शनिवार, 9 जून 2018

सुन्दरता पर मन का विचलन दिनाँक ०८ जून २०१८

सुहाना मौसम लगने लगा जब चेहरा उनका नज़र आया,
थी छायाकृति फिर भी लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।

न कह पाये कुछ न सुन पाये,
शब्द अधरों पर आकर रूक गये,
मायूसी छायी थी जो काफ़ूर हुयी,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
उल्फत में पड़ गये खड़े खड़े,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया।। १।।

उम्मीदें जो सफ़र में लगी थी,
को मंजिल नज़र आने लगी,
राहे थकान काफ़ूर नजर आयी,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
सूनी वादियाँ सङ्गीत बजाने लगी,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।२।।

उम्र जब चाहत की दरकार कराने लगी,
ख्वाबों में नित नयी तस्वीर आने लगी,
मन का पपीहा राग तब गाने लगा,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
मन कलिका खिल फूल बनने लगी,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।३।।

होने लगी कहानी जवानी कि रवानी जब,
नूर जब चेहरे का नैनों में नज़र आया,
बन्दगी आँखों ने आँखों की शुरू की,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
मन्नतें नियामक होने लगी तब,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।४।।

तारें भी आसमाँ के नजदीक आने लगे,
ख्याली गुफ़्तगू के दरम्याँ तोड़ लाने लगे,
दूरियाँ सिमटकर कदमों में आने लगी,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
चकोर की ललक बुझाने को जैसे,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।५।।