बुधवार, 11 जुलाई 2018

प्यार की नींव दिनाँक १२जुलाई२०१८

हकीकत में ये पयाम हुआ है,
दोस्ती में वो हमारे नाम हुआ है ।।

कारवाँ निकला है जिस कूचे से,
वो कूचा भी बदनाम हुआ है ।।

निशाँ तक ना थे जिस गुनाह के,
मुकदमा उस ही के नाम हुआ है ।।

कर से करतब का कोई सबूत नही,
आला-ए-निगाह से गुनाह अंजाम हुआ है ।।

महरूम ना थे जिनसे कल तक,
आज उनसे प्यार का पैगाम हुआ है।।

अनपढ़ था आज तक निसार में,
ढाई अक्षर पढ़कर गहरा ज्ञान हुआ है ।।

शनिवार, 9 जून 2018

सुन्दरता पर मन का विचलन दिनाँक ०८ जून २०१८

सुहाना मौसम लगने लगा जब चेहरा उनका नज़र आया,
थी छायाकृति फिर भी लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।

न कह पाये कुछ न सुन पाये,
शब्द अधरों पर आकर रूक गये,
मायूसी छायी थी जो काफ़ूर हुयी,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
उल्फत में पड़ गये खड़े खड़े,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया।। १।।

उम्मीदें जो सफ़र में लगी थी,
को मंजिल नज़र आने लगी,
राहे थकान काफ़ूर नजर आयी,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
सूनी वादियाँ सङ्गीत बजाने लगी,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।२।।

उम्र जब चाहत की दरकार कराने लगी,
ख्वाबों में नित नयी तस्वीर आने लगी,
मन का पपीहा राग तब गाने लगा,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
मन कलिका खिल फूल बनने लगी,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।३।।

होने लगी कहानी जवानी कि रवानी जब,
नूर जब चेहरे का नैनों में नज़र आया,
बन्दगी आँखों ने आँखों की शुरू की,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
मन्नतें नियामक होने लगी तब,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।४।।

तारें भी आसमाँ के नजदीक आने लगे,
ख्याली गुफ़्तगू के दरम्याँ तोड़ लाने लगे,
दूरियाँ सिमटकर कदमों में आने लगी,
जब चेहरा उनका नज़र आया,
चकोर की ललक बुझाने को जैसे,
लगा चाँद जमीं पर उतर आया ।।५।।


रविवार, 25 मार्च 2018

रामनवमी पर्व कैसे मनाऊँ दिनाँक २५ मार्च २०१८

कोख मारकर कन्या जिमायें,
रख कोख की आस,
गोद को बिसरायें,
होते हैं आज भी सीता हरण,
कैसे राम जन्म मनाऊँ ।।

राम पूजते गली गली,
घर घर रावण बैठे,
इंसानी वेश धर कर्म
गर्त का करतें जाते,
फिर भी राम भक्त कहलाते,
कैसे पहचान कराऊँ।।

मानव मर्यादा जो धरते,
जो बात मर्म की करते,
बिसरा कर कौशल्या,
सूपर्णखा को वरते
दशरथ भेजें आश्रम द्वार,
कैसे पूजन कर पाऊँ ।।

धन, बल, यश के लिये,
छल कपट दम्भ से जो जिये,
निति बुरी से नीति जो धरे,,
मान-मर्यादा त्यागकर लखन को सताये,
वही आज राम वेश धरे,
कैसे रामनवमी पर्व मनाऊँ ।।


गुरुवार, 4 जनवरी 2018

प्यार,धर्म ओर परामर्श दिनाँक ०४ जनवरी २०१८

उफ्फ .....
दो दिल ,
तीन लफ्ज़,
हजार ख्वाईशें,
बेइन्तहा मोहब्बत,
अकेलेपन से दूरी ,
आसान सी जिन्दगी,
विश्वास साथ,
धर्म के ठेकेदारों से अगर मिलें मुक्ति,
अगर राष्ट्र का कानून हो विकसित,
ना भय हो फिर से तीन शब्दों का,
सोच बनी हो परिपक्व अगर,
बन्द से बाहर निकलें जो,
खुला आसमाँ है उड़ान के लिये,
विश्व को परिवार जो मानते हैं हम ।।