दोष तीन कर दे अलग,
मतलब, लालच, दाम,
दो सत्यवादी जब मिले,
है दोस्ती उसका नाम,
है अर्थ यही तो दोस्ती का,
दोनों में दोष ना हो कोई,
तन तो हो दो पर प्राण एक,
ईर्ष्या रोष ना हो कोई,
जिस रास्ते लोक हँसाई हो,
खुद चलें ना उसको चलने दें,
अपने ऊपर सब दुःख ले लें,
दिल ना दोस्त का दुखने दे,
क्या जिक्र यहाँ कर का जर का,
सर देने में इनकार न हो,
हर वक़्त दुआ यह दिल से हो,
गमगीन हमारा यार न हो,
सुख में बनते मीत जो ऐसे मित्र अनेक,
साथी हो जो दुःख के वो लाखों में एक,
मित्रता न ऐसा नाता है,
जब जी चाहा जब छोड़ दिया,
मिट्टी का नाहीं खिलौना है,
जो खेल-खेल में तोड़ दिया,
मित्र की हाँ जी में हाँ जी करना,
मित्रों को ना ही मुनासिब है,
लेन देन पर गौर करें,
यह नहीं कभी भी वाजिब है,
चारों ओर की धुन्ध से मित्र आज विस्मित है,
आज के युग कि रीत है बदली,
जो हाँ जी हाँ जी करता है,
"नादान" आज बस वही खुश किस्मत है ।।