सोमवार, 29 मई 2017

आज इंसा के करतब व सीख दिनाँक ३० मई २०१७

पढ़ते सुनते सब रामायण, बने न राम से पावन है,
रावण जो जलता देख रहे, उनमें भी लाखों रावण है,
चुरती है आज भी सीतायें, पर पर्व मनायें जाते है,
और रीत निभाली जाती है।।

हम में से कितने भरत बने, सीता उर्मिला सी नारी कितनी,
सीखा क्या हमने विभीषण से, सती सलोचना सी नारी कितनी,
कैकयी को बुरा भला कहकर, प्रभु भक्त कहाये जाते है,
और इति समझली जाती है।।

जब दिन दिवाली का आयें, सज धर नर घर तैयार हुयें,
अति लक्ष्मी ना ठकुरायें, उजियारे घर और द्वार हुयें,
सब धन की पूजा करते है, ओर इंसान ठकुरायें जाते है,
क्या रीत निराली भावी है।।

अब होलिका जो आती है, होली का संदेश सुनाती है,
द्वेष ईर्ष्या हवन करो, कह होलिका जल जाती है,
नृसिँह को दुनिया पूजे है, हिरणाकुश मारे जाते हैं,
(अपना अहम जगाने को) थोड़ी सी पीली जाती है।।

अति पावन त्योहार है रक्षा बंधन का, भाई-बहन की प्रीत निभाने का,
बहन भाई को राखी बाँधती आयी है, अब नया दस्तूर है नये जमाने का,
इस राखी के परदे में राखी के ही पाप छिपाये जाते है,
क्या रीत चली निराली है।।

युवकों व युवतियों सुनलो मत फैशन के दास बनों तुम,
परदेशी तहजीब मर फँसकर स्वयं का नहीं विनाश करो तुम,
क्यूँ अर्धनग्न रहने वाले अब सभ्य कहाये जाते हैं,
इसलिये बेशर्मी पायी जाती है।।