रोयें जब भी हम वो मन ही मन हर्षायें,
खुशी मनाई इतनी अन्दर ही अन्दर,
जैसे दिये दिवाली के हो जलायें।।
हमने की शिद्दत सदा जिनके लिये,
गहरे खरीदे जख्म़ उन्होंने हमारे लिये,
शायद थी कसम खायी रहेंगे खाक में मिलाये।।
रही बन्दगी उनकी हमसे ऐसी,
जीवन जिन पर वार दिया,
ना समझ पायें कि वो अपने थे या पराये।।
भूल थी शायद हमारी या वफा की,
बेबिन्हा दुश्मनी ली उनसे जो थे पराये,
जफा़ वफा के फेर मे रह गए छले छले।।
नातकुल्लफी थी हमारी उनसे ऐसी,
ना जाने दिल में हमारे उनके लिये बात थी कैसी,
था संबंध खून का जिनसे वो ही निकले पराये।।