सच को सच कहना जैसे गुनाह हो गया,
देकर सर्वस्व जैसे सज़ावार हो गया,
कहा जिसने भी सच को बहुत दूर बहुत दूर...यारा बहुत बहुत मजबूर हो गया ।।
अदब का लिबास है उनकी बातों के शरीर पर,
हँसी है लपेटी कपट को शमशीर कर,
सत्य का पुरोधा खड़ा अकेला रह गया।।
करते बात पीठ पीछे जो बड़े होशियार हो गये,
लेकर चले जो झूठ का सहारा सामाजिक यार हो गये,
सच बोलकर "नादान" मगरूर हो गया ।।
छिछली चुनी चाहें राह, जीतकर वो तन गया,
आगे बढ़ जो चला पथ पुरोधा बन गया,
मतलब निकाल जो गया परवाना बन गया ।।
मतलबी फ़साने हल करने को,
तू भी पाला बदल लेता "नादान"
जो भी पीर बना वो बेगाना हो गया ।।