सोमवार, 24 अप्रैल 2017

सुकमा नक्सली हमले के विरोध में दिनाँक २५ अप्रैल २०१७

कैसा होता है 56" सीना,
एक बार हमको भी दिखला दो।।

कहीं नक्सली कही जिहादी,
कारण कोई हो सिर्फ मरे सिपाही,
ये घड़ियाली आँसू है जब तक,
तब तक मूर्तरूप न दिखे कार्यवाही,
ये सीमा है यहाँ कागज के प्रमाण नही सजते,
चंद सिक्के खनकाकर अरमान नही सजते,
पापा पापा कहते गुड़िया सो जाती है,
थोड़ी सयानी सी होती सपनो में खो जाती है,
बेटा बचपन खो देता है,श्रृंगार सुहागन खो जाती है,
बूढ़े हुये माँ-बाप ना जीते है ना मरते है,
देख सफेद लिबास जवानी का दिन बहुत अखरते है,
जिनको आदत हो खेले खून की होली,
उनको काव्य में श्रंगार अच्छे नही लगते,
हर बार वही भाषा वही निन्दा की बोली,
जब तक न दिखे असर वार अच्छे नही लगते,
शहीद हुआ नही कोई बेटा शासकी घरद्वारों से,
शायद दखल दिखता नही इसी लिये आतंकी गलियारों में,
लोकतंत्र की परछाई देखों कुलीनतंत्र का कुहासा है,
सत्ता के नायकों में देखो. परिवारी व्याधा है,
शायद मरा नही कोई शासन के पहरेदारों से,
क्योंकि लड़ता है सैनिक परम्परागत परिवारों से,
कभी सुकमा नक्सली हमला,कभी पत्थर चलते काश्मीर में,
क्या करना है अन्तिम क्षण की अन्तिम नीति हमको भी समझा दो,
बहुत हुआ अब कैसा होता है 56" सीना,
एक बार हमको भी दिखला दो।।

मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है दिनाँक २४ अप्रैल २०१७

मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है,

बचपन की यादों का,ज्यों ज्यों ज्वार आता है,
मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है।।

वो मेरे खेत ओ खलियान,
जिनमे पंछी करते कलरव गान,
देते वो ऐसी तान,विह्नगम संगीत स्वर आता है।
बचपन की यादों का,ज्यों ज्यों ज्वार आता है,
मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है।।

बैलों के गले की घंटी,जब मयताल बजती है,
खेतों में मेहनतकश हरियाली यों सजती है,
क्या सावन क्या भादों, चमनबन खलियान गुलजार नजर आता है
बचपन की यादों का,ज्यों ज्यों ज्वार आता है,
मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है।।

वो नीम ओ बरगद की छाँव,गुड़गुड़ाते हुक्कों की तांव,
वो अखाड़े में पेलमपेल, वो कबड्डी का खेल,
पिता की डाँट,माँ का वात्सल्य,दादा-दादी का दुलार नजर आता है,
मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है,
बचपन की यादों का,ज्यों ज्यों ज्वार आता है,
मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है।।

जीवन का द्वन्द्ध है, धन की मारामारी,
शहरीकरण की सम्पन्नता में एकाकी बीमारी,
शाम की लालिमा आते, चौपाल पर यार नजर आता है।
बचपन की यादों का,ज्यों ज्यों ज्वार आता है,
मेरे गाँव पर मुझे प्यार आता है।।

रविवार, 23 अप्रैल 2017

तीन तलाक दिनाँक २४ अप्रैल २०१७

तीन तलाक

जिन्दगी गमों का सागर हो गयी,
जबसे तुमने दिल से निकाला,
खुशियाँ जिन्दगी की काफ़ूर हो गयी।।

ये विरासत थी हस्तियाँ बनाने की,
अरमानों के सपने सजाने की,
वो हँसी रात की अश्रुयों में विलीन हो गयी।।

जिन आँखों ने वात्सल्य निहारा था,
हुयी अकेली सायें की परछाई बिन जब से,
आज उनकी आत्मा क्षीण हो गयी।।

गिरी जो गाज बेटी की अस्मत पर नैन पथरीले भये,
जिन्दगी दुश्वार हो गयी तेरे तीन शब्दों से,
अप्सरा थी उस रात जो अब कैसे मलीन हो गयी।।

ये कैसा धर्म है कैसी शरीयत का कैसा कानून,
जो जुल्म की देता इजाजत आत्मा का करता खून,
ऐ वासना के रहनुमाओं क्यों बुद्धि मलीन हो गयी।।