मैं राह तकता हूँ अक्स के लिये,
मेरा ही साया हो उस शख्स के लिये ।।
झाँककर मैंने खिड़की से देखा,
सूरज चला डूबने अस्त के लिये।।
प्रेम कहाँ जब छलित हो जाये,
वापिस हो मुसाफ़िर उसी ठौर के लिये ।।
कुहासा ना समझा इश्क के फरेब को,
चादर जब हटी तन तक्त लिबास के लिये ।।
भ्रम आज भी लपेटता है ख्वाबों के महल को,
सपनों का जाल था दौरे-ए-इश्क तय लिये ।।
सतर रहा नासमझ वक्त नजाकत तिरछी से,
उसने पाला है इश्क़ "नादान" हलाल के लिये ।।