शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

शासक हुआ धृतराष्ट्र, ०७ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां मेरी आज प्रदेश कि अराजकता के हालात व असफल कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदारी का केन्द्र प्रदेश के शासक को मानते हुए उन्हें कर्तव्य बोध दिलाने हेतु समर्पित है :-

शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।

राजकी लूट खसोट से तस्त्र जो ऊबी जनता,
बदला निजाम सुशासन को,अब कुशासन से डूब रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।१।।

नवयौवन के सब्जबाग से विकास स्वप्न दिखलाया था,
विकास हुआ ना विश्वास रहा ना जनता की फूल साँस रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।२।।

अपराधी युक्त है (राज्य) अपराधी मुक्त है हर चौराहा नीलाम हुआ,
शासन प्रशासन हुआ विफल,आज ये नगरी देख रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।३।।

न आयें अस्मत पे दाग कहीं,किसी खिड़की किसी झरोके से,
ना निकलूँ आज बचे लाज आँगन में हर बहना ये सोच रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।४।।

लोकतंत्र के प्रहरी बनकर जो बैठे हैं समाजवाद के संरक्षक,
चुनौती हैं दुःशासन कि आज आपको पुकार रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।५।।

कृष्ण के वंशज कहलाते हो,हर अबला की धीर धरो,
ना उतरे अब चीर चरित्र का हर द्रोपदी पुकार रहीं।।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।६।।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :-
पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

रक्षा बंधन १० अगस्त २०१४

देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

त्योंहार है ये जो रक्षा बन्धन का,बहन-भाई के पवित्र सम्बन्ध का,
बन्धन के उस प्रीत कि रीत निभाने आई रे,देखों रे बहना आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

धागे का ये बन्धन है सबसे न्यारा,जिस पर है भाई बलिहारा,
बलिहार पर प्यार के हार चढा़ने आई रे,देखो रे बहना आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

देवतुल्य है आज भाई बहना कि आखों का तारा,
आखों में लिये किरण प्यार कि बहना मेरी आई रे,देखों रे बहना आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

राखी का एक-एक धागा, है कसम एक-एक रक्षासूत्र का,
सूत्र में गुनित एक-एक भाव कि याद दिलाने आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :-
पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

संध्या १३ अगस्त २०१४

वक्त बीत गया तो लोग भुला देते है,
बे वजह अपनो को भी रुला देते है,
जो चिराग रात भर रौशनी देता है,
सुबह होते ही लोग उसे भी बुझा देतेहै।

संध्या समय है घटा है छायी घनघोर,
विस्मित आँखें निहार रहीं प्रीत के मन मोर,
आ जाओ तुम अगर, शाम सुहानी हो जाये,
मन हो शीतल - शीतल और नयन विश्राम हो जाये।।

पलके निहारती थक गयी रास्ता चहुँ ओर,
बादल भी बरस कर चले गये बरस बरस घनघोर,
यादों कि बारात लिये दूल्हा हूँ मै तेरा,
दुल्हन हो मेरे दिल की हर वक्त जुबां पर नाम है तेरा।

आज मन हुआ है फिर के भाव विभोर,
दर्श को अँखियाँ प्यासी तड़पत है मन मोर,
ज्ञान चक्षु बंद हुये जाने  छाया है अंधकार,
ढाई अक्षर प्रेम के पढे़ जो आज भारी सब ओर।। 

नादान १३ अगस्त २०१४

उन्ही को मिली सारी उचॉईयॉ जो गिरते रहे और संभलते रहे।

नादान हूँ मानता हूँ पर इतना भी नादाँ मत समझ,
मै गिर जाऊँ अपने आप अपनी नजरों मे,
और गुमान मे तुम आ जाओ।
तुम समझो कि मै चल नहीं सकता,
वो तो मै राह पर गलत था अच्छा हुआ ठोकर लगी,
अब उठ गया हूँ संभल जाऊंगा,
कहीं ऐसा ना हो कारवाँ निकल जायें,
गिरो तुम अगर और साथ न रहे कोई,
और तुम उठ भी ना पाओं।

१५ अगस्त २०१४
नादान हूँ मानता हूँ पर इतना भी नादाँ नहीं,
नादान हूँ नादान रहूँ अफसोस नहीं,
सैनिक हूँ वफा-ए-वतन देशभक्त हूँ,
क्योंकि सारे समझदार नेता हो गये ।

दोस्तों ने दोस्तीं की कसम खानी छोड़ दी,
नादां थे दोनों,ना समझ सके वो ना समझा सके,
रही लगी आग दोनों तरफ पर बात करनी छोड़ दी।

१६ अगस्त २०१४

कमबख्त मशहूर वो हुये,
जो कभी क़ाबिल ना थे,
ओर तो ओर मंजिल उन्हें मिली,
जो कभी दौड़ में शामिल ना थे ।

देखा जो उसे दिल दीवाना हो गया,
पीछे-पीछे उनके घर आना-जाना हो गया,
मुस्कराई वो इस तरह,देखकर उनको,
नादान दिल परवाज परवाना हो गया।

०५ अगस्त २०१४

जब तक है अंधेरा तुम चलना साथ मेरे,
जैसे जलती है बाती दीपक साथ तेरे।।

१९ अगस्त २०१४

अति अति सुन्दर जोडी है प्यार के बन्धन की,
साथ रहे जीवन भर,प्रीत के सम्बन्ध की।

२२ अगस्त २०१४
जीने कि राह कल तुमसे थी जीने की राह आज भी तुमसे है,
सबक दोनों से मिला कल वफा़ तुमसे थी आज जफा़ तुमसे है।

२३ अगस्त २०१४

कुछ मित्रों ने हाथ बढा़या और छोड़ दिया,
संदेश दिया ओर लिया और बात करना छोड़ दिया,
यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप  लगी अपनी सी।

आप  आये दर पर हमारे आपका स्वागत है श्रीमान,
हम रहें आपके दिल में ऐसे जैसे पूजा में भगवान ।

३० अगस्त २०१४

जिनसे भी चाही बात करनी,
वो ही जाने क्यों खफा हो गये,
शब्द रह गये अधरों पर आकर,
होंठ सिले के सिले रह गये।


३१ अगस्त २०१४

जीना हमारा नश्वर हो आया, 
तेरी वफा कि कसम याद आ गयी,
रात ज्यों ज्यों कहरने लगी,
त्यों त्यों यादों कि महक चहकने लगी,
तेरी यादों की कसक इस कदर बढी,
जैसे बढ़ती है इंतजार की घडी।

०१ सितम्बर २०१४

आपके आर्शिवाद तले मेरी धरती हरी-भरी रहे,
आपकी झोली ना हो खाली और मेरी किस्मत चढी रहे ।

०१ सितम्बर २०१४

किसी से बात ना करना अच्छी बात नहीं,
करके दोस्ती ना हाथ बढाओं अच्छी बात नही,
यूँ तो हजारों रास्ते है मंजिल पाने के,
सपने सजाकर मंजिल के साथ ना आना अच्छी बात नहीं।

०१ सितम्बर २०१४

कोई समझकर ना समझ बन जाता है,
कोई नासमझ को हलकान कर जाता है,
ये दुनिया है दुनिया बडी जालिम,
कोई जगाकर किसी को फिर सुला जाता है।

०१ सितम्बर २०१४

पागल बनाती है या खुद पागलपन अपनाती है,
जब चल नहीं सकती तो क्यों छलछलाती है।

०३ सितम्बर २०१४

सपनों की बारात लिये यादों के गाँव में,
काली रात बने सुनहरी निद्रा की छाँव में।।

०६ सितम्बर २०१४

अति सुन्दर है रूप तुम्हारा, नजर ना किसी की लग जायें,
रहे चमकता जीवन भर ये नूर तुम्हारा,
साथ रहे यौवन का और जीवन बाँछे खिल जायें।

०७ अगस्त २०१४

किसके लिये लिखा क्या नाम है वो,
चाहे तू जिसको ओर तुझसे रुखसार है वो।
आखों से देखा नही तुम्हें,
शब्दों से जान लिया तेरा ये हाल,
जो ना जाने जो ना माने दिल कि भाषा,
क्यों हो समय व्यर्थ गवाँती हो छोडों उसकी आशा,
नजरें इनायत करो इस ओर भी,
जो खड़े है लगाये टकटकी रख दिल में दिलाशा।

२३ सितम्बर २०१४

नजरों को मिलाना भी नहीं है चुराना भी नहीं है,
ये इश्क कि इबाबत ही ऐसी है उसे खोना भी नहीं जिसे पाना नहीं है।

२८ अक्तूबर २०१४

दिल के झरोके से आवारगी झलकती रही,
जिंदगी रुखसार सी चलती रही,
चाहा हमने भी किसी दिल का नजराना मिलें,
कमबख्त उसके प्यार कि बदली कहीं ओर बरसती रही,
तकता रहा एक बूँद पाने के लिए,
और मेरी जिंदगी बेबसी के सफ़र पर चलती रही। 



१८ नवम्बर २०१४

मुझे मालूम ना था चाहता हूँ जिसे मिल ना सकेगा, 
"नादान" हूँ इसलिए दिल को चेहरे जैसा समझ बैठा।।

मुझे मालूम था जिसे दिल दे बैठा वो गैर है,
"नादान" हूँ इसलिए गैरों से दिल का व्यापार कर बैठा।।

वैसे आसाँ नही है यूँ ही हर किसी को भुला देना,
"नादान" हूँ इसलिए चोट खाकर गैरों से जख्मों को भुला बैठा।।

०९ दिसम्बर २०१४

मैंने दिया जिसको भी सर्वस्व खजाना अपना (दिल)
उसने ही हर बार छला तोड़ दिया हर जज्बाती सपना।  

दर्द अपने ही देते है माना ये सत्य है,
पोंछकर आँसू गलती भी छुपाते क्या असत्य है,
मार देकर मरहम लगाते कभी गैरों को नही देखा,
कर अदावट दूर हुये पर बद्दुआ अपनों को देते नहीं देखा।
 
21 अगस्त 2015
क्या करे कोई जब काल बन गया घाल,
काल ही काल के कारण बनता है घाल,
जब समय होता सही तो काल ही बनता ढाल।

26 अप्रैल 2017

करवटें बदलता हूँ रात भर उनके खुली आँखों से ख्वाब देखकर,
वो आराम से सोते हैं मुझे करबटों में छोड़ कर।।

करवटें बदलता हूँ रात भर,खुली आँखों से ख्वाब देखता हूँ जब,
वो आराम से सोये हैं मुझे करबटों में छोड़ कर।।


मैं आस लिये आज भी बैठा हूँ,
बिश्वास लिये आज भी बैठा हूँ,
तितलियाँ बहुत है आवारा बाग में,
मैं खूशबू खास लिये बैठा हूँ ।।

19 जुलाई 2017

हम क्या बताये जिन्दगी की कशमकश में है,
मुकम्मल की तलाश में मुक़र्रर को तलाश रहे है।।

यूँ हर दम वो साथ है मेरे पर परछाई नजर नही आती,
वो रात बहुत हसीन हुई जब से सपनों में वो आने लगे यार।।

हम जज्बात उकेर चुके है अपनी किताब में, 
अब उसको पढो या फाड़ दो जिन्दगी के निसार में।।

उल्फत में भी उनको सीने में समाये रखा,
प्यार की बाते उनसे यूँ ही कह ना पाये यार।।

जब उनसे बात की मुलाकात के उधार की,
कि बहुत दिल से जूस्तजू क्या-कैसे कहे न समझ पाये यार।।

दिनाँक ११ नवम्बर २०१७

दो क्या लफ़्ज़ों की रवानगी कहते है,
तू मेरी है हम तेरे बस समझे तो इसको भी कहानी कहते है ।।

कदम से कदम मिलाना जब तूने शुरू कर दिया,
मन्जिल हो गयी आसाँ हमे मन्दिर का पुजारी कर दिया ।।

जब से दिल मे वो जगह पाये है,
चारों कोनों को भर घर बनायें है,
जगह खाली नही मेरे इश्क के वजूद,
अब तेरे सिवा किसकी तस्वीर सजाये है ।।

बकवास जो नही करते वो इश्क के लियेजा रहे है,
जो पूजा ना जाने वो इश्क किये जा रहे है ।।

दीवाने है दिशाओं पर गौर कैसे करे,
जा रहे है उस और जहाँ माशूक की गन्ध हो।।

भाई मैं तो अभी नादान हूँ,
घुटन को को भी तमाशा बना लूँगा,
काम के लिए काम करेंगे,वफ़ा के लिये यह इश्क को इबादत बना लूँगा ।।


उम्र की ताकीद मत बता,
मैं उस दहलीज पर भी इश्क देखता हूँ ।।

कसक सी कसक रही है हूक सी भी उठती है,
दोस्त की गलबहियां देखकर उम्र दरकिनार कर जवानी और खिल उठती है

किसने कहा ठंड नही होती,
मिल जाये अगर प्यार का तोहफा,
फिर आग भी लगती है गर्मी भी नही होती ।।
मुझे शौक कहा जो शायरी पढ़ पाऊँ,
यूँ ही दो शब्दो के खाका खींचता हूँ,
वो दरियादिली है श्रोताओं की, 
वो शब्दों के आईने को तरन्नुम समझ लेते है ।।

अदा के दीवाने है तेरी,  
हर मुस्कराहट पर मरते है,
तेरी बातों को हम तेरी, 
आँखों से समझते है,
तुम भले न कहो जुबा से,
हँसी बहुत कुछ कह जाती है,
यादों से हिचकी उनकी बताती है,
जान है वो मेरी वो जान समझती है ।। 
                                       
दिल को दिल की भाषा समझती है,
नजरें जब झुकती है तेरी,
मेरी जान और तेरी हया समझती है,
अनजान बने रहो चाहे दिल की नादानी मानकर,
जज्बात है ये दिल के मैं भी समझता हूँ तू भी समझती है ।।

कहाँ जाती हो जान, अभी शाम बाकी है,
जरा ठहरो अभी दिल जवाँ और अरमान बाकी है।।

कुहासा जीवन मे जो छाने लगा है,
ये धुँआ अब रास आने लगा है ।।

देखी तेरी सूरत जब से तलबगार हुआ हूँ,
ना मोहब्बत मिली न विसाले सनम,
तेरी रूमाईयो का ऐसा असर हुआ,
अच्छा भला था पहले अब बेकार हुआ हूँ।। 

दिनाँक २७ मार्च २०२१

गुनाहों की फेहरिस्त लम्बी थी समझदार की प्रबुद्ध के सभागार में,
न विवेक बन सका न मूक रह सका "नादान" इसलिये निकल लिया ।।

शंकाओं के बोझ लिये न्याय के अर्पण को सभी खड़े,
"नादान" मूक खड़ा देखता चर्चा करते ईमान वाले बड़े बड़े ।।

दशों दिशाएँ में खोजता रहा मानव जाति में "नादान"
आदमी मिलते रहे बहुत से बस दो चार मिले इंसान ।।

उलझा था मैं उसके अन्दर मान ईमान का,
झकझोर कर रख दिया मान ईमान का,
बात बनी जब बिना बात की अहम के किरदार से,
चोट लगी "नादान" को मारक विशेषज्ञ थे बातों विशेष के ।।
इशारे थे उस छोर से शब्दों के जाल से,
जबाब शब्दों से दिया "नादान" वो शायरी गाने लगे ।।

चंद सिक्को में बिकता ईमान देख रहा हूँ
लोगो का पेट काटते झूठे बेईमान देख रहा हूँ
कैसा करिश्मा है देखो इस अंधे कानून का
कुर्सियों पर चोरो को विराजमान देख रहा हूँ
इक दूजे का गला काटते देख रहा हूँ
क्या क्या नहीं देख रही अब मत पूछ मुझसे
सूनी नजरो से घायल हिंदुस्तान देख रहा हूँ ||

दोहरे चरित्र में नहीं जी पाता हूँ,
इसिलये बार-बार अकेला नजर आता हूँ ।।

२४ जुलाई २०१७

हम तेरी याद लिये सोते है,जगते है, हर वक्त तेरा ही ख्याल रखते है,
गुरबत में साथ छोड़ दिया जिसने कोई बात नही वो अपना ही प्यार तो था।।

हम तो आज भी वफ़ा की आस  रखते है,
काश तेरा दिल भी आइने की तरह साफ होता, 
मेरा प्यार तेरे चेहरे की तरह ओर निखरता ।।

जज्बात में वो ओर निखरते है,
जैसे मेरे शब्द उनकी याद में उतरते है।।

शाम भी सुहानी है,
मौसम भी बेईमान है,
बस उनका आना बाकी है ।।

लोग कहते है कि बिना मेहनत के कुछ नही पा सकते हम खुदा से,
न जाने गम उठाने के लिये कौन सी मेहनत की थी हमने ।।

दिनाँक २५ जुलाई २०१७

यादों का घरौंदा लिये जब परिन्दे उड़ते है,
तो जीने का नया ठौर मिलता है ।। 
    
राह में हर मुसाफिर मंजिल नही पाता,
थकान पर हिम्मत के मदद से कोई ठौर ढूंढ लेता है ।।
                                        
जिन्दगी की राह ओर आसान हो गयी,
जब पथरीली डगर में अन्जान दोस्त ने हाथ थामा।।

मेरी झोली में कुछ रिश्ते आने दो,
ख़ुदा की राहत और आपका असर हो,
आप अपनी रूह के फरिश्ते को आने दो ।।
                                                     
क्या बात जो हमे देखा न एक बार ,
हमने तो दिए दीये जला सौ सौ बार।।

आज मेरे यार मेरे करीब आया है,
सिद्दत से जरूरत थी जिसकी,
दिल से उनके वो प्यार पाया है,
के दिल तू उनको यूँ ही पलकों पर रखना,
मेरे आँगन में एक त्योहार नया आया है।।

मेरा प्यार वो मेरा यार, 
जैसे सारा संसार सो गया है,
उसके बिना दिल था हमारा खाली खाली, 
अब खाली खाली भी खो गया है।।

दिनाँक २७ जुलाई २०१७

सखी प्रियतम मेरे वजूद में है,
सावन को जल्दी आने दो ।।

वो जब यूँ रूठकर जाने लगे कमबख्त गरीबखाने से, 
मुझे वो मेरा शराबी दोस्त याद आ गया ।।    

कोशिशें कामयाब होती है, मंजिले मुकाम हासिल करने में, हिम्मतें साहिल भी जब साथ छोड़ देते है।।
                             
मेरे यार ने मेरे सब्र की इन्तहा लेनी चाही, मुझे उसका यह अंदाज भी पागल कर गया ।। 

रूह को मारकर लाश लिये फिरता है,
अहम को रख जिन्दा वजूद ढूँढता है ।।
                      

रिश्तों की कलाबाजी है मतलब के दौर में,
जिस्म के बाजार में इंसानियत ढूंढता है ।।
                 
अन्जानों के साये में अपनों को खोजता है,
बड़ा बावरा है वो जो इस कदर सोचता है ।।

शायद कहूँ या हकीकत में समझूँ,
है फरिश्तों की फेहरिस्त में वो,
उसने मेरे वजूद का ऐसा तार छेड़ा,
दिमाग का काम भी दिल से लिया हमने।।
                                                 
मेरा दामन खाली है,उसके एक बूँद की ख़ातिर।।
कुछ सवाल तो बाकी होंगे,इन्तजार में हूँ जबाबे हाजिर ।।
                     
गफ़लत से बाहर आ "नादान" किरण बाकि है,
किरण से मुँह फेरकर उजाला कहाँ ढूँढता है ।।

चाँद भी शरमा के आधा है आज,
देखकर मेरा आफ़ताब आया है ।।
                        
जब से अना की, तन्हा हो गया,
सोच रहा बेजायी, क्यूँ खफा हो गया ।

राह में है ! वो तेरे शब्दों से भारी पंक्तियोँ सी सीधी सी डगर आज भी वहीँ है ।।

खुद के ऊपर लम्हे लुटा पाऊँ,
ऐसी मेरी फितरत कहाँ,
मिले वो राही जो साथ हो,
कश्ती में मेरी हस्ती ही कहाँ,
उसके चेहरे की हँसी देखकर,
मुक़द्दर का सिकन्दर समझ बैठा,
क़ातिल हँसी थी जनाब वो उसकी,
क़त्ल भी कर कर दिया ज़ालिम ने,
और गुनाहे अन्जाम भी न लगा दामन में,
हम जिन्दा लाश है अपने गिरेबाँ में,
अपने ऊपर लम्हे लुटा पाये ऐसा वजूद कहाँ।।

क्या करे कोई जब काल बन गया घाल,
काल ही काल के कारण बनता है घाल,
जब समय होता सही तो काल ही बनता ढाल।

यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप लगी अपनी सी।

आप को देखा तो ख्वाब संजो लिए,
ख्वाब में हमको मिली दीवानगी आप साथ हो लिए।

तेरे जूड़े का हाल भी मेरी जिन्दगी सा है, दोनो उलझी हुयी है,अंतर बस इतना सा है कि तेरे जूड़े से नजर नही हटती और जिन्दगी एक जगह नही डटती ।

हम भी आदमी है ! काम के, यूँ ही बदनाम हो गये,
खास चेहरा थे बहुत सी आँखों का, आँखे चार हुयी जब से आम हो गये ।।
                      
पनाहों में हो ना हो वो मेरी निगाहों में है,
मिलते है रोज आकर वो मेरे सपनों में,
गुनाहों से अदावत कर ली हमने, 
क्योंकि ? वो अब मेरी दुआओं में है ।।

पागल ही समझा है निगाहबानों ने,
हम नादानी में दिल-ओ-जज्बात जो बता बैठे ।।

कोई समझकर ना समझ बन जाता है,
कोई नासमझ को हलकान कर जाता है,
ये दुनिया है दुनिया बडी जालिम,
कोई जगाकर किसी को फिर सुला जाता है।

मेरे पास कुछ नही है बताने को,
उद्गार है दिल में मेरे ,
लिख देता हूँ समझाने को ।।

अच्छा रहता सपनों को छुपाकर रखते,
लाजिमी था वो ख्यालों में तो आते ही रहते ।।

जिनके लिये जिये हम जिनके वास्ते मरने को तैयार थे,
वो कहने को अपने थे जिनके दुश्मनों से विचार थे ।।

मेरी हर शय पर दुनियाँ की बलिहारवे,
मेरी हर मात पर दुनियाँ की कहकहे,
मैं जिन्दगी हारता रहा दुनियाँ के वास्ते,
तिरछी मुस्कान भर हर शख्स ने लिये फिर जलवे।।


तेरे प्यार का जब रंग लगा तो होली हो गयी मेरी,
तेरे नैनों का जब भंग चढा तो होली हो गयी मेरी,
यूँ तो भरी महफ़िल में छूना मुश्किल था तेरा मुझको,
तेरे अंग से जब अंग लगा मेरा तो होली हो गयी मेरी।

द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि परस्पर मदभेद को होलिका रूपी हवन में जलाकर आपसी सौहार्द  बनाने व रिश्तों में उमंग के साथ नव उर्जा के रंग एक दूसरे पर गिराकर एकता और प्यार के पर्व होली की अनन्त शुभकामनायें ।
                      

! शुभप्रभात       !! प्रात: नमन !!       शुभदिवस जी!

आपको पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान" का प्रणाम,राम-राम,जय श्रीकृष्णा,जय श्रीराधे-राधे, नमस्कार व सत-श्री- अकाल जी।

आपका दिन शुभ व मंगलमय हो प्रभु से इसी कामना के साथ मेरी ये पंक्तियाँ :- 

मुलाक़ात मौत की मेहमान हो गयी है ,नज़रों की दुनियाँ वीरान हो गयी है !
 अब मेरी साँसे भी मेरी नहीं रहीं , जिंदगी आपकी दोस्ती पे कुर्बान हो गयी है !!




                   
                                                                                                        
                                

ये चमन है रैन बसेरा १४ अगस्त २०१४

खूब बहती है अमन की गंगा बहने दो,  
मत फैलाओ देश मे दंगा रहने दो,  
लाल हरे रंग मे ना बॉटो हमको, 
मेरी छत पर एक  तिरंगा रहने दो।

ना ये तेरा ना ये मेरा ये चमन है रैन बसेरा,
हर धर्म से नाता है चाहे वो तेरा हो या फिर मेरा।

बाँट रहे धरती को तुम कि आसमाँ की तैयारी है,
इंसान तो तुम बन ना पाये क्या खुदा बनने की तैयारी है।
इंसाँ-इंसाँ मे करके भेद,खून-खून को अलग किया,
धर्म जाति में तौलकर मानवता को तंग किया ।

ये मानवता की बातें तुमसे अच्छी नहीं लगती,
देशभक्त को आराम कहाँ उनकों कुर्सी नहीं जँचती,
सियासतदाँ हो कुर्सी के अब तुम भी,
अब शिक्षा कि बातें तुमसे अच्छी नहीं लगती।

भूल चुके हो तुम उन शहीदों को,
गवाँ जिन्होंने आजादी मे प्राण दिये,
सियासत करते हो पता है कल तुम्हारी बारी है।
इसलिये ही देकर भारत रत्न अब उनका सम्मान किये।

नमन करो उनको तो करो दिल से वरन् क्या लाचारी है,
आसमाँ से ऊँचा नाम है जिनका उन्होंने कब ये सोचा था,
भारत रत्न से कहीं ऊँची ही कीमत उनके समर्पण की,
उनके नाम पर ना करो सियासत,क्या अब उन्हें भी बाँटने की तैयारी है।

अरे अद्यः समय के सियासतदारों अबतो कुछ शर्म करो,
जाति भेद और धर्म कि राजनीति अब खत्म करो,
डूबा सूरज निकले देर से दूर होता है सवेरा,
निकला सूरज सबका होता एकक ये ना तेरा ना ये मेरा ।

नया युग नई उमंग है नव आशा है नवयुवकों की,
विश्व के अग्रज बन चमके,ये तिरंगा है मेरा,
ना ये तेरा ना ये मेरा ये चमन है रैन बसेरा,
हर धर्म से नाता है चाहे वो तेरा हो या फिर मेरा।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :-
आपका स्नेह आकांक्षी - पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

१५ अगस्त २०१४

शनैः शनैः इस कदर हुआ असर,

पढी़ जो आजादी कि कहानियां,
लिखी किताबों मे थी जो इस कदर,
बोस,घोष,लाल,बाल,पाल और,
भगत सिँह मतवाले अपने आप थे,
इंसाँ थे फरिश्ते थे या अंग्रेजों के बाप थे,
रच डाला इतिहास जिन्होंने हवन कुंड में,
आजादी के,जीवन की आहुति देकर,
इंकलाब,अंग्रेजों भारत छोडों,
नारा दिया और दिया वन्देमातरम्,
आजादी का पर्व दिया जिन्होंने,
ऐसे शूर वीरों को करूँ नमन,
गाथा जितनी पढ़ता हूँ आजादी कि,
कायल होता जाता उनकी भक्ति का,
गौरव है जन्म लिया भारत भूमि पर,
और हिन्दुस्ताँ है हम वतन-हम वतन,
और शनैः शनैः इस कदर होता असर,
करता हूँ नमन जो मुख से निकलता है जय हिन्द,
उठाता हूँ कलम जब भी लिखने को,
लिखा जाता है केवल वन्देमातरम् वन्देमातरम् ।।

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पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"