शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

बसंत २४ जनवरी २०१५

ये कैसा बंसत आया रे!
हाहाकार मचा चहुँ ओर,
कुहासा छाया घनघोर,
आरोपों प्रत्यारोंपों का दौर,
मंगल हुआ अमंगल,
ये कैसा बंसत आया रे!
डर लगता है रंगों से भी,
बंसती रंग कि पहचान,
बना दी  राजनीतिक,
राजनीति के कर्मकारो ने,
ये कैसा बंसत आया रे!
विद्वेष कि भाषा पनप रही,
शहर गाँव गलियारो मे,
जहर घोलता है मजहब अब,
मंदिर,मस्जिद,चर्च व गुरुद्वारों में,
ये कैसा बंसत आया रे!
समय कि पुकार सुनो,
आजादी है फिर खतरे मे,
राजनीति के षड्यंत्रों से,
मजहब कि दीवार गिराने,
फिर से अशफाक व बिस्मिल आओ,
जन्मों इस धरा पर,
सर्व समाज बचाओं रे,
ये कैसा बंसत आया रे!
जीवन का सूत्रधार बनो,
फिंरगी सबक मिटाने,
फिर से एक पहचान बनो,
जो आ जायें हर दिन बंसत बहार रे,
हालात-ए-बयाँ मैंने ऐसा गीत गाया रे,
ये कैसा बंसत आया रे!

सरस्वती पूजन कैसे करू २४ जनवरी २०१५

विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।
कल तक मेरे ज्ञान का विश्व लोहा मानता था,
उसको तो जीरो का भान न था,
दशमलव कि पहचान न थी,
कल जिनको हमने ज्ञान दिया,
आज उनसे विज्ञान पाऊँ मैं,
विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।
मेरी संस्कृति मेरी सभ्यता ये दुनिया जानती है,
ये बहुत विरासत है ये भी वो मानती है,
पर चकाचौंध हुई है ज्ञानेन्द्रियाँ मेरी,
भटक गयी मेरी संस्कृति कैसे बतलाऊँ मैं,
विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।
बाल रूप  होता है ज्ञान-ध्यान से अबोध,
ना उसको विद्या बुद्धि का बोध,
होता है सत्य-असत्य परे वो,
इसीलिए भगवान रूप मानते है वो और मै,
पर आज का भगवान रूप बहुत रोता है,
ढाबे और होटल पर प्लेटें धोता है,
देख दुर्दशा उसकी मेरा विवेक भी खोता है,
फिर तू ही बता माँ बुद्धिदायनी,
विद्यादायनी माँ कैसे पूजा कर पाऊँ मैं।