दो क्या लफ़्ज़ों की रवानगी कहते है,
तू मेरी है हम तेरे बस समझे तो इसको भी कहानी कहते है ।।
कदम से कदम मिलाना जब तूने शुरू कर दिया,
मन्जिल हो गयी आसाँ हमे मन्दिर का पुजारी कर दिया ।।
जब से दिल मे वो जगह पाये है,
चारों कोनों को भर घर बनायें है,
जगह खाली नही मेरे इश्क के वजूद,
अब तेरे सिवा किसकी तस्वीर सजाये है ।।
बकवास जो नही करते वो इश्क के लियेजा रहे है,
जो पूजा ना जाने वो इश्क किये जा रहे है ।।
दीवाने है दिशाओं पर गौर कैसे करे,
जा रहे है उस और जहाँ माशूक की गन्ध हो।।
भाई मैं तो अभी नादान हूँ,
घुटन को को भी तमाशा बना लूँगा,
काम के लिए काम करेंगे,वफ़ा के लिये यह इश्क को इबादत बना लूँगा ।।
उम्र की ताकीद मत बता,
मैं उस दहलीज पर भी इश्क देखता हूँ ।।
कसक सी कसक रही है हूक सी भी उठती है,
दोस्त की गलबहियां देखकर उम्र दरकिनार कर जवानी और खिल उठती है
किसने कहा ठंड नही होती,
मिल जाये अगर प्यार का तोहफा,
फिर आग भी लगती है गर्मी भी नही होती ।।
मुझे शौक कहा जो शायरी पढ़ पाऊँ,
यूँ ही दो शब्दो के खाका खींचता हूँ,
वो दरियादिली है श्रोताओं की,
वो शब्दों के आईने को तरन्नुम समझ लेते है ।।
अदा के दीवाने है तेरी,
हर मुस्कराहट पर मरते है,
तेरी बातों को हम तेरी,
आँखों से समझते है,
तुम भले न कहो जुबा से,
हँसी बहुत कुछ कह जाती है,
यादों से हिचकी उनकी बताती है,
जान है वो मेरी वो जान समझती है ।।
दिल को दिल की भाषा समझती है,
नजरें जब झुकती है तेरी,
मेरी जान और तेरी हया समझती है,
अनजान बने रहो चाहे दिल की नादानी मानकर,
जज्बात है ये दिल के मैं भी समझता हूँ तू भी समझती है ।।
कहाँ जाती हो जान, अभी शाम बाकी है,
जरा ठहरो अभी दिल जवाँ और अरमान बाकी है।।
कुहासा जीवन मे जो छाने लगा है,
ये धुँआ अब रास आने लगा है ।।
देखी तेरी सूरत जब से तलबगार हुआ हूँ,
ना मोहब्बत मिली न विसाले सनम,
तेरी रूमाईयो का ऐसा असर हुआ,
अच्छा भला था पहले अब बेकार हुआ हूँ।।
दिनाँक २७ मार्च २०२१
गुनाहों की फेहरिस्त लम्बी थी समझदार की प्रबुद्ध के सभागार में,
न विवेक बन सका न मूक रह सका "नादान" इसलिये निकल लिया ।।
शंकाओं के बोझ लिये न्याय के अर्पण को सभी खड़े,
"नादान" मूक खड़ा देखता चर्चा करते ईमान वाले बड़े बड़े ।।
दशों दिशाएँ में खोजता रहा मानव जाति में "नादान"
आदमी मिलते रहे बहुत से बस दो चार मिले इंसान ।।
उलझा था मैं उसके अन्दर मान ईमान का,
झकझोर कर रख दिया मान ईमान का,
बात बनी जब बिना बात की अहम के किरदार से,
चोट लगी "नादान" को मारक विशेषज्ञ थे बातों विशेष के ।।
इशारे थे उस छोर से शब्दों के जाल से,
जबाब शब्दों से दिया "नादान" वो शायरी गाने लगे ।।
चंद सिक्को में बिकता ईमान देख रहा हूँ
लोगो का पेट काटते झूठे बेईमान देख रहा हूँ
कैसा करिश्मा है देखो इस अंधे कानून का
कुर्सियों पर चोरो को विराजमान देख रहा हूँ
इक दूजे का गला काटते देख रहा हूँ
क्या क्या नहीं देख रही अब मत पूछ मुझसे
सूनी नजरो से घायल हिंदुस्तान देख रहा हूँ ||
दोहरे चरित्र में नहीं जी पाता हूँ,
इसिलये बार-बार अकेला नजर आता हूँ ।।
२४ जुलाई २०१७
यादों का घरौंदा लिये जब परिन्दे उड़ते है,
तो जीने का नया ठौर मिलता है ।।
राह में हर मुसाफिर मंजिल नही पाता,
थकान पर हिम्मत के मदद से कोई ठौर ढूंढ लेता है ।।
जिन्दगी की राह ओर आसान हो गयी,
जब पथरीली डगर में अन्जान दोस्त ने हाथ थामा।।
मेरी झोली में कुछ रिश्ते आने दो,
ख़ुदा की राहत और आपका असर हो,
आप अपनी रूह के फरिश्ते को आने दो ।।
क्या बात जो हमे देखा न एक बार ,
हमने तो दिए दीये जला सौ सौ बार।।
आज मेरे यार मेरे करीब आया है,
सिद्दत से जरूरत थी जिसकी,
दिल से उनके वो प्यार पाया है,
के दिल तू उनको यूँ ही पलकों पर रखना,
मेरे आँगन में एक त्योहार नया आया है।।
मेरा प्यार वो मेरा यार,
जैसे सारा संसार सो गया है,
उसके बिना दिल था हमारा खाली खाली,
अब खाली खाली भी खो गया है।।
दिनाँक २७ जुलाई २०१७
सखी प्रियतम मेरे वजूद में है,
सावन को जल्दी आने दो ।।
वो जब यूँ रूठकर जाने लगे कमबख्त गरीबखाने से,
मुझे वो मेरा शराबी दोस्त याद आ गया ।।
कोशिशें कामयाब होती है, मंजिले मुकाम हासिल करने में, हिम्मतें साहिल भी जब साथ छोड़ देते है।।
मेरे यार ने मेरे सब्र की इन्तहा लेनी चाही, मुझे उसका यह अंदाज भी पागल कर गया ।।
रूह को मारकर लाश लिये फिरता है,
अहम को रख जिन्दा वजूद ढूँढता है ।।
रिश्तों की कलाबाजी है मतलब के दौर में,
जिस्म के बाजार में इंसानियत ढूंढता है ।।
अन्जानों के साये में अपनों को खोजता है,
बड़ा बावरा है वो जो इस कदर सोचता है ।।
शायद कहूँ या हकीकत में समझूँ,
है फरिश्तों की फेहरिस्त में वो,
उसने मेरे वजूद का ऐसा तार छेड़ा,
दिमाग का काम भी दिल से लिया हमने।।
मेरा दामन खाली है,उसके एक बूँद की ख़ातिर।।
कुछ सवाल तो बाकी होंगे,इन्तजार में हूँ जबाबे हाजिर ।।
गफ़लत से बाहर आ "नादान" किरण बाकि है,
किरण से मुँह फेरकर उजाला कहाँ ढूँढता है ।।
चाँद भी शरमा के आधा है आज,
देखकर मेरा आफ़ताब आया है ।।
जब से अना की, तन्हा हो गया,
सोच रहा बेजायी, क्यूँ खफा हो गया ।
राह में है ! वो तेरे शब्दों से भारी पंक्तियोँ सी सीधी सी डगर आज भी वहीँ है ।।
खुद के ऊपर लम्हे लुटा पाऊँ,
ऐसी मेरी फितरत कहाँ,
मिले वो राही जो साथ हो,
कश्ती में मेरी हस्ती ही कहाँ,
उसके चेहरे की हँसी देखकर,
मुक़द्दर का सिकन्दर समझ बैठा,
क़ातिल हँसी थी जनाब वो उसकी,
क़त्ल भी कर कर दिया ज़ालिम ने,
और गुनाहे अन्जाम भी न लगा दामन में,
हम जिन्दा लाश है अपने गिरेबाँ में,
अपने ऊपर लम्हे लुटा पाये ऐसा वजूद कहाँ।।
क्या करे कोई जब काल बन गया घाल,
काल ही काल के कारण बनता है घाल,
जब समय होता सही तो काल ही बनता ढाल।
यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप लगी अपनी सी।
आप को देखा तो ख्वाब संजो लिए,
ख्वाब में हमको मिली दीवानगी आप साथ हो लिए।
तेरे जूड़े का हाल भी मेरी जिन्दगी सा है, दोनो उलझी हुयी है,अंतर बस इतना सा है कि तेरे जूड़े से नजर नही हटती और जिन्दगी एक जगह नही डटती ।
हम भी आदमी है ! काम के, यूँ ही बदनाम हो गये,
खास चेहरा थे बहुत सी आँखों का, आँखे चार हुयी जब से आम हो गये ।।
पनाहों में हो ना हो वो मेरी निगाहों में है,
मिलते है रोज आकर वो मेरे सपनों में,
गुनाहों से अदावत कर ली हमने,
क्योंकि ? वो अब मेरी दुआओं में है ।।
पागल ही समझा है निगाहबानों ने,
हम नादानी में दिल-ओ-जज्बात जो बता बैठे ।।
कोई समझकर ना समझ बन जाता है,
कोई नासमझ को हलकान कर जाता है,
ये दुनिया है दुनिया बडी जालिम,
कोई जगाकर किसी को फिर सुला जाता है।
मेरे पास कुछ नही है बताने को,
उद्गार है दिल में मेरे ,
लिख देता हूँ समझाने को ।।
अच्छा रहता सपनों को छुपाकर रखते,
लाजिमी था वो ख्यालों में तो आते ही रहते ।।
जिनके लिये जिये हम जिनके वास्ते मरने को तैयार थे,
वो कहने को अपने थे जिनके दुश्मनों से विचार थे ।।
मेरी हर शय पर दुनियाँ की बलिहारवे,
मेरी हर मात पर दुनियाँ की कहकहे,
मैं जिन्दगी हारता रहा दुनियाँ के वास्ते,
तिरछी मुस्कान भर हर शख्स ने लिये फिर जलवे।।
तेरे प्यार का जब रंग लगा तो होली हो गयी मेरी,
तेरे नैनों का जब भंग चढा तो होली हो गयी मेरी,
यूँ तो भरी महफ़िल में छूना मुश्किल था तेरा मुझको,
तेरे अंग से जब अंग लगा मेरा तो होली हो गयी मेरी।
द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि परस्पर मदभेद को होलिका रूपी हवन में जलाकर आपसी सौहार्द बनाने व रिश्तों में उमंग के साथ नव उर्जा के रंग एक दूसरे पर गिराकर एकता और प्यार के पर्व होली की अनन्त शुभकामनायें ।
! शुभप्रभात !! प्रात: नमन !! शुभदिवस जी!
आपको पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान" का प्रणाम,राम-राम,जय श्रीकृष्णा,जय श्रीराधे-राधे, नमस्कार व सत-श्री- अकाल जी।
आपका दिन शुभ व मंगलमय हो प्रभु से इसी कामना के साथ मेरी ये पंक्तियाँ :-
मुलाक़ात मौत की मेहमान हो गयी है ,नज़रों की दुनियाँ वीरान हो गयी है !
अब मेरी साँसे भी मेरी नहीं रहीं , जिंदगी आपकी दोस्ती पे कुर्बान हो गयी है !!