गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नूतन वर्ष कैसे मनायें ०१ जनवरी २०१५

आओ नववर्ष मनायें इस तरह,नव सपनों का श्रंगार करें।।
विश्व पूत बन, शांति दूत बन,विश्व शांति का संचार करें।।

नीयत नेक कर, कर्म विशेष कर,
नव शक्ति सृजन कर, नव कीर्ति का मान धरें।।

राष्ट्र प्रबल हो, राज सबल हो भारत भू सिरमौर बनें,
कला हो शिखर पर, मानव शून्य बन कला का भान करें।।

आतंकी आकर तंगी से घिर जायें,स्व भरण हेतु, परिवार पोषण हेतु,
सजग हो सचल दल बन आर्थिक गलीयारा सजायें।।

आडम्बरी नतमस्तक हो जन परिहासों से,धर्म की नींव हो चारित्रिक विचारों से,
हर क्षेत्र हो विजय क्षेत्र, हर यौवन बन कर्म क्षेत्र विजय पथ निर्माण करें।।

आओ नववर्ष मनायें इस तरह,नव सपनों का श्रंगार करें।।
विश्व पूत बन, शांति दूत बन,विश्व शांति का संचार करें।।

जिंदगी क्या से क्या हो गयी ३० दिसम्बर २०१४


जिंदगी ना जाने कहाँ से कहाँ गयी और क्या हो गयी,
देते है दोष जमाने को,अपनो मे दुनिया अब बेगानी हो गयी,
रिश्तों की नींव दरकती है आज मतलबी फसानों पर,
महफिल तो क्या सजे,दोस्तों की दोस्ती जाने कहाँ खो गयी,
वादे और बातें कहाँ कीमत रखती है आज सिक्कों के बाजार में,
चंद यादे है दोस्ती की आज क्रान्ति और कांती के आजार में।।

बदलती दुनिया और हम २८ दिसम्बर २०१५


देखा है दुनिया में हर गिरेबा को बदलते हुये,
"नादान" हूँ शायद इसलिए हर अक्स में अपनापन ढूँढ़ता हूँ ।
बदलते समय के हरपल में इंसानियत का रूख बदलते देखा है,
इस दुनिया के दोस्तों के दस्तूर बदलते देखा है,
आप मिलाये या ना मिलाये,दोस्ती के कदम दोस्त के साथ,
हम ना बदले है ना बदलेंगे कभी, हमने दोस्तों के लिये अपना अक्स उजडते देखा है।

अपने अथवा पराये २१ दिसम्बर २०१४

कैसे बताये तुमको वो अपने थे या पराये।।

एक दोस्त बना अपना,
मिलकर देखा दोनों ने सपना,
रखेंगे एक नींव,
मिले जिससे भारी सीख,
सोचकर चले मंजिल की ओर,
पहुंचेंगे उस छोर,
बढा़ते ही कदम दो,
खायी दोनों ने सौ,
मिलाकर हरकदम साथ हरदम,
मिलकर बनायेंगे सुरमयी सरगम,
छेडेंगे जब वीणा के तार,
सुर हो जायेंगे दो से चार,
सा रे गा मा पा धा नी सा,
संगीत के शब्द सरीखा होगा व्यवहार,
सफर सरल हो जायेगा,
अपना निश्चल प्रेम कहलायेगा,
सोच रहे थे मन ही मन,
होकर के प्रेमालिंगन,
इतने में शोर हुआ,
कुछ को लगा अन्याय घनघोर हुआ,
इज्जत के छलावे में,
गैरों के बहकावे ने,
अपना सपना तोड़ दिया,
पहले पहल लगाकर पहरा,
दिया अपनों ने जख्म था गहरा,
फिर जाती भेद में बता विभेद,
धर्म शास्त्र पर तान दिया,
पर दोनों थे धर्मनिरपेक्ष,
जाती पर भी था आपेक्ष,
दोनों ही मतवाले थे,
धुन के पक्के वाले थे,
जब इतने पर ना बात बनी,
दोनों ने घरौंदा छोड़ दिया,
सबसे नाता तोड़ दिया,
तोड़कर नाता चले जब,
वो फुले ना समाये,
मिलेंगे अब उस दुनिया में,
जहाँ न जात-धर्म ना अपने-पराये,
जिसके कारण तोड़ा नाता कैसे बताये तुमको,
ना समझ आयें कि वो उनके अपने थे या पराये।।