शनिवार, 15 नवंबर 2014

प्रभु की महिमा १६ नवम्बर २०१४

१६ नवम्बर २०१४

देखा है तेरे नूर का अजब नजारा,
कहीं सूखा सघन,कहीं प्यार है नजारा।।

सजाने को जहान तूने,क्या-क्या ना बनाया,
पृथ्वी,चाँद,सितारे,सूरज और आकाश बनाया,
सबको एकसा पाठ पढा़या,झिलमिल मिलकर करते है सारे,
तेरा करिश्मा है न्यारा,मन भावन प्यारा,
कहीं सूखा-----------------------------------।।१।।

थार-मरुस्थल और पर्वत सजायें,वन,उपवन और खलिहान सजायें,
कहीं समतल धरती बडी सी झीलें,कहीं गहरा है सागर बनाया,
सागर को भरने को, कल-कल कर बहती हैं नदियाँ,
तूने जीवन का संगीत सजाया, जीवन का संगीत लगे है प्यारा,
कहीं सूखा--------------------------------------।।२।।

चर-चराचर जगत बनाया, जाने कितने जीव बनाये,
पशु-पक्षी, नर-भक्षी, शाकाहारी कीट बनायें,
सबके पोषण हेतू,उनके निर्वासन-निर्वाहन हेतु,
सारी व्यवस्था भर दी, तेरा प्रबंधन सबसे न्यारा,
कहीं सूखा-----------------------------------।।३।।

सबसे अलग तूने इंसान बनाया,जिसमें बुद्धि,बल,विवेक सजाया,
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम,यहूदी,सिख,पारसी,क्रिश्चियन,
ना भेद किया,सबको एकसा देह दिया,इंसानियत का पाठ पढा़या,
फिर क्यों एक-दूजे के दुश्मन,दुखी है "नादान" बेचारा,
कहीं सूखा--------------------------------।।४।।