शनिवार, 30 अगस्त 2014

प्रीत ना होती जग में ३० अगस्त २०१४

प्रीत न होती जग में क्या हो जाता,
ना बनते मीत जग सूना हो जाता।
या विश्वदेव कुटम्बकम का नारा सार्थक हो जाता,
प्रीत ना होती जग मे क्या हो जाता।।
ना बंधते बंधन कसमों के,
प्यार वफा जैसे शब्दों के,
ना तडपन होती मन में,
ना धड़कन बढ़ती दिल में,
ना होती जग में हँसाई,
ना होती कोई रूसवाई,
ना बनती कोई बातें,
ना होते रिश्तों के धागे,
ना होता सजना संवरना,
ना होता बनना बिगड़ना,
ना दिल में चाहत होती,
ममता भी ना होती सीनों में,
निर्जीव सी दुनिया होती,
पर जीवन सजीव हो जाता,
निर्जीव दुनिया में अपना सपना हो जाता,
क्योंकि ना मतलब होता मतलब का,
जो होता तेरा वो मेरा हो जाता,
ना कोई कहता मेरा सब सबका हो जाता,
ना होता फसाद धर्म नाम पर,
जाति होती बस मानव नाम पर,
ना होता सीमा का अतिक्रमण,
स्वछन्द होता विश्व भ्रमण,
होती सबको एक ही आशा,
सब समझते प्यार की भाषा,
नादान भी जग में जी पाता,
सपना है अपना सार्थक हो जाता,
ना बनते मीत जग सूना हो जाता।
या विश्वदेव कुटम्बकम का नारा सार्थक हो जाता,
प्रीत ना होती जग मे क्या हो जाता।।

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

इलाज चाहिए २८ अगस्त २०१४

दिल की बीमारी है,इलाज चाहिए,
जहान मे रहे जान तो एक जान चाहिए।।

उम्र का तकाजा है इस रोग का गुण,
निदान के लिए मेहमान नया चाहिए।।

तलाशती है निगाहें हर चेहरा बने कोई हमराह,
सूरत के साथ सीरत की जुगलबन्दी चाहिए।।

नेमत है खुदा का प्यार अगर दे बख्सीस,
रहमतों की दरकार है कोई एक नज़र चाहिए।।

नासाज है सावन का हर एक पल बूँद के बिना,
पपीहा है आज दिल जो बुझे प्यास बरसात चाहिए।।

तडपन मिट जाये मन की धड़कन बनकर,
इजहार बन जाये इलाज वो दवा चाहिए।।

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

बेगाना २७ अगस्त २०१४

रहा अपनों की शादी में अब्दुल्ला दीवाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

ये दुनिया है मेरे लिए उलझी एक कहानी,
मै तो हूँ नादान ना समझी दुनिया ने नादानी,

हजारों मुसीबतें है राहों मे हर राह से मै अनजाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

कल जो मेरे अपने थे जो मेरे सपने थे,
था मै भी उनका वो माला मेरी जपते थे,

आज नहीं वो जानते कौन हूँ उनके लिये मै अनजाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

यहाँ हर जर्रा है धोखा ये दुनिया है मतलब की,
ना रख चाहत किसी से किसको पडी है तेरे गुरबत की,

जीना है मान से सम्मान से तो खुद है सम्मान बचाना,
ना मैंने जाना किसी को ना किसी ने मुझे पहचाना।।

रविवार, 24 अगस्त 2014

मेरे मित्र २३ अगस्त २०१४

कुछ मित्रों ने हाथ बढा़या और छोड़ दिया,
संदेश दिया ओर लिया और बात करना छोड़ दिया,

यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप लगी अपनी सी।

आप को देखा तो ख्वाब संजो लिए,
ख्वाब में हमको मिली दीवानगी आप साथ हो लिए,

ख्वाब में ही जिंदगी के बीज बो लिए,
ना कि बात जब साथी ने हम भी चुप हो लिए,

कर हिम्मत फिर से बात कि कोशिश के लिए,
आखों से जरिये बात के  लिये इशारे हो लिए ,

इशारों ही इशारों मे मुलाकात का तय समय कर लिया,
सपने मे तो अच्छा था तय कर हकीकत मे ऐतबार कर लिया,

उठा जो सपने से हकीकत से मुलाकात हो गयी,
सोची भी ना थी जो उनसे वही बात हो गयी,

मुँह फेरकर चले जब वो ख्वाब सा अहसास करा दिया,
जज्बातों को रखना संभाल कर दुनिया है मतलब की बता दिया।

कुछ मित्रों ने हाथ बढा़या और छोड़ दिया,
संदेश दिया ओर लिया और बात करना छोड़ दिया,

बुधवार, 20 अगस्त 2014

अपने या परायें २१ अगस्त २०१४

रोयें जब भी हम वो मन ही मन हर्षायें,
खुशी मनाई इतनी अन्दर ही अन्दर,
जैसे दिये दिवाली के हो जलायें।।

हमने की शिद्दत सदा जिनके लिये,
गहरे खरीदे जख्म़ उन्होंने हमारे लिये,
शायद थी कसम खायी रहेंगे खाक में मिलाये।।

रही बन्दगी उनकी हमसे ऐसी,
जीवन जिन पर वार दिया,
ना समझ पायें कि वो अपने थे या पराये।।

भूल थी शायद हमारी या वफा की,
बेबिन्हा दुश्मनी ली उनसे जो थे पराये,
जफा़ वफा के फेर मे रह गए छले छले।।

नातकुल्लफी थी हमारी उनसे ऐसी,
ना जाने दिल में हमारे उनके लिये बात थी कैसी,
था संबंध खून का जिनसे वो ही निकले पराये।।

सोमवार, 18 अगस्त 2014

दोस्ती १९ अगस्त २०१४

दोस्त से है ईद दोस्त से दिवाली,
दोस्त से है होली का त्योंहार,
ना महक हो पास दोस्ती की,
तो सब कुछ है बेकार।।

दोस्ती का फूल है सबसे अच्छा,
जो जीवन में खिल जाये,
जीवन हो जाये फूल कि बगिया,
महक चारों ओर बिखर जाये।।

दोस्ती होती है जब मिलते है मन से मन,
तन रहते है दो पर एक हो जाते है मन,
भीड़ पडे जब एक पर विचलित हो दूसरा जाये,
वज्र पडे चाहे जितना पर खुद पर दिल न दोस्त का दुखने पायें।।

दोस्ती सम्बन्ध है प्रेम भाव का,
जो एक बार हो जायें,
है दोस्त वही अच्छा जो,
राह दिखाये आपको,सही गलत मे भेद कराये।।

वह दोस्त दोस्त नहि हो सकता है,
मतलब से हाँ मे हाँ करता है,
वो दोस्ती क्या खाक करेगा,
जो जन - धन पर नजर रखता है।।

सहायता २२ फरवरी २०१४

मत बनो रहबर किसी का,
यहाँ सब मतलब रखते है,
निकल जाये हाथ उसका,
फिर कोई नही है किसी का।

जमाना है खुदगर्जी का,
कोई नहीं है किसी का,
स्वार्थ की सरपरस्ती है,
नाम है सेवादारीं का,

भाई,बहन,बन्धु,सखा,
सब रिश्ते है मतलब के,
मतलब है जबतक उनका,
जुँबा पर हर वक्त नाम उन्हीं का,

मतलब निकल जाते ही,
शेष नहीं कुछ रह जाता,
बन जाती है जिंदगी फसाना,
बस लांछन ही उसमें रह जाता,

मत बनो रहबर किसी का,
यहाँ सब मतलब रखते है,
निकल जाये हाथ उसका,
फिर कोई नही है किसी का।
कापीराईट अधिकार सुरक्षित-
रचियता - पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

व्यथा संरक्षक की ०२ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां एक संरक्षक की जीवन व्यथा है जो एक बेटा-बेटी को पालता है और उनके वयक्तिगत हठ जिसमें उनकी अपनी  भविष्यमयी हानि है से वयथित होकर उनको अपनो से अलग करता है :-

सुमन, सुमन नहीं हैं उस उपवन का,
सीँचाँ है जिसे जिस माली ने,
मौजूँ नहीं सुमन, माली के उस उपवन का।

सोच-सोच पौध जमाया था,
वृक्ष बन सुमन खिलेगा उपवन में,
मन ही मन हर्षाया था,
हर्षयोग बनाने को पौध को सींचाँ,
रोप-रोप पौध एक स्वप्न खींचा,
स्वप्न के अलग-अलग रोप की सोंच को खींचा,
खींच-खींच स्वप्न सोच,मन उलसाया था,
हर्षयोग बना वियोग, जब पौध अकुलाया है,
अकुलायित पौध ने नया रूप आज दिखलाया है,
खिला सुमन मिला नहीं माली को,
सुमन मन हर्षित है पूजा में अर्पण को,
क्रमबद्ध है आज सुमन पूजा के तर्पण को,
तर्पण के अर्पण की माला है चढ़ने को बलिवेदी पर,
है वेदना माली की आज यहीं,
बलिवेदी पर आज सुमन, अन्यत्र की वेदी के,
व्यथित मन माली है, उपवन से मुख मोड़ लिया,
रोपा था जिस पौधे को सुमन की खातिर,
आज हर नाता उससे तोड़ दिया,
सुमन गया उपवन हुआ पराया,
आज साथ नहीं माली से उपवन का।

संघर्ष बच्चे का ०३ अगस्त २०१४

मेरी यह पंक्तियां उस बच्चे पर आधारित हैं जो बचपन से ही प्यार,दुलार,धन और व्यवस्था व विश्वास के अभाव में रहा है किन्तु हिम्मत नहीं हारता और अपनी जिंदगी को समकक्ष समाज के साथ चलाने के लिए संघर्षरत हैं।

जीवन है एक डगरिया बस चलते ही जाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है।।
राह अंधेरी रात घनेरी दीपक लौ नहीं दिखती,
साया न हो साथ तो क्या सपनों को पाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (१)
काँटे है बिछे जिन राहों में, जंगल भी घनेरा है,
जंगल भी बचाना है और फूलों को सजाना है,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (२)
हूँ अकेला भले ही, भले ही राह पथरीली हों,
जवानी हो तराना तो क्या, बचपन से ही बचपन को बचाना हैं,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (३)
जीवन कर्म है चाकरी, चाकरी सुलभ नहीं होती,
अंश के निज बचपन कि खातिर कर्म करते ही जाना हैं,
डगर दूर सही, मगर मजबूर नहीं हम मंजिल को पाना है। (४)
कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"


उद्गार सामाजिक चोट से ०४ अगस्त २०१४


मेरी यह पंक्तियां आजकल विभिन्न जगहों पर हो रहे दंगे फसाद से पहुँच रही सामाजिक चोट का उद्  गार है :-

खतरे में हैं आजाद ये भारत, हाय ये कैसी बीमारी,
मानवता हुई दागदार और इंसान हुआ स्वार्थी।।

आलोचक हूँ उन शब्दों का,जो अर्थ लिये हो द्विअर्थी,
बाहर से तो रोशन चेहरा,अन्दर से है मुर्दापरस्ती।१।

भीड़ भरी जनता में,अपनो को खोजता है,
है क्यों परेशान अपनो के लिये,अपने ही तो है घाती।२।

अपने ही हैं जो, अपनो को बाँट रहे,
जाति और धर्म पर अपनो को छाँट रहें।३।

एक जर्रे लालच कि खातिर गिरा है मानव आज,
इंसानियत हुई बदनाम और खत्म हुई इंसान परस्ति।४।

जेब और जेग कि खातिर, जोकि बन गया है,
चूसता है खून अपनो का, मानवता कर दी सस्ती।५।

मानवता हुई दागदार और इंसान हुआ स्वार्थी।।

कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"



अभिव्यक्ति ०५ अगस्त २०१४


मेरी ये पंक्तियां ऐसे व्यक्ति के हालात का चित्रण करती है जो अपनो का सताया हुआ है और विवश हैं :-

कैसे लिखूँ, कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।
जिंदगी एक कहानी है जिंदगानी के सफर की,
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

किस्से लम्बे है ये तेरी मेरी कहानी के,
सोचता हूँ जब बैठकर लिखने को हाल-ए-ब्याँ,
शब्द मिलते नहीं लिखने को सफर में,
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

रिश्ते जो बनाये खुदा ने खून से जोड़कर,
अच्छे निभायें अपनों ने वक्त पर मुँह मोड़कर,
बन्धन तोड़ दिये सारे खून कि निशानी के।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

अपनो ने किया गिल्टी जिसे,गैरों ने सराहा है,
जब ठुकराया अपनों ने परायों ने दिया सहारा है,
बस आज वहीं है अपने कल थे जो पराये मेरी कहानी से।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।

मुफलिसी में जी लि जिंदगी अपनों के लिये,
ना रहे घर रहे दर बदर बनाने को विरासत,
जब अपनों ने कि सियासत पन्ने खत्म हुए कहानी के।।
कैसे लिखूँ,कैसे लिखूँ आदि और अन्त कहानी के।।
कापीराईट अधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान" 


प्यार के भाव ६ अगस्त २०१४

मेरी यह पंक्तियां एक नवयुवक के उस प्यार के इजहार को इंगित करती है जो अपने प्यार के साथ जिंदगी बिताना चाहता है:-

मुझे मेरे यार प्यार चाहिए,
जिंदगी कर दी तेरे हवाले, बस तेरा ऐतबार चाहिए।

मैंने बितायें है दिन कई सौ तेरी चाह में,
हर पल रहता हूँ खोया-खोया तेरी राह में,
एक पल नजर तू आ जाये और क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।१।

जब से देखा है मैंने तुझको ए दीदार-ए-सनम,
आस तकता हूँ मैं तेरी होगा तेरा करम,
चकोर को मिल जायें चाँद,उसे ओर क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।२।

चाहता हूँ चलना तेरे साथ मेरे हमदम,
अकेला हूँ जिंदगी के सफर में,ना उठते कदम,
अगर साथ हो जायें तेरा मेरे हमनवाँ और क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।३।

दर्शं हो तेरा हर शाम और सवेरे,
बन्धन में बँध जायें कोई हो ऐसा इल्म,
साथ हो जायें तेरे फेरे साथ और क्या चाहिए।
मुझे मेरे यार प्यार चाहिए।४।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :- पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

रविवार, 17 अगस्त 2014

गद्दार १७ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां मैने कल जब समाचार पत्र मे मेरठ से आई.एस.आई एजेंट आसिफ अली के पकडे जाने के साथ जब सेना के दो अधिकारी के भी संलिप्त होने कि खबर छपी तो मन बहुत व्यथित हुआ और जो महसूस हुआ वो उद्गार मैंने पंक्तिबद्ध करने कि कोशिश की है :-

कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

इतिहास उठा लो महाभारत का,
चक्रवर्ती सम्राट हुए जो,
उनकी गाथा गौरव का,
खेल जुआ अर्धनग्न नारी करवा ली,
वो भी अपनो के हाथों लाचार हुये,
वो हारे जरूर शकुनि की चालों से,
वो भी हुए बरबाद भाई के हाथों,
अपनो कि गद्दारी से लाचार हुये।
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

अब देखों गाथा पृथ्वीराज चौहान की,
दिल्ली के हार-जीत के सुल्तान की,
नारी के प्यार में विवश हुआ जो,
भोग विलास में व्यस्त हुआ वो,
हारा गौरी के हाथों चौहान,
हाथ डाल हथियार दिये,
मान गया,मान लिया जयचन्द ने,
कि गद्दारी कैसे-कैसे व्यभिचार हुये।
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

आओ चल देखें अब,
झाँसी के दरबारों को,
रानी थी वो वीरांगना थी,
मर्द  से बडी मर्दानी वो,
दिया मुँह तोड़ उत्तर उसने,
जब डलहौजी हर्षाया था,
लिया संभाल मोर्चा और,
किले में पैठ किया,
हार गयी अपनों से ही,
जब दिया फाटक खोल अपनो ने,
बिना किये रण अपनो ने,
ऐसा घातक वार दिये,
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

ये धरती है शूरवीरों की,
चन्द्रशेखर जैसे हीरो की,
आजाद है,आजाद मरेगें,
ऐसा कह आजाद गये,
गोली खायी नहीं अंग्रेजों से,
अपने ही हाथों शहीद हुये,
पकड़ नही सकते थे फिरंगी,
अपनो कि गद्दारी से लाचार हुये,
खुद कि सेवा खुद कर ली,
और फिर प्राण त्याग दिये,
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

भारत का आकंठ जब भी डूबा,
डूबा आस्तीन के साँपों से,
रावण मरा नही राम से,
हार गया विभीषण के घातों से,
दुश्मन तो प्रत्यक्ष दिखता है,
हाथों में हथियार लिये,
देशद्रोही है वो जो,
जिनके आंतकी विचार हुये,
संभलकर रहना घाती पीछे है,
ये जो अपने ही गद्दार हुये।
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

शनिवार, 16 अगस्त 2014

कृष्ण जन्माष्टमी १७ अगस्त २०१४

कृष्ण तेरे राज की बात अलग है।
आज के समाज की सौगात अलग है।।

तेरे राज में नदी दूध की बहती थी,
खाने पीने नहीं कमी किसी को रहती थी,
मक्खन चोरी की तुमने वो बात अलग है,
गोबरधन पूजा कर गऊ मान बढाया,
कृष्ण तेरे राज की ये सौगात अलग है।।

करने को कृषि आज भी गौधन की जरूरत है,
बैलों के कन्धे जब तक रहती जान,
और दूध - पूत गौ के जरूरत कि पूरक है,
तब तक खूब होती है सेवा वो बात अलग है,
ढलती उम्र देख फिर विक्रय कर दिया,
अब कटता देखकर क्यों आतीं शर्म है,
आज के समाज की सौगात अलग है।।

ना सहा अत्याचार सम्बन्धी तक दिये मार,
तूने ऐसा किया व्यवहार जनता की खातिर,
राधा हुई बलिहार तेरे प्यार कि खातिर,
रूकमण बनी गले का हार वो बात अलग है,
कर्म कर निस्वार्थ भाव से मर्म तुमने बतलाया,
रच डाला रणक्षेत्र अर्जुन ने सुन गीता ज्ञान,
कृष्ण तेरे ज्ञान की वो बात अलग है।।

आज युवकों ने परमार्थ करना छोड़ दिया,
रणक्षेत्र सजा है आज भी, सार कि बात करना छोड़ दिया,
भावकों ने अभिभावकों से शिष्टाचार करना छोड़ दिया,
हर गली,नुक्कड़,चौराहे पर कृष्ण खड़ा है,
जेब पर बलिहार है राधा प्यार करना छोड़ दिया,
बाद इसके भी अपवाद है कुछ वो बात अलग है।।

युवकों व युवतियों और आज के आकाओं सुनो,
मना रहे उत्सव जिस कृष्ण के जन्म का,
रखो उस कृष्ण की नीति ज्ञान का ध्यान,
कुलश्रेष्ठ बनो विशेष्ठ बनो भारत बने महान,
बन कर्मयोगी इस तरह कुछ करना अलग हैं।।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

शासक हुआ धृतराष्ट्र, ०७ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां मेरी आज प्रदेश कि अराजकता के हालात व असफल कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदारी का केन्द्र प्रदेश के शासक को मानते हुए उन्हें कर्तव्य बोध दिलाने हेतु समर्पित है :-

शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।

राजकी लूट खसोट से तस्त्र जो ऊबी जनता,
बदला निजाम सुशासन को,अब कुशासन से डूब रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।१।।

नवयौवन के सब्जबाग से विकास स्वप्न दिखलाया था,
विकास हुआ ना विश्वास रहा ना जनता की फूल साँस रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।२।।

अपराधी युक्त है (राज्य) अपराधी मुक्त है हर चौराहा नीलाम हुआ,
शासन प्रशासन हुआ विफल,आज ये नगरी देख रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।३।।

न आयें अस्मत पे दाग कहीं,किसी खिड़की किसी झरोके से,
ना निकलूँ आज बचे लाज आँगन में हर बहना ये सोच रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।४।।

लोकतंत्र के प्रहरी बनकर जो बैठे हैं समाजवाद के संरक्षक,
चुनौती हैं दुःशासन कि आज आपको पुकार रही।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।५।।

कृष्ण के वंशज कहलाते हो,हर अबला की धीर धरो,
ना उतरे अब चीर चरित्र का हर द्रोपदी पुकार रहीं।।
शासक हुआ धृतराष्ट्र,काज मशीनरी सो रही।
अत्याचार के बढ़ते जंगल से जनता सारी रो रही।।६।।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :-
पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

रक्षा बंधन १० अगस्त २०१४

देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

त्योंहार है ये जो रक्षा बन्धन का,बहन-भाई के पवित्र सम्बन्ध का,
बन्धन के उस प्रीत कि रीत निभाने आई रे,देखों रे बहना आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

धागे का ये बन्धन है सबसे न्यारा,जिस पर है भाई बलिहारा,
बलिहार पर प्यार के हार चढा़ने आई रे,देखो रे बहना आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

देवतुल्य है आज भाई बहना कि आखों का तारा,
आखों में लिये किरण प्यार कि बहना मेरी आई रे,देखों रे बहना आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

राखी का एक-एक धागा, है कसम एक-एक रक्षासूत्र का,
सूत्र में गुनित एक-एक भाव कि याद दिलाने आई रे।
देखों रे देखों आई रे बहना मेरी, देखों रे बहना आई रे।
धागे से बाँधने डोर प्रीत कि राखी लाई रे मेरी, देखों रे बहना आई।।

कापीराईट सर्वाधिकार सुरक्षित :-
पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

संध्या १३ अगस्त २०१४

वक्त बीत गया तो लोग भुला देते है,
बे वजह अपनो को भी रुला देते है,
जो चिराग रात भर रौशनी देता है,
सुबह होते ही लोग उसे भी बुझा देतेहै।

संध्या समय है घटा है छायी घनघोर,
विस्मित आँखें निहार रहीं प्रीत के मन मोर,
आ जाओ तुम अगर, शाम सुहानी हो जाये,
मन हो शीतल - शीतल और नयन विश्राम हो जाये।।

पलके निहारती थक गयी रास्ता चहुँ ओर,
बादल भी बरस कर चले गये बरस बरस घनघोर,
यादों कि बारात लिये दूल्हा हूँ मै तेरा,
दुल्हन हो मेरे दिल की हर वक्त जुबां पर नाम है तेरा।

आज मन हुआ है फिर के भाव विभोर,
दर्श को अँखियाँ प्यासी तड़पत है मन मोर,
ज्ञान चक्षु बंद हुये जाने  छाया है अंधकार,
ढाई अक्षर प्रेम के पढे़ जो आज भारी सब ओर।। 

नादान १३ अगस्त २०१४

उन्ही को मिली सारी उचॉईयॉ जो गिरते रहे और संभलते रहे।

नादान हूँ मानता हूँ पर इतना भी नादाँ मत समझ,
मै गिर जाऊँ अपने आप अपनी नजरों मे,
और गुमान मे तुम आ जाओ।
तुम समझो कि मै चल नहीं सकता,
वो तो मै राह पर गलत था अच्छा हुआ ठोकर लगी,
अब उठ गया हूँ संभल जाऊंगा,
कहीं ऐसा ना हो कारवाँ निकल जायें,
गिरो तुम अगर और साथ न रहे कोई,
और तुम उठ भी ना पाओं।

१५ अगस्त २०१४
नादान हूँ मानता हूँ पर इतना भी नादाँ नहीं,
नादान हूँ नादान रहूँ अफसोस नहीं,
सैनिक हूँ वफा-ए-वतन देशभक्त हूँ,
क्योंकि सारे समझदार नेता हो गये ।

दोस्तों ने दोस्तीं की कसम खानी छोड़ दी,
नादां थे दोनों,ना समझ सके वो ना समझा सके,
रही लगी आग दोनों तरफ पर बात करनी छोड़ दी।

१६ अगस्त २०१४

कमबख्त मशहूर वो हुये,
जो कभी क़ाबिल ना थे,
ओर तो ओर मंजिल उन्हें मिली,
जो कभी दौड़ में शामिल ना थे ।

देखा जो उसे दिल दीवाना हो गया,
पीछे-पीछे उनके घर आना-जाना हो गया,
मुस्कराई वो इस तरह,देखकर उनको,
नादान दिल परवाज परवाना हो गया।

०५ अगस्त २०१४

जब तक है अंधेरा तुम चलना साथ मेरे,
जैसे जलती है बाती दीपक साथ तेरे।।

१९ अगस्त २०१४

अति अति सुन्दर जोडी है प्यार के बन्धन की,
साथ रहे जीवन भर,प्रीत के सम्बन्ध की।

२२ अगस्त २०१४
जीने कि राह कल तुमसे थी जीने की राह आज भी तुमसे है,
सबक दोनों से मिला कल वफा़ तुमसे थी आज जफा़ तुमसे है।

२३ अगस्त २०१४

कुछ मित्रों ने हाथ बढा़या और छोड़ दिया,
संदेश दिया ओर लिया और बात करना छोड़ दिया,
यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप  लगी अपनी सी।

आप  आये दर पर हमारे आपका स्वागत है श्रीमान,
हम रहें आपके दिल में ऐसे जैसे पूजा में भगवान ।

३० अगस्त २०१४

जिनसे भी चाही बात करनी,
वो ही जाने क्यों खफा हो गये,
शब्द रह गये अधरों पर आकर,
होंठ सिले के सिले रह गये।


३१ अगस्त २०१४

जीना हमारा नश्वर हो आया, 
तेरी वफा कि कसम याद आ गयी,
रात ज्यों ज्यों कहरने लगी,
त्यों त्यों यादों कि महक चहकने लगी,
तेरी यादों की कसक इस कदर बढी,
जैसे बढ़ती है इंतजार की घडी।

०१ सितम्बर २०१४

आपके आर्शिवाद तले मेरी धरती हरी-भरी रहे,
आपकी झोली ना हो खाली और मेरी किस्मत चढी रहे ।

०१ सितम्बर २०१४

किसी से बात ना करना अच्छी बात नहीं,
करके दोस्ती ना हाथ बढाओं अच्छी बात नही,
यूँ तो हजारों रास्ते है मंजिल पाने के,
सपने सजाकर मंजिल के साथ ना आना अच्छी बात नहीं।

०१ सितम्बर २०१४

कोई समझकर ना समझ बन जाता है,
कोई नासमझ को हलकान कर जाता है,
ये दुनिया है दुनिया बडी जालिम,
कोई जगाकर किसी को फिर सुला जाता है।

०१ सितम्बर २०१४

पागल बनाती है या खुद पागलपन अपनाती है,
जब चल नहीं सकती तो क्यों छलछलाती है।

०३ सितम्बर २०१४

सपनों की बारात लिये यादों के गाँव में,
काली रात बने सुनहरी निद्रा की छाँव में।।

०६ सितम्बर २०१४

अति सुन्दर है रूप तुम्हारा, नजर ना किसी की लग जायें,
रहे चमकता जीवन भर ये नूर तुम्हारा,
साथ रहे यौवन का और जीवन बाँछे खिल जायें।

०७ अगस्त २०१४

किसके लिये लिखा क्या नाम है वो,
चाहे तू जिसको ओर तुझसे रुखसार है वो।
आखों से देखा नही तुम्हें,
शब्दों से जान लिया तेरा ये हाल,
जो ना जाने जो ना माने दिल कि भाषा,
क्यों हो समय व्यर्थ गवाँती हो छोडों उसकी आशा,
नजरें इनायत करो इस ओर भी,
जो खड़े है लगाये टकटकी रख दिल में दिलाशा।

२३ सितम्बर २०१४

नजरों को मिलाना भी नहीं है चुराना भी नहीं है,
ये इश्क कि इबाबत ही ऐसी है उसे खोना भी नहीं जिसे पाना नहीं है।

२८ अक्तूबर २०१४

दिल के झरोके से आवारगी झलकती रही,
जिंदगी रुखसार सी चलती रही,
चाहा हमने भी किसी दिल का नजराना मिलें,
कमबख्त उसके प्यार कि बदली कहीं ओर बरसती रही,
तकता रहा एक बूँद पाने के लिए,
और मेरी जिंदगी बेबसी के सफ़र पर चलती रही। 



१८ नवम्बर २०१४

मुझे मालूम ना था चाहता हूँ जिसे मिल ना सकेगा, 
"नादान" हूँ इसलिए दिल को चेहरे जैसा समझ बैठा।।

मुझे मालूम था जिसे दिल दे बैठा वो गैर है,
"नादान" हूँ इसलिए गैरों से दिल का व्यापार कर बैठा।।

वैसे आसाँ नही है यूँ ही हर किसी को भुला देना,
"नादान" हूँ इसलिए चोट खाकर गैरों से जख्मों को भुला बैठा।।

०९ दिसम्बर २०१४

मैंने दिया जिसको भी सर्वस्व खजाना अपना (दिल)
उसने ही हर बार छला तोड़ दिया हर जज्बाती सपना।  

दर्द अपने ही देते है माना ये सत्य है,
पोंछकर आँसू गलती भी छुपाते क्या असत्य है,
मार देकर मरहम लगाते कभी गैरों को नही देखा,
कर अदावट दूर हुये पर बद्दुआ अपनों को देते नहीं देखा।
 
21 अगस्त 2015
क्या करे कोई जब काल बन गया घाल,
काल ही काल के कारण बनता है घाल,
जब समय होता सही तो काल ही बनता ढाल।

26 अप्रैल 2017

करवटें बदलता हूँ रात भर उनके खुली आँखों से ख्वाब देखकर,
वो आराम से सोते हैं मुझे करबटों में छोड़ कर।।

करवटें बदलता हूँ रात भर,खुली आँखों से ख्वाब देखता हूँ जब,
वो आराम से सोये हैं मुझे करबटों में छोड़ कर।।


मैं आस लिये आज भी बैठा हूँ,
बिश्वास लिये आज भी बैठा हूँ,
तितलियाँ बहुत है आवारा बाग में,
मैं खूशबू खास लिये बैठा हूँ ।।

19 जुलाई 2017

हम क्या बताये जिन्दगी की कशमकश में है,
मुकम्मल की तलाश में मुक़र्रर को तलाश रहे है।।

यूँ हर दम वो साथ है मेरे पर परछाई नजर नही आती,
वो रात बहुत हसीन हुई जब से सपनों में वो आने लगे यार।।

हम जज्बात उकेर चुके है अपनी किताब में, 
अब उसको पढो या फाड़ दो जिन्दगी के निसार में।।

उल्फत में भी उनको सीने में समाये रखा,
प्यार की बाते उनसे यूँ ही कह ना पाये यार।।

जब उनसे बात की मुलाकात के उधार की,
कि बहुत दिल से जूस्तजू क्या-कैसे कहे न समझ पाये यार।।

दिनाँक ११ नवम्बर २०१७

दो क्या लफ़्ज़ों की रवानगी कहते है,
तू मेरी है हम तेरे बस समझे तो इसको भी कहानी कहते है ।।

कदम से कदम मिलाना जब तूने शुरू कर दिया,
मन्जिल हो गयी आसाँ हमे मन्दिर का पुजारी कर दिया ।।

जब से दिल मे वो जगह पाये है,
चारों कोनों को भर घर बनायें है,
जगह खाली नही मेरे इश्क के वजूद,
अब तेरे सिवा किसकी तस्वीर सजाये है ।।

बकवास जो नही करते वो इश्क के लियेजा रहे है,
जो पूजा ना जाने वो इश्क किये जा रहे है ।।

दीवाने है दिशाओं पर गौर कैसे करे,
जा रहे है उस और जहाँ माशूक की गन्ध हो।।

भाई मैं तो अभी नादान हूँ,
घुटन को को भी तमाशा बना लूँगा,
काम के लिए काम करेंगे,वफ़ा के लिये यह इश्क को इबादत बना लूँगा ।।


उम्र की ताकीद मत बता,
मैं उस दहलीज पर भी इश्क देखता हूँ ।।

कसक सी कसक रही है हूक सी भी उठती है,
दोस्त की गलबहियां देखकर उम्र दरकिनार कर जवानी और खिल उठती है

किसने कहा ठंड नही होती,
मिल जाये अगर प्यार का तोहफा,
फिर आग भी लगती है गर्मी भी नही होती ।।
मुझे शौक कहा जो शायरी पढ़ पाऊँ,
यूँ ही दो शब्दो के खाका खींचता हूँ,
वो दरियादिली है श्रोताओं की, 
वो शब्दों के आईने को तरन्नुम समझ लेते है ।।

अदा के दीवाने है तेरी,  
हर मुस्कराहट पर मरते है,
तेरी बातों को हम तेरी, 
आँखों से समझते है,
तुम भले न कहो जुबा से,
हँसी बहुत कुछ कह जाती है,
यादों से हिचकी उनकी बताती है,
जान है वो मेरी वो जान समझती है ।। 
                                       
दिल को दिल की भाषा समझती है,
नजरें जब झुकती है तेरी,
मेरी जान और तेरी हया समझती है,
अनजान बने रहो चाहे दिल की नादानी मानकर,
जज्बात है ये दिल के मैं भी समझता हूँ तू भी समझती है ।।

कहाँ जाती हो जान, अभी शाम बाकी है,
जरा ठहरो अभी दिल जवाँ और अरमान बाकी है।।

कुहासा जीवन मे जो छाने लगा है,
ये धुँआ अब रास आने लगा है ।।

देखी तेरी सूरत जब से तलबगार हुआ हूँ,
ना मोहब्बत मिली न विसाले सनम,
तेरी रूमाईयो का ऐसा असर हुआ,
अच्छा भला था पहले अब बेकार हुआ हूँ।। 

दिनाँक २७ मार्च २०२१

गुनाहों की फेहरिस्त लम्बी थी समझदार की प्रबुद्ध के सभागार में,
न विवेक बन सका न मूक रह सका "नादान" इसलिये निकल लिया ।।

शंकाओं के बोझ लिये न्याय के अर्पण को सभी खड़े,
"नादान" मूक खड़ा देखता चर्चा करते ईमान वाले बड़े बड़े ।।

दशों दिशाएँ में खोजता रहा मानव जाति में "नादान"
आदमी मिलते रहे बहुत से बस दो चार मिले इंसान ।।

उलझा था मैं उसके अन्दर मान ईमान का,
झकझोर कर रख दिया मान ईमान का,
बात बनी जब बिना बात की अहम के किरदार से,
चोट लगी "नादान" को मारक विशेषज्ञ थे बातों विशेष के ।।
इशारे थे उस छोर से शब्दों के जाल से,
जबाब शब्दों से दिया "नादान" वो शायरी गाने लगे ।।

चंद सिक्को में बिकता ईमान देख रहा हूँ
लोगो का पेट काटते झूठे बेईमान देख रहा हूँ
कैसा करिश्मा है देखो इस अंधे कानून का
कुर्सियों पर चोरो को विराजमान देख रहा हूँ
इक दूजे का गला काटते देख रहा हूँ
क्या क्या नहीं देख रही अब मत पूछ मुझसे
सूनी नजरो से घायल हिंदुस्तान देख रहा हूँ ||

दोहरे चरित्र में नहीं जी पाता हूँ,
इसिलये बार-बार अकेला नजर आता हूँ ।।

२४ जुलाई २०१७

हम तेरी याद लिये सोते है,जगते है, हर वक्त तेरा ही ख्याल रखते है,
गुरबत में साथ छोड़ दिया जिसने कोई बात नही वो अपना ही प्यार तो था।।

हम तो आज भी वफ़ा की आस  रखते है,
काश तेरा दिल भी आइने की तरह साफ होता, 
मेरा प्यार तेरे चेहरे की तरह ओर निखरता ।।

जज्बात में वो ओर निखरते है,
जैसे मेरे शब्द उनकी याद में उतरते है।।

शाम भी सुहानी है,
मौसम भी बेईमान है,
बस उनका आना बाकी है ।।

लोग कहते है कि बिना मेहनत के कुछ नही पा सकते हम खुदा से,
न जाने गम उठाने के लिये कौन सी मेहनत की थी हमने ।।

दिनाँक २५ जुलाई २०१७

यादों का घरौंदा लिये जब परिन्दे उड़ते है,
तो जीने का नया ठौर मिलता है ।। 
    
राह में हर मुसाफिर मंजिल नही पाता,
थकान पर हिम्मत के मदद से कोई ठौर ढूंढ लेता है ।।
                                        
जिन्दगी की राह ओर आसान हो गयी,
जब पथरीली डगर में अन्जान दोस्त ने हाथ थामा।।

मेरी झोली में कुछ रिश्ते आने दो,
ख़ुदा की राहत और आपका असर हो,
आप अपनी रूह के फरिश्ते को आने दो ।।
                                                     
क्या बात जो हमे देखा न एक बार ,
हमने तो दिए दीये जला सौ सौ बार।।

आज मेरे यार मेरे करीब आया है,
सिद्दत से जरूरत थी जिसकी,
दिल से उनके वो प्यार पाया है,
के दिल तू उनको यूँ ही पलकों पर रखना,
मेरे आँगन में एक त्योहार नया आया है।।

मेरा प्यार वो मेरा यार, 
जैसे सारा संसार सो गया है,
उसके बिना दिल था हमारा खाली खाली, 
अब खाली खाली भी खो गया है।।

दिनाँक २७ जुलाई २०१७

सखी प्रियतम मेरे वजूद में है,
सावन को जल्दी आने दो ।।

वो जब यूँ रूठकर जाने लगे कमबख्त गरीबखाने से, 
मुझे वो मेरा शराबी दोस्त याद आ गया ।।    

कोशिशें कामयाब होती है, मंजिले मुकाम हासिल करने में, हिम्मतें साहिल भी जब साथ छोड़ देते है।।
                             
मेरे यार ने मेरे सब्र की इन्तहा लेनी चाही, मुझे उसका यह अंदाज भी पागल कर गया ।। 

रूह को मारकर लाश लिये फिरता है,
अहम को रख जिन्दा वजूद ढूँढता है ।।
                      

रिश्तों की कलाबाजी है मतलब के दौर में,
जिस्म के बाजार में इंसानियत ढूंढता है ।।
                 
अन्जानों के साये में अपनों को खोजता है,
बड़ा बावरा है वो जो इस कदर सोचता है ।।

शायद कहूँ या हकीकत में समझूँ,
है फरिश्तों की फेहरिस्त में वो,
उसने मेरे वजूद का ऐसा तार छेड़ा,
दिमाग का काम भी दिल से लिया हमने।।
                                                 
मेरा दामन खाली है,उसके एक बूँद की ख़ातिर।।
कुछ सवाल तो बाकी होंगे,इन्तजार में हूँ जबाबे हाजिर ।।
                     
गफ़लत से बाहर आ "नादान" किरण बाकि है,
किरण से मुँह फेरकर उजाला कहाँ ढूँढता है ।।

चाँद भी शरमा के आधा है आज,
देखकर मेरा आफ़ताब आया है ।।
                        
जब से अना की, तन्हा हो गया,
सोच रहा बेजायी, क्यूँ खफा हो गया ।

राह में है ! वो तेरे शब्दों से भारी पंक्तियोँ सी सीधी सी डगर आज भी वहीँ है ।।

खुद के ऊपर लम्हे लुटा पाऊँ,
ऐसी मेरी फितरत कहाँ,
मिले वो राही जो साथ हो,
कश्ती में मेरी हस्ती ही कहाँ,
उसके चेहरे की हँसी देखकर,
मुक़द्दर का सिकन्दर समझ बैठा,
क़ातिल हँसी थी जनाब वो उसकी,
क़त्ल भी कर कर दिया ज़ालिम ने,
और गुनाहे अन्जाम भी न लगा दामन में,
हम जिन्दा लाश है अपने गिरेबाँ में,
अपने ऊपर लम्हे लुटा पाये ऐसा वजूद कहाँ।।

क्या करे कोई जब काल बन गया घाल,
काल ही काल के कारण बनता है घाल,
जब समय होता सही तो काल ही बनता ढाल।

यूँ तो मिलते है राह में कई हम नशीं,
जाने आपमें क्या देखा हमने आप लगी अपनी सी।

आप को देखा तो ख्वाब संजो लिए,
ख्वाब में हमको मिली दीवानगी आप साथ हो लिए।

तेरे जूड़े का हाल भी मेरी जिन्दगी सा है, दोनो उलझी हुयी है,अंतर बस इतना सा है कि तेरे जूड़े से नजर नही हटती और जिन्दगी एक जगह नही डटती ।

हम भी आदमी है ! काम के, यूँ ही बदनाम हो गये,
खास चेहरा थे बहुत सी आँखों का, आँखे चार हुयी जब से आम हो गये ।।
                      
पनाहों में हो ना हो वो मेरी निगाहों में है,
मिलते है रोज आकर वो मेरे सपनों में,
गुनाहों से अदावत कर ली हमने, 
क्योंकि ? वो अब मेरी दुआओं में है ।।

पागल ही समझा है निगाहबानों ने,
हम नादानी में दिल-ओ-जज्बात जो बता बैठे ।।

कोई समझकर ना समझ बन जाता है,
कोई नासमझ को हलकान कर जाता है,
ये दुनिया है दुनिया बडी जालिम,
कोई जगाकर किसी को फिर सुला जाता है।

मेरे पास कुछ नही है बताने को,
उद्गार है दिल में मेरे ,
लिख देता हूँ समझाने को ।।

अच्छा रहता सपनों को छुपाकर रखते,
लाजिमी था वो ख्यालों में तो आते ही रहते ।।

जिनके लिये जिये हम जिनके वास्ते मरने को तैयार थे,
वो कहने को अपने थे जिनके दुश्मनों से विचार थे ।।

मेरी हर शय पर दुनियाँ की बलिहारवे,
मेरी हर मात पर दुनियाँ की कहकहे,
मैं जिन्दगी हारता रहा दुनियाँ के वास्ते,
तिरछी मुस्कान भर हर शख्स ने लिये फिर जलवे।।


तेरे प्यार का जब रंग लगा तो होली हो गयी मेरी,
तेरे नैनों का जब भंग चढा तो होली हो गयी मेरी,
यूँ तो भरी महफ़िल में छूना मुश्किल था तेरा मुझको,
तेरे अंग से जब अंग लगा मेरा तो होली हो गयी मेरी।

द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि परस्पर मदभेद को होलिका रूपी हवन में जलाकर आपसी सौहार्द  बनाने व रिश्तों में उमंग के साथ नव उर्जा के रंग एक दूसरे पर गिराकर एकता और प्यार के पर्व होली की अनन्त शुभकामनायें ।
                      

! शुभप्रभात       !! प्रात: नमन !!       शुभदिवस जी!

आपको पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान" का प्रणाम,राम-राम,जय श्रीकृष्णा,जय श्रीराधे-राधे, नमस्कार व सत-श्री- अकाल जी।

आपका दिन शुभ व मंगलमय हो प्रभु से इसी कामना के साथ मेरी ये पंक्तियाँ :- 

मुलाक़ात मौत की मेहमान हो गयी है ,नज़रों की दुनियाँ वीरान हो गयी है !
 अब मेरी साँसे भी मेरी नहीं रहीं , जिंदगी आपकी दोस्ती पे कुर्बान हो गयी है !!




                   
                                                                                                        
                                

ये चमन है रैन बसेरा १४ अगस्त २०१४

खूब बहती है अमन की गंगा बहने दो,  
मत फैलाओ देश मे दंगा रहने दो,  
लाल हरे रंग मे ना बॉटो हमको, 
मेरी छत पर एक  तिरंगा रहने दो।

ना ये तेरा ना ये मेरा ये चमन है रैन बसेरा,
हर धर्म से नाता है चाहे वो तेरा हो या फिर मेरा।

बाँट रहे धरती को तुम कि आसमाँ की तैयारी है,
इंसान तो तुम बन ना पाये क्या खुदा बनने की तैयारी है।
इंसाँ-इंसाँ मे करके भेद,खून-खून को अलग किया,
धर्म जाति में तौलकर मानवता को तंग किया ।

ये मानवता की बातें तुमसे अच्छी नहीं लगती,
देशभक्त को आराम कहाँ उनकों कुर्सी नहीं जँचती,
सियासतदाँ हो कुर्सी के अब तुम भी,
अब शिक्षा कि बातें तुमसे अच्छी नहीं लगती।

भूल चुके हो तुम उन शहीदों को,
गवाँ जिन्होंने आजादी मे प्राण दिये,
सियासत करते हो पता है कल तुम्हारी बारी है।
इसलिये ही देकर भारत रत्न अब उनका सम्मान किये।

नमन करो उनको तो करो दिल से वरन् क्या लाचारी है,
आसमाँ से ऊँचा नाम है जिनका उन्होंने कब ये सोचा था,
भारत रत्न से कहीं ऊँची ही कीमत उनके समर्पण की,
उनके नाम पर ना करो सियासत,क्या अब उन्हें भी बाँटने की तैयारी है।

अरे अद्यः समय के सियासतदारों अबतो कुछ शर्म करो,
जाति भेद और धर्म कि राजनीति अब खत्म करो,
डूबा सूरज निकले देर से दूर होता है सवेरा,
निकला सूरज सबका होता एकक ये ना तेरा ना ये मेरा ।

नया युग नई उमंग है नव आशा है नवयुवकों की,
विश्व के अग्रज बन चमके,ये तिरंगा है मेरा,
ना ये तेरा ना ये मेरा ये चमन है रैन बसेरा,
हर धर्म से नाता है चाहे वो तेरा हो या फिर मेरा।

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आपका स्नेह आकांक्षी - पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"

१५ अगस्त २०१४

शनैः शनैः इस कदर हुआ असर,

पढी़ जो आजादी कि कहानियां,
लिखी किताबों मे थी जो इस कदर,
बोस,घोष,लाल,बाल,पाल और,
भगत सिँह मतवाले अपने आप थे,
इंसाँ थे फरिश्ते थे या अंग्रेजों के बाप थे,
रच डाला इतिहास जिन्होंने हवन कुंड में,
आजादी के,जीवन की आहुति देकर,
इंकलाब,अंग्रेजों भारत छोडों,
नारा दिया और दिया वन्देमातरम्,
आजादी का पर्व दिया जिन्होंने,
ऐसे शूर वीरों को करूँ नमन,
गाथा जितनी पढ़ता हूँ आजादी कि,
कायल होता जाता उनकी भक्ति का,
गौरव है जन्म लिया भारत भूमि पर,
और हिन्दुस्ताँ है हम वतन-हम वतन,
और शनैः शनैः इस कदर होता असर,
करता हूँ नमन जो मुख से निकलता है जय हिन्द,
उठाता हूँ कलम जब भी लिखने को,
लिखा जाता है केवल वन्देमातरम् वन्देमातरम् ।।

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पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"