सोमवार, 15 दिसंबर 2014

इश्क - पूजा १६ दिसम्बर २०१४

जलती है जो लौ इश्क की वो शम्मा ना दिखती है ना छुपती है,
ये दिल कि लगी है दोस्तों ये आग ही ऐसी है जो बुझाये ना बुझती है।।
जहाँ लगी हो झडी मोहब्बत की वहाँ सब राग सूने है,
ये वो धुन है जहाँ पूजा भी नित्य है और इबादत ना दिखती है।।
मन्दिर मस्जिद चर्च व गुरूद्वारे सब बेकार की बाते है,
जहाँ पहरा हो प्रीत के बन्धन में वहाँ पूजा न लगती है ना अजान सुनती है।।
दिल वो मन्दिर है जहाँ बस एक ही मूरत बसती है,
यहाँ पूजा होती है हरपल पर थाल-आरती कहाँ दिखती है।।