मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

उनकी याद १७ दिसम्बर २०१४

जिन्हें हम याद करते है,वो क्यों दूर हो जाते है।।

हम रखते है याद सीने में,वफा के साथ उनकी,
वो अपनी खुशियों के लिये,क्यों दामन हमारा छोड़ जाते है।।१।।

वो ना खुश रहे हमने कब ऐसा चाहा,हमने तो बस उनका भला ही चाहा,
हैसियत कम ही सही मगर जज्बात सलीके है,फिर ना जाने वो क्यों घबराते है।।२।।

जिनकी यादों को संभालकर रखा,हमने ईमान के साथ अबतक,
वो गुलशन बन महलों की,हमारे जज्बातों की हसीं क्यों उडाते है।।३।।

"नादान" तू सदा नादान रहा,जो रखता है घरौंदा उनकी यादों का,
ये बे तकुल्लफी की दुनिया है,समय देखकर लोग बदल जाते है।।४।।

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

इश्क - पूजा १६ दिसम्बर २०१४

जलती है जो लौ इश्क की वो शम्मा ना दिखती है ना छुपती है,
ये दिल कि लगी है दोस्तों ये आग ही ऐसी है जो बुझाये ना बुझती है।।
जहाँ लगी हो झडी मोहब्बत की वहाँ सब राग सूने है,
ये वो धुन है जहाँ पूजा भी नित्य है और इबादत ना दिखती है।।
मन्दिर मस्जिद चर्च व गुरूद्वारे सब बेकार की बाते है,
जहाँ पहरा हो प्रीत के बन्धन में वहाँ पूजा न लगती है ना अजान सुनती है।।
दिल वो मन्दिर है जहाँ बस एक ही मूरत बसती है,
यहाँ पूजा होती है हरपल पर थाल-आरती कहाँ दिखती है।।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

जिज्ञासा - नाम की १० दिसम्बर २०१४।


जी चाहता है कि मै भी नाम कमाऊँ,
जाने मुझको दुनिया सारी मै ऐसी पहचान बनाऊँ।।

यूँ तो नाम है बद-नाम में भी मै इत्तफाक नहीं रखता,
कद मेरा रहे जैसा भी सदैव सर उठाकर जी पाऊँ।।

गर्व करे मेरे सगे-सम्बन्धी मित्र और पितृ भी सारे,
काम करूँ मै सदैव ही ऐसा मात-पिता की शान कहलाऊँ।।

हो ना कभी बुरा किसी का स्वप्न में भी भावना आठो याम रहे,
जीवन सफल बने निज कारण से कर्म ऐसा आधार बनें।।

कल रहूँ ना रहूँ दुनिया में,नाम मेरा सदैव आबाद रहें,
हथियार बनें कलम मेरा और मै सिपाही कहलाऊँ।।

जी चाहता है कि मै भी नाम कमाऊँ,
जाने मुझको दुनिया सारी मै ऐसी पहचान बनाऊँ।।

रविवार, 7 दिसंबर 2014

आचरण ०७ दिसम्बर २०१४

स्वभाव कहाँ दिखता है उनका दरकार से पहले,
सुन्दरता नजर आती है चरित्र पर नजर पडने से पहले।।

आचरण छुपा रोता है आज कोने में,
सुन्दरता खोजते है सब प्यार होने में ।।

धोखा कहाँ खाते है यहाँ हजार तन वाले,
राह में नही चल पाते दो कदम सदाचरन वाले।।

आज जमाने को दोष देते है सब,
पर आचरण नहीं मिलते सत्य के युग वाले ।।

उनका आना ०७ दिसम्बर २०१४

तुम जो आ गये हो जिंदगी मे,
खुशियों का सैलाब आ गया है।।

हिम्मत ना थी जिसका देखूं सपना,
हकीकत मे वो नज़र ख्वाब आ गया है।।

थी तारों सी टिमटिमाती मेरी जिंदगी,
अमावसी अंधेरे मे पूर्णिमासी चांद छा गया है।।

सूखा सावन थी मेरी जिंदगी एक बूंद बिना,
तेरे आने से पपीहा जीवन मल्हार पा गया है।।

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

परदा १८ नवम्बर २०१४

परदा
छुपे-छुपे परदानशीं से क्यों रहते हो,
परदे में बहुत से पाप छिपे होते है।।

उठाकर परदा नजारा बाहर का देखों,
यहाँ बहुत से चेहरे हसींन रहते है।।

कुछ हसींना अलग इत्तफाक रखती है,
पर परदे में हर हसींना आफताब लगती है।।

शर्म आँखों में नहीं दिल में बसती है,
समझ से उठाकर परदा देखों हया आप जगती है।।

दिल पर गिराकर परदा चेहरों ने बहुतों को लूटा है,
झाँककर जो दिल में देखा अपने बेगानें और बेगानें अपने लगते है।।

शनिवार, 15 नवंबर 2014

प्रभु की महिमा १६ नवम्बर २०१४

१६ नवम्बर २०१४

देखा है तेरे नूर का अजब नजारा,
कहीं सूखा सघन,कहीं प्यार है नजारा।।

सजाने को जहान तूने,क्या-क्या ना बनाया,
पृथ्वी,चाँद,सितारे,सूरज और आकाश बनाया,
सबको एकसा पाठ पढा़या,झिलमिल मिलकर करते है सारे,
तेरा करिश्मा है न्यारा,मन भावन प्यारा,
कहीं सूखा-----------------------------------।।१।।

थार-मरुस्थल और पर्वत सजायें,वन,उपवन और खलिहान सजायें,
कहीं समतल धरती बडी सी झीलें,कहीं गहरा है सागर बनाया,
सागर को भरने को, कल-कल कर बहती हैं नदियाँ,
तूने जीवन का संगीत सजाया, जीवन का संगीत लगे है प्यारा,
कहीं सूखा--------------------------------------।।२।।

चर-चराचर जगत बनाया, जाने कितने जीव बनाये,
पशु-पक्षी, नर-भक्षी, शाकाहारी कीट बनायें,
सबके पोषण हेतू,उनके निर्वासन-निर्वाहन हेतु,
सारी व्यवस्था भर दी, तेरा प्रबंधन सबसे न्यारा,
कहीं सूखा-----------------------------------।।३।।

सबसे अलग तूने इंसान बनाया,जिसमें बुद्धि,बल,विवेक सजाया,
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम,यहूदी,सिख,पारसी,क्रिश्चियन,
ना भेद किया,सबको एकसा देह दिया,इंसानियत का पाठ पढा़या,
फिर क्यों एक-दूजे के दुश्मन,दुखी है "नादान" बेचारा,
कहीं सूखा--------------------------------।।४।।

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

२४ अक्तूबर २०१४ गौवर्धन पूजा

उस शक्ति को नमन् करें,
गौवर्धन है नाम जिसका,
पूजन करें उसका वन्दन करें।।

गौ से है शक्ति दूध धृत की,
बलिष्ठ करे जो, चित्त वृत्त की,
पूजन करें उसका वन्दन करें।।

दूध-धृत में स्वर्ण है मिलता,
सेवन से अंग-अंग खिलता,
पूजन करें उसका वन्दन करें।।

गौधन सहायक है अन्नधन मे,
खलिहान सजाता है तन-मन से,
पूजन करें उसका वन्दन करें।।

अग्नि सजाता है जिसका मल तक,
पूर्ण कराता है सृजन से वृष्टि तक,
पूजन करें उसका वन्दन करें।।

मृत देह तक काम में आयें,
सींघ से कंघी आंत से तंतु,
जीवन भर साथ निभाये।।

उस शक्ति को नमन् करें,
गौवर्धन है नाम जिसका,
पूजन करें उसका वन्दन करें।।

२२ अक्तूबर २०१४ दीपावली पर्व

दीप जलाते माटी के,मन के दीप जलाओं,
तम् दूर करो मन के,सबको गले लगाओ।

फैला है अन्धकार द्वेष-भाव का,
दिन चार कदम से क्या होगा,
मंजिल लम्बी समय लघु,
बन प्रकाश पुंज,ज्ञान दीप जलाओं,

दीप जलाते माटी के,मन के दीप जलाओं,
तम् दूर करो मन के,सबको गले लगाओ।।१।।

भटके हुये है विषयों में,
अन्ध अमावस में खोये हुये,
रात अलौकिक करने को पूर्णिमा कि भाँति,
दीपक बन दीपक जलाओं,

दीप जलाते माटी के,मन के दीप जलाओं,
तम् दूर करो मन के,सबको गले लगाओ।।२।।

सुलग रहीं है जो अग्नि मन के भीतर,
बन आतिशी विस्फोट,
इस दिवाली हो शपथ बन शांति दूत,
नया सवेरा अपनाओं,

दीप जलाते माटी के,मन के दीप जलाओं,
तम् दूर करो मन के,सबको गले लगाओ।।३।।

शनिवार, 20 सितंबर 2014

सलाह-ए-इश्क २१ सितम्बर २०१४

क्यूँ झुकाकर नजरें मुस्कराकर देखते हो,
नजर में रह जाओगे या नज़र में आ जाओगे।

तकते रहे यूँ ही अगर दरम्यान-ए-शख्सियतों के,
बद में आ जाओगे या बदनाम हो जाओगे।

साथी मिल भी गये आपको शोहरत के सहारे,
जरूरी नही उनसे वफा पाओगे या जफा पाओगे,

मंजिल कहाँ मिलती है सबको इश्क के डगर में,
सफ़र में आ जाओगे या सफर मे ही रह जाओगे।

दुश्मन रहा है जमाना सदा मौहब्बत के नुमाईन्दों का,
थककर सो जाओगे जंग में या सुला दिये जाओगे।

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

हाल ए दिल १८ सितम्बर २०१४

जीना हमारा नश्वर हो आया,
तेरी वफा कि कसम याद आ गयी,
रात ज्यों ज्यों कहरने लगी,
त्यों त्यों यादों कि महक चहकने लगी,
तेरी यादों की कसक इस कदर बढी,
जैसे बढ़ती है इंतजार की घडी,
जब कहर सहा ना गया तेरी याद का,
कलम चली इस तरह कि गजल हो गयी,
तू आये ना आये ये तेरी सदा है,
यादों मे रहेंगी तू ये मेरी कदा हो गयी,
हाल देखकर मेरा दोस्त ने पूछ लिया,
किस बेवफा के कारण तेरी ये फिजा़ हो गयी,
नाम ना तेरा ले सका तोहीन प्यार की होती,
समझा दिया उसको हाल मे बीमारी दिल की हो गयी।

रविवार, 14 सितंबर 2014

हिन्दी दिवस

हिन्दी है भाषा मेरी हिन्दी मेरा अभिमान।।
हिन्दी से है भाषा के माथे पर बिंदियाँ,
हिन्द वतन है मेरा हिन्दी भाषा का श्रंगार,
हिन्दी में सीखा अक्षर ज्ञान हिन्दी है भाषा विज्ञान,
हिन्दी में कविता मेरी हिन्दी में बस्ती है जान,
हिन्दी के ह में ना लगे हलन्त ये दुनिया को दिखलाना है।
हिन्दी बने विश्व कि भाषा ये स्वप्न है मेरे संज्ञान,
हिन्दी है भाषा मेरी हिन्दी मेरा अभिमान।।

शनिवार, 6 सितंबर 2014

वह एक है

जर्रे जर्रे  में नूर खुदा का और कण-कण में बसते भगवान।
उसी मिट्टी में कृष्ण जन्मे और उसी में जन्मे रहमान।
सभी बने जब तत्व पाँच से जल,मिट्टी,अग्नि,वायु और पाँचवा आसमान।
फिर इंसानियत को क्यूँ भूल गये अरे नादाँ इंसान।
रूह कहो या कहो आत्मा बोध एक है बताते है विद्वान।
मजहबी शब्दों में फिर क्यों बाँट दिये वही खुदा वही भगवान।
वह एक है वह नेक है जिसने रचा जहान,
पूजा कर रिझा रहे,जिसे हिन्दू और इबादत कर मुसलमान।
ना देखा उसे मंदिर मे ना पाया मस्जिद मे ढूँढ़ मरा नादान।
जर्रे जर्रे  में नूर खुदा का और कण-कण में बसते भगवान।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

मेरे दोहे

०५ सितम्बर २०१४

विद्यालय में नित जाते और ना करते विद्या दान,
वह गुरु कैसे भये जिनका पैसा है भगवान।।

गुरुओं की आज लाटरी पंरपरा हुई अवसान,
सरकारी जेब पर नजर रखें और राजनीति है काम।।

गुरु पंरपरा धूसित भयी शिक्षा भयी व्यापार,
स्कूल बनाओ या शिक्षक बनो समझो बेडा पार।।

गुरु नाम है दाता का विद्या का करे जो दान,
कलंक लगाये जो इस नाम को समझो वह आशाराम।।

गुरु बनकर जो गिर गये कुलषित करे नाम को बनकर के चंडाल,
नाम ना लीजो दया भाव का फाँसी दो तत्काल।।

ज्ञानी पुरुष वह है जिनका शील सुभाय,
कम बोले(वह) ज्यादा तोले(लोग) और अहसास(विरोधियों को) दे कराय।।

जो लोग करत है मीठी बाते और भीतर रखते घात,
नज़र लगाते जाल बिछाते लुका छिपी उनकी लोमड़ी वाली जात।।

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

शिक्षक (गुरु) ०५ सितम्बर २०१४

शिक्षक दिवस है आज जरा भान करें,
गुरु पूजनीय गुरु वंदनीय आओ इनका सम्मान करें।।

गुरु ज्ञान सिखलाते,अच्छे बुरे मे भेद बताते,
जीवन बोध कराते आओ उनका सम्मान करे।।

शिक्षा है मूल मंत्र, जीवन का आधार तंत्र,
बिन शिक्षक कैसे मिलती आओ उनका गुणगान करें।।

वेद पढे़ कुरान पढे़ चाहे बाईबिल या रामायण पढे़,
अक्षर ज्ञान दिया गुरु ने आओ उनका व्याख्यान करें।।

जीवन का आधार गुरु हैं पूजा का सार गुरु है,
मेरे शिक्षक मेरे गुरु है आओ इनका गुणगान करें।।

मेरे जीवन के तीन स्तम्भ मात-पिता और गुरु है,
प्रथम ज्ञान दिया मात-पिता ने दूजे भगवान गुरु है।।

मात-पिता ने दिया स्वर ज्ञान जीवन विज्ञान गुरु ने,
शिक्षा दी जिसने दीक्षा दी आओ उनको नमन करे।।

बुधवार, 3 सितंबर 2014

अपनी व्यथा ०४ सितम्बर २०१४

कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
बचपन तो बचपन होता है सुना था,
सब ज्ञान बोध से अनजाना,
प्यार-दुलार था सब कुछ जिसका खजाना,
ना मिला खजाना रहा अनजाना सबसे,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
अब हुआ व्यस्क तो हुआ रस्क,
शिक्षा का बोध हुआ सुबोध हुआ,
संसाधन ना साधन कमी रही असाधारण,
साया भी उठा पिता का कारण बना अकारण,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
अब बालक बना पालक परिवार का,
ना साथ किसी अपने साथी या रिश्तेदार का,
सब मतलब कि शिक्षा है यारी और रिश्तेदारी,
सब खुले  खजाने मेहनत के है मुहाने,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
अब योगदान हुआ जब जवान हुआ,
सेना कि ईकाई में अपना भी अंशदान हुआ,
अंश के प्रतिमान से नये संबंधों का निर्माण हुआ,
संबंध बनें मंगल के लगा जीवन सुधरेगा,
संबंध थे विकारित खो गये सपने सुहाने,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।
परिवार के पोषण के लिया जीता हूँ,
दुनिया को देख व्यथित रहता हूँ,
किसी को अपना पाता हूँ ना किसी से कहता हूँ,
दोराहे पे खड़ा हूँ जिसकी कोई मंजिल है ना मुहाने,
कहाँ गए वो सपने सुहाने,
जिनको बुना था मैने ख्यालों मे।

फरियाद विरही की ०३ सितम्बर २०१४

ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
तुझ बिन सब सूना- सूना लगता है।।
घर का आँगन, खेत खलियारा,
कल तक था जो मुझको प्यारा,
सब बेगाना लगता है,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
कल तक हरी-भरी थी मेरे जीवन कि बगिया,
आज वीरान है जीवन की नगरिया,
कैसे सहूँ ये अकेलापन,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
ऋतुओं के मेले भी मुझको अब खलते है,
दिन के उजाले अमावस की रात लगते है,
अब मान भी जाओ,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
अगर तुम ना आये तो मै जी ना पाऊँगा,
कैसे कहूँ कि तुम बिन मै रह ना पाऊँगा,
एक बार खता तो बता जा,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।
अब साँस अटकी है कोई तुम मे,
अब अन्तिम बेला है जीवन की,
मुक्ति में तो साथ निभा जा,
ऐ मेरे हमसफर तू लोट के आजा।

शनिवार, 30 अगस्त 2014

प्रीत ना होती जग में ३० अगस्त २०१४

प्रीत न होती जग में क्या हो जाता,
ना बनते मीत जग सूना हो जाता।
या विश्वदेव कुटम्बकम का नारा सार्थक हो जाता,
प्रीत ना होती जग मे क्या हो जाता।।
ना बंधते बंधन कसमों के,
प्यार वफा जैसे शब्दों के,
ना तडपन होती मन में,
ना धड़कन बढ़ती दिल में,
ना होती जग में हँसाई,
ना होती कोई रूसवाई,
ना बनती कोई बातें,
ना होते रिश्तों के धागे,
ना होता सजना संवरना,
ना होता बनना बिगड़ना,
ना दिल में चाहत होती,
ममता भी ना होती सीनों में,
निर्जीव सी दुनिया होती,
पर जीवन सजीव हो जाता,
निर्जीव दुनिया में अपना सपना हो जाता,
क्योंकि ना मतलब होता मतलब का,
जो होता तेरा वो मेरा हो जाता,
ना कोई कहता मेरा सब सबका हो जाता,
ना होता फसाद धर्म नाम पर,
जाति होती बस मानव नाम पर,
ना होता सीमा का अतिक्रमण,
स्वछन्द होता विश्व भ्रमण,
होती सबको एक ही आशा,
सब समझते प्यार की भाषा,
नादान भी जग में जी पाता,
सपना है अपना सार्थक हो जाता,
ना बनते मीत जग सूना हो जाता।
या विश्वदेव कुटम्बकम का नारा सार्थक हो जाता,
प्रीत ना होती जग मे क्या हो जाता।।

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

इलाज चाहिए २८ अगस्त २०१४

दिल की बीमारी है,इलाज चाहिए,
जहान मे रहे जान तो एक जान चाहिए।।

उम्र का तकाजा है इस रोग का गुण,
निदान के लिए मेहमान नया चाहिए।।

तलाशती है निगाहें हर चेहरा बने कोई हमराह,
सूरत के साथ सीरत की जुगलबन्दी चाहिए।।

नेमत है खुदा का प्यार अगर दे बख्सीस,
रहमतों की दरकार है कोई एक नज़र चाहिए।।

नासाज है सावन का हर एक पल बूँद के बिना,
पपीहा है आज दिल जो बुझे प्यास बरसात चाहिए।।

तडपन मिट जाये मन की धड़कन बनकर,
इजहार बन जाये इलाज वो दवा चाहिए।।

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

बेगाना २७ अगस्त २०१४

रहा अपनों की शादी में अब्दुल्ला दीवाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

ये दुनिया है मेरे लिए उलझी एक कहानी,
मै तो हूँ नादान ना समझी दुनिया ने नादानी,

हजारों मुसीबतें है राहों मे हर राह से मै अनजाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

कल जो मेरे अपने थे जो मेरे सपने थे,
था मै भी उनका वो माला मेरी जपते थे,

आज नहीं वो जानते कौन हूँ उनके लिये मै अनजाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

यहाँ हर जर्रा है धोखा ये दुनिया है मतलब की,
ना रख चाहत किसी से किसको पडी है तेरे गुरबत की,

जीना है मान से सम्मान से तो खुद है सम्मान बचाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

रविवार, 24 अगस्त 2014

मेरे मित्र २३ अगस्त २०१४

कुछ मित्रों ने हाथ बढा़या और छोड़ दिया,
संदेश दिया ओर लिया और बात करना छोड़ दिया,

यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप लगी अपनी सी।

आप को देखा तो ख्वाब संजो लिए,
ख्वाब में हमको मिली दीवानगी आप साथ हो लिए,

ख्वाब में ही जिंदगी के बीज बो लिए,
ना कि बात जब साथी ने हम भी चुप हो लिए,

कर हिम्मत फिर से बात कि कोशिश के लिए,
आखों से जरिये बात के  लिये इशारे हो लिए ,

इशारों ही इशारों मे मुलाकात का तय समय कर लिया,
सपने मे तो अच्छा था तय कर हकीकत मे ऐतबार कर लिया,

उठा जो सपने से हकीकत से मुलाकात हो गयी,
सोची भी ना थी जो उनसे वही बात हो गयी,

मुँह फेरकर चले जब वो ख्वाब सा अहसास करा दिया,
जज्बातों को रखना संभाल कर दुनिया है मतलब की बता दिया।

कुछ मित्रों ने हाथ बढा़या और छोड़ दिया,
संदेश दिया ओर लिया और बात करना छोड़ दिया,

बुधवार, 20 अगस्त 2014

अपने या परायें २१ अगस्त २०१४

रोयें जब भी हम वो मन ही मन हर्षायें,
खुशी मनाई इतनी अन्दर ही अन्दर,
जैसे दिये दिवाली के हो जलायें।।

हमने की शिद्दत सदा जिनके लिये,
गहरे खरीदे जख्म़ उन्होंने हमारे लिये,
शायद थी कसम खायी रहेंगे खाक में मिलाये।।

रही बन्दगी उनकी हमसे ऐसी,
जीवन जिन पर वार दिया,
ना समझ पायें कि वो अपने थे या पराये।।

भूल थी शायद हमारी या वफा की,
बेबिन्हा दुश्मनी ली उनसे जो थे पराये,
जफा़ वफा के फेर मे रह गए छले छले।।

नातकुल्लफी थी हमारी उनसे ऐसी,
ना जाने दिल में हमारे उनके लिये बात थी कैसी,
था संबंध खून का जिनसे वो ही निकले पराये।।

सोमवार, 18 अगस्त 2014

दोस्ती १९ अगस्त २०१४

दोस्त से है ईद दोस्त से दिवाली,
दोस्त से है होली का त्योंहार,
ना महक हो पास दोस्ती की,
तो सब कुछ है बेकार।।

दोस्ती का फूल है सबसे अच्छा,
जो जीवन में खिल जाये,
जीवन हो जाये फूल कि बगिया,
महक चारों ओर बिखर जाये।।

दोस्ती होती है जब मिलते है मन से मन,
तन रहते है दो पर एक हो जाते है मन,
भीड़ पडे जब एक पर विचलित हो दूसरा जाये,
वज्र पडे चाहे जितना पर खुद पर दिल न दोस्त का दुखने पायें।।

दोस्ती सम्बन्ध है प्रेम भाव का,
जो एक बार हो जायें,
है दोस्त वही अच्छा जो,
राह दिखाये आपको,सही गलत मे भेद कराये।।

वह दोस्त दोस्त नहि हो सकता है,
मतलब से हाँ मे हाँ करता है,
वो दोस्ती क्या खाक करेगा,
जो जन - धन पर नजर रखता है।।

सहायता २२ फरवरी २०१४

मत बनो रहबर किसी का,
यहाँ सब मतलब रखते है,
निकल जाये हाथ उसका,
फिर कोई नही है किसी का।

जमाना है खुदगर्जी का,
कोई नहीं है किसी का,
स्वार्थ की सरपरस्ती है,
नाम है सेवादारीं का,

भाई,बहन,बन्धु,सखा,
सब रिश्ते है मतलब के,
मतलब है जबतक उनका,
जुँबा पर हर वक्त नाम उन्हीं का,

मतलब निकल जाते ही,
शेष नहीं कुछ रह जाता,
बन जाती है जिंदगी फसाना,
बस लांछन ही उसमें रह जाता,

मत बनो रहबर किसी का,
यहाँ सब मतलब रखते है,
निकल जाये हाथ उसका,
फिर कोई नही है किसी का।
कापीराईट अधिकार सुरक्षित-
रचियता - पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

व्यथा संरक्षक की ०२ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां एक संरक्षक की जीवन व्यथा है जो एक बेटा-बेटी को पालता है और उनके वयक्तिगत हठ जिसमें उनकी अपनी  भविष्यमयी हानि है से वयथित होकर उनको अपनो से अलग करता है :-

सुमन, सुमन नहीं हैं उस उपवन का,
सीँचाँ है जिसे जिस माली ने,
मौजूँ नहीं सुमन, माली के उस उपवन का।

सोच-सोच पौध जमाया था,
वृक्ष बन सुमन खिलेगा उपवन में,
मन ही मन हर्षाया था,
हर्षयोग बनाने को पौध को सींचाँ,
रोप-रोप पौध एक स्वप्न खींचा,
स्वप्न के अलग-अलग रोप की सोंच को खींचा,
खींच-खींच स्वप्न सोच,मन उलसाया था,
हर्षयोग बना वियोग, जब पौध अकुलाया है,
अकुलायित पौध ने नया रूप आज दिखलाया है,
खिला सुमन मिला नहीं माली को,
सुमन मन हर्षित है पूजा में अर्पण को,
क्रमबद्ध है आज सुमन पूजा के तर्पण को,
तर्पण के अर्पण की माला है चढ़ने को बलिवेदी पर,
है वेदना माली की आज यहीं,
बलिवेदी पर आज सुमन, अन्यत्र की वेदी के,
व्यथित मन माली है, उपवन से मुख मोड़ लिया,
रोपा था जिस पौधे को सुमन की खातिर,
आज हर नाता उससे तोड़ दिया,
सुमन गया उपवन हुआ पराया,
आज साथ नहीं माली से उपवन का।

संघर्ष बच्चे का ०३ अगस्त २०१४

मेरी यह पंक्तियां उस बच्चे पर आधारित हैं जो बचपन से ही प्यार,दुलार,धन और व्यवस्था व विश्वास के अभाव में रहा है किन्तु हिम्मत नहीं हारता और अपनी जिंदगी को समकक्ष समाज के साथ चलाने के लिए संघर्षरत हैं।

जीवन है एक डगरिया बस चलते ही जाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है।।
राह अंधेरी रात घनेरी दीपक लौ नहीं दिखती,
साया न हो साथ तो क्या सपनों को पाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (१)
काँटे है बिछे जिन राहों में, जंगल भी घनेरा है,
जंगल भी बचाना है और फूलों को सजाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (२)
हूँ अकेला भले ही, भले ही राह पथरीली हों,
जवानी हो तराना तो क्या, बचपन से ही बचपन को बचाना हैं,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (३)
जीवन कर्म है चाकरी, चाकरी सुलभ नहीं होती,
अंश के निज बचपन कि खातिर कर्म करते ही जाना हैं,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (४)
कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"


उद्गार सामाजिक चोट से ०४ अगस्त २०१४


मेरी यह पंक्तियां आजकल विभिन्न जगहों पर हो रहे दंगे फसाद से पहुँच रही सामाजिक चोट का उद्  गार है :-

खतरे में हैं आजाद ये भारत, हाय ये कैसी बीमारी,
मानवता हुई दागदार और इंसान हुआ स्वार्थी।।

आलोचक हूँ उन शब्दों का,जो अर्थ लिये हो द्विअर्थी,
बाहर से तो रोशन चेहरा,अन्दर से है मुर्दापरस्ती।१।

भीड़ भरी जनता में,अपनो को खोजता है,
है क्यों परेशान अपनो के लिये,अपने ही तो है घाती।२।

अपने ही हैं जो, अपनो को बाँट रहे,
जाति और धर्म पर अपनो को छाँट रहें।३।

एक जर्रे लालच कि खातिर गिरा है मानव आज,
इंसानियत हुई बदनाम और खत्म हुई इंसान परस्ति।४।

जेब और जेग कि खातिर, जोकि बन गया है,
चूसता है खून अपनो का, मानवता कर दी सस्ती।५।

मानवता हुई दागदार और इंसान हुआ स्वार्थी।।

कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"



अभिव्यक्ति ०५ अगस्त २०१४


मेरी ये पंक्तियां ऐसे व्यक्ति के हालात का चित्रण करती है जो अपनो का सताया हुआ है और विवश हैं :-

कैसे लिखूँ, कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।
जिंदगी एक कहानी है जिंदगानी के सफर की,
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

किस्से लम्बे है ये तेरी मेरी कहानी के,
सोचता हूँ जब बैठकर लिखने को हाल-ए-ब्याँ,
शब्द मिलते नहीं लिखने को सफर में,
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

रिश्ते जो बनाये खुदा ने खून से जोड़कर,
अच्छे निभायें अपनों ने वक्त पर मुँह मोड़कर,
बन्धन तोड़ दिये सारे खून कि निशानी के।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

अपनो ने किया गिल्टी जिसे,गैरों ने सराहा है,
जब ठुकराया अपनों ने परायों ने दिया सहारा है,
बस आज वहीं है अपने कल थे जो पराये मेरी कहानी से।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

मुफलिसी में जी लि जिंदगी अपनों के लिये,
ना रहे घर रहे दर बदर बनाने को विरासत,
जब अपनों ने कि सियासत पन्ने खत्म हुए कहानी के।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।
कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"