कैसा होता है 56" सीना,
एक बार हमको भी दिखला दो।।
कहीं नक्सली कही जिहादी,
कारण कोई हो सिर्फ मरे सिपाही,
ये घड़ियाली आँसू है जब तक,
तब तक मूर्तरूप न दिखे कार्यवाही,
ये सीमा है यहाँ कागज के प्रमाण नही सजते,
चंद सिक्के खनकाकर अरमान नही सजते,
पापा पापा कहते गुड़िया सो जाती है,
थोड़ी सयानी सी होती सपनो में खो जाती है,
बेटा बचपन खो देता है,श्रृंगार सुहागन खो जाती है,
बूढ़े हुये माँ-बाप ना जीते है ना मरते है,
देख सफेद लिबास जवानी का दिन बहुत अखरते है,
जिनको आदत हो खेले खून की होली,
उनको काव्य में श्रंगार अच्छे नही लगते,
हर बार वही भाषा वही निन्दा की बोली,
जब तक न दिखे असर वार अच्छे नही लगते,
शहीद हुआ नही कोई बेटा शासकी घरद्वारों से,
शायद दखल दिखता नही इसी लिये आतंकी गलियारों में,
लोकतंत्र की परछाई देखों कुलीनतंत्र का कुहासा है,
सत्ता के नायकों में देखो. परिवारी व्याधा है,
शायद मरा नही कोई शासन के पहरेदारों से,
क्योंकि लड़ता है सैनिक परम्परागत परिवारों से,
कभी सुकमा नक्सली हमला,कभी पत्थर चलते काश्मीर में,
क्या करना है अन्तिम क्षण की अन्तिम नीति हमको भी समझा दो,
बहुत हुआ अब कैसा होता है 56" सीना,
एक बार हमको भी दिखला दो।।