शनिवार, 18 मार्च 2023

सफ़र एक आईने से दिनॉक १९ मार्च २०२३

सफ़र को तुम भी खड़े थे, हम भी खड़े थे,
दोनों ही चलने को तैयार खड़े थे ।।

सफ़र दोनों का था एक ही जैसा,
दोनों के रास्ते कांटों भरे थे ।।

राहें सफ़र आसान न था दोनों के लिये,
हम प्यार संग चले तुम मतलब साथ चले थे।।

चुनी राह दोनों ने आगे बढ़ने की खातिर,
तुम ही क्यों ? निकले आगे, हम वहीं खड़े थे ।।

निकले जो आगे ध्यान उन्हीं पर था हमारा,
सशक्त हम ज्यादा थे, पर विभीषण तेरे संग चल पड़े थे ।।

देखा जो झाँककर अपने सफ़र को आईने में,
कुछ अपने ही थे जो टांग को खींचे पड़े थे ।।

जिन्दगी की दौड़ से हर बार पाया हमनें ये सबक,
"नादान" थे बड़े संजीदा,तुम मतलबी बड़े थे ।।

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

जिन्दगी एक नजर में दिनॉक १७ मार्च २०२३

कभी इधर गया कभी उधर गया,
जिधर भी गया खराब थे उधर के रास्ते ।।

ढेर था विचारों का, हृदय उमंग भरा था,
न कह सका न सुन सका, मन भरा भरा था।।

शिकवा करता क्या किसी से सभी अपने थे,
बैठा जब भी खाली मन सुलझाने मन के फासले।।

कोशिश बेकार गयी हर बार, मुकम्मल करने की,
संजीदा जब भी हुआ, सुधार के वास्ते।।

चल रही है गाड़ी, ठहर सी गई है जिन्दगी,
चलाने हुनर जब भी निकला, घर के वास्ते।।

गिरा उठा, उठा गिरा, जीने के लिये कई बार मरा,
खड़ा ही पड़ा,हर बार मरा जिन्दगी के वास्ते ।।