मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कोरोना वैश्विक संक्रमण दिनाँक १५ अप्रैल २०२०

सब शान्त है, सभी अशान्त है,ये कैसा द्वन्द्व है ? ।
प्रकृति का रौद्र रूप है अथवा,
मानव द्वारा विकसित कुपित कोप है,
कौन है नायक इसका, कोरोना है अथवा महायुद्ध है 
अर्थ के तन्त्र में विकसित चलित शीत युद्ध का फलस्वरूप है,
साम्राज्यवाद की अतिवादिता का मौन रूप है,
ये कैसा योद्धा है? अदृश्य है जो परमवीर है,
मुँह छिपाता जिससे हर शूरवीर है,
ये कैसा विषाणु है, नाम जिसका कोरोना है,
सब ओर त्राहिमाम है, दुःखी हर कोना- कोना है,
जिनफिंग की सौगात है ये पूरब का बेटा है,
बरपाने को कहर आगोश में अपनी, 
उसने दुनिया को समेटा है,
फिर भी कुछ साम्राज्य अछूते थे,
नागरिक भी उनके सीधे और सच्चे थे,
लेकिन उनमें एक वर्ग था आतातायी,
उसको ना बचने-बचाने को, कोई सीख सुहाई,
खुद तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी साथ लेकर डूबेंगे,
उक्ति को पूरा करने की जैसे कसम है उन्होंने खाई,
मेरे देश का पूरे प्रदेश का है बुरा हाल किया,
जन-जन में विषाणु भरने का पूरा पूरा इंतजाम किया,
फिर भी धर्मानुयायियो ने अपने धर्म को पूर्ण अंजाम दिया,
विषधर जन का विष हरने को,जन-मन की पीर  हरने को,
राज-काज के प्रधान सेवक से इकाई के प्रथम सेवक तक, 
सभी ने अपने-अपने कर्म को पूर्ण-पूर्ण अंजाम दिया,
किसी ने तन से किसी ने धन से सब ने मिलकर,
मन से अपने हिस्से की जैसे सेवा की,
हो सकता है निपुण हो कर्म-धर्म-मर्म में विचारों से,
कम न समझना अन्य को ओर भी दक्ष है आचारों में,
"नादान" भी ऐसे में कहाँ था अनजान,
अपने मन कर्म वचन से उसने भी पूर्ण दिया अंजाम, 
कोरोना को हराने को अपने हिस्से का पयाम दिया,
ना किया दिखावा जो बन सके आयाम दिया,
तू भी न कर दिखावा, परोक्ष कर्म है भारी,
अनुशासित कर्म कर, अनुशासित कर्म है भारी,
कोरोना क्या बचेगा अनुशासन के योग से दुनिया है हारी ।।