कोई समझकर ना समझ सा बन जाता है,
कोई नासमझ को हलकान कर जाता है,
ये जो दुनिया है दुनिया बडी जालिम है,
कोई बनकर दोस्त घात कर जाता है,
मिलते है कई अपने शिक्षक गर्दिशें दौर में,
लगाकर मरहम बातों का शूल में शूल कर जाता है,
जब आती है किस्मत बनकर अपने सब पर,
अपना जो सपना था वही बनकर मूल आता है,
वक्त बता देता है भेद अपने अपने का,
गर्दिशे दौर में जो गैर काम कर जाता है।।