शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

मेरे दोहे

०५ सितम्बर २०१४

विद्यालय में नित जाते और ना करते विद्या दान,
वह गुरु कैसे भये जिनका पैसा है भगवान।।

गुरुओं की आज लाटरी पंरपरा हुई अवसान,
सरकारी जेब पर नजर रखें और राजनीति है काम।।

गुरु पंरपरा धूसित भयी शिक्षा भयी व्यापार,
स्कूल बनाओ या शिक्षक बनो समझो बेडा पार।।

गुरु नाम है दाता का विद्या का करे जो दान,
कलंक लगाये जो इस नाम को समझो वह आशाराम।।

गुरु बनकर जो गिर गये कुलषित करे नाम को बनकर के चंडाल,
नाम ना लीजो दया भाव का फाँसी दो तत्काल।।

ज्ञानी पुरुष वह है जिनका शील सुभाय,
कम बोले(वह) ज्यादा तोले(लोग) और अहसास(विरोधियों को) दे कराय।।

जो लोग करत है मीठी बाते और भीतर रखते घात,
नज़र लगाते जाल बिछाते लुका छिपी उनकी लोमड़ी वाली जात।।