सोमवार, 18 अगस्त 2014

दोस्ती १९ अगस्त २०१४

दोस्त से है ईद दोस्त से दिवाली,
दोस्त से है होली का त्योंहार,
ना महक हो पास दोस्ती की,
तो सब कुछ है बेकार।।

दोस्ती का फूल है सबसे अच्छा,
जो जीवन में खिल जाये,
जीवन हो जाये फूल कि बगिया,
महक चारों ओर बिखर जाये।।

दोस्ती होती है जब मिलते है मन से मन,
तन रहते है दो पर एक हो जाते है मन,
भीड़ पडे जब एक पर विचलित हो दूसरा जाये,
वज्र पडे चाहे जितना पर खुद पर दिल न दोस्त का दुखने पायें।।

दोस्ती सम्बन्ध है प्रेम भाव का,
जो एक बार हो जायें,
है दोस्त वही अच्छा जो,
राह दिखाये आपको,सही गलत मे भेद कराये।।

वह दोस्त दोस्त नहि हो सकता है,
मतलब से हाँ मे हाँ करता है,
वो दोस्ती क्या खाक करेगा,
जो जन - धन पर नजर रखता है।।

सहायता २२ फरवरी २०१४

मत बनो रहबर किसी का,
यहाँ सब मतलब रखते है,
निकल जाये हाथ उसका,
फिर कोई नही है किसी का।

जमाना है खुदगर्जी का,
कोई नहीं है किसी का,
स्वार्थ की सरपरस्ती है,
नाम है सेवादारीं का,

भाई,बहन,बन्धु,सखा,
सब रिश्ते है मतलब के,
मतलब है जबतक उनका,
जुँबा पर हर वक्त नाम उन्हीं का,

मतलब निकल जाते ही,
शेष नहीं कुछ रह जाता,
बन जाती है जिंदगी फसाना,
बस लांछन ही उसमें रह जाता,

मत बनो रहबर किसी का,
यहाँ सब मतलब रखते है,
निकल जाये हाथ उसका,
फिर कोई नही है किसी का।
कापीराईट अधिकार सुरक्षित-
रचियता - पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

व्यथा संरक्षक की ०२ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां एक संरक्षक की जीवन व्यथा है जो एक बेटा-बेटी को पालता है और उनके वयक्तिगत हठ जिसमें उनकी अपनी  भविष्यमयी हानि है से वयथित होकर उनको अपनो से अलग करता है :-

सुमन, सुमन नहीं हैं उस उपवन का,
सीँचाँ है जिसे जिस माली ने,
मौजूँ नहीं सुमन, माली के उस उपवन का।

सोच-सोच पौध जमाया था,
वृक्ष बन सुमन खिलेगा उपवन में,
मन ही मन हर्षाया था,
हर्षयोग बनाने को पौध को सींचाँ,
रोप-रोप पौध एक स्वप्न खींचा,
स्वप्न के अलग-अलग रोप की सोंच को खींचा,
खींच-खींच स्वप्न सोच,मन उलसाया था,
हर्षयोग बना वियोग, जब पौध अकुलाया है,
अकुलायित पौध ने नया रूप आज दिखलाया है,
खिला सुमन मिला नहीं माली को,
सुमन मन हर्षित है पूजा में अर्पण को,
क्रमबद्ध है आज सुमन पूजा के तर्पण को,
तर्पण के अर्पण की माला है चढ़ने को बलिवेदी पर,
है वेदना माली की आज यहीं,
बलिवेदी पर आज सुमन, अन्यत्र की वेदी के,
व्यथित मन माली है, उपवन से मुख मोड़ लिया,
रोपा था जिस पौधे को सुमन की खातिर,
आज हर नाता उससे तोड़ दिया,
सुमन गया उपवन हुआ पराया,
आज साथ नहीं माली से उपवन का।

संघर्ष बच्चे का ०३ अगस्त २०१४

मेरी यह पंक्तियां उस बच्चे पर आधारित हैं जो बचपन से ही प्यार,दुलार,धन और व्यवस्था व विश्वास के अभाव में रहा है किन्तु हिम्मत नहीं हारता और अपनी जिंदगी को समकक्ष समाज के साथ चलाने के लिए संघर्षरत हैं।

जीवन है एक डगरिया बस चलते ही जाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है।।
राह अंधेरी रात घनेरी दीपक लौ नहीं दिखती,
साया न हो साथ तो क्या सपनों को पाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (१)
काँटे है बिछे जिन राहों में, जंगल भी घनेरा है,
जंगल भी बचाना है और फूलों को सजाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (२)
हूँ अकेला भले ही, भले ही राह पथरीली हों,
जवानी हो तराना तो क्या, बचपन से ही बचपन को बचाना हैं,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (३)
जीवन कर्म है चाकरी, चाकरी सुलभ नहीं होती,
अंश के निज बचपन कि खातिर कर्म करते ही जाना हैं,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (४)
कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"


उद्गार सामाजिक चोट से ०४ अगस्त २०१४


मेरी यह पंक्तियां आजकल विभिन्न जगहों पर हो रहे दंगे फसाद से पहुँच रही सामाजिक चोट का उद्  गार है :-

खतरे में हैं आजाद ये भारत, हाय ये कैसी बीमारी,
मानवता हुई दागदार और इंसान हुआ स्वार्थी।।

आलोचक हूँ उन शब्दों का,जो अर्थ लिये हो द्विअर्थी,
बाहर से तो रोशन चेहरा,अन्दर से है मुर्दापरस्ती।१।

भीड़ भरी जनता में,अपनो को खोजता है,
है क्यों परेशान अपनो के लिये,अपने ही तो है घाती।२।

अपने ही हैं जो, अपनो को बाँट रहे,
जाति और धर्म पर अपनो को छाँट रहें।३।

एक जर्रे लालच कि खातिर गिरा है मानव आज,
इंसानियत हुई बदनाम और खत्म हुई इंसान परस्ति।४।

जेब और जेग कि खातिर, जोकि बन गया है,
चूसता है खून अपनो का, मानवता कर दी सस्ती।५।

मानवता हुई दागदार और इंसान हुआ स्वार्थी।।

कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"



अभिव्यक्ति ०५ अगस्त २०१४


मेरी ये पंक्तियां ऐसे व्यक्ति के हालात का चित्रण करती है जो अपनो का सताया हुआ है और विवश हैं :-

कैसे लिखूँ, कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।
जिंदगी एक कहानी है जिंदगानी के सफर की,
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

किस्से लम्बे है ये तेरी मेरी कहानी के,
सोचता हूँ जब बैठकर लिखने को हाल-ए-ब्याँ,
शब्द मिलते नहीं लिखने को सफर में,
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

रिश्ते जो बनाये खुदा ने खून से जोड़कर,
अच्छे निभायें अपनों ने वक्त पर मुँह मोड़कर,
बन्धन तोड़ दिये सारे खून कि निशानी के।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

अपनो ने किया गिल्टी जिसे,गैरों ने सराहा है,
जब ठुकराया अपनों ने परायों ने दिया सहारा है,
बस आज वहीं है अपने कल थे जो पराये मेरी कहानी से।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

मुफलिसी में जी लि जिंदगी अपनों के लिये,
ना रहे घर रहे दर बदर बनाने को विरासत,
जब अपनों ने कि सियासत पन्ने खत्म हुए कहानी के।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।
कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान" 


प्यार के भाव ६ अगस्त २०१४

मेरी यह पंक्तियां एक नवयुवक के उस प्यार के इजहार को इंगित करती है जो अपने प्यार के साथ जिंदगी बिताना चाहता है:-

मुझे मेरे यार प्यार चाहिए,
जिंदगी कर दी तेरे हवाले, बस तेरा ऐतबार चाहिए।

मैंने बितायें है दिन कई सौ तेरी चाह में,
हर पल रहता हूँ खोया-खोया तेरी राह में,
एक पल नजर तू आ जाये और क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।१।

जब से देखा है मैंने तुझको ए दीदार-ए-सनम,
आस तकता हूँ मैं तेरी होगा तेरा करम,
चकोर को मिल जायें चाँद,उसे ओर क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।२।

चाहता हूँ चलना तेरे साथ मेरे हमदम,
अकेला हूँ जिंदगी के सफर में,ना उठते कदम,
अगर साथ हो जायें तेरा मेरे हमनवाँ और क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।३।

दर्शं हो तेरा हर शाम और सवेरे,
बन्धन में बँध जायें कोई हो ऐसा इल्म,
साथ हो जायें तेरे फेरे साथ और क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।४।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"