ना कटे पंतग ना रूके पंतग,
बन विहंग सम उडती रहें,
ज्यों ज्यों डोर चलें मांजे की,
त्यों त्यों खुशी उमड़ती रहें,
आसमान एकसमान है,
पर रंग अनेक है,
क्या तेरी हरी,
क्या मेरी लाल,
क्या उसकी नीली,पीली,
सब साथ उडें मगन हो राह पर,
करें डोर जब मिलकर ढीली,
आओ मिलकर कसम उठाये हम,
अब कभी न काटेंगे हम अपनी पतंग,
ये डोर हो विभोर जब चले,
मस्त होकर पवन भी बह चले,
ये गगन एक है एकसमान उडें,
ये तेरी पतंग मेरी पतंग सबकी पतंग।।