गुरुवार, 17 अगस्त 2017

अन्जानों में अहम खोजना दिनाँक १८ अगस्त २०१७

अन्जानों के साये में अपनों को खोजता है,
बड़ा बावरा है वो जो इस कदर सोचता है ।।

कौन कहता है गिरते नही जाँबाज जंग-ए-मैदान में,
उसे क्या पता जो मैदान छोड़ स्थान ढूँढता है ।।

लड़खड़ाया सा क्यों है दौरे-ए-जूनून में,
मन्जिल बाकी है अभी, वो नई राह ढूँढता है ।।

रिश्तों की कलाबाजी है मतलब के दौर में,
जिस्म के बाजार में इंसानियत ढूंढता है ।।

वो कालिख जो पुती दाग़ के निशा बाकि है,
वहम के घेरे से सफ़ा दूधि पौशाक ढूँढता है ।।

रूह को मारकर लाश लिये फिरता है,
अहम को जिन्दा रखकर दोस्त ढूँढता है ।।

गफ़लत से बाहर आ "नादान" किरण बाकि है,
किरण से मुँह फेरकर उजाला कहाँ ढूँढता है ।।

अन्जानों के साये में अपनों को खोजता है,
बड़ा बावरा है वो जो इस कदर सोचता है ।।