाये,
पशु-पक्षी, नर-भक्षी, शाकाहारी कीट बनायें,
सबके पोषण हेतू,उनके निर्वासन-निर्वाहन हेतु,
सारी व्यवस्था भर दी, तेरा प्रबंधन सबसे न्यारा,
कहीं सूखा-----------------------------------।।३।।

सबसे अलग तूने इंसान बनाया,जिसमें बुद्धि,बल,विवेक सजाया,
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम,यहूदी,सिख,पारसी,क्रिश्चियन,
ना भेद किया,सबको एकसा देह दिया,इंसानियत का पाठ पढा़या,
फिर क्यों एक-दूजे के दुश्मन,दुखी है "नादान" बेचारा,
कहीं सूखा--------------------------------।।४।।