मंगलवार, 8 नवंबर 2016

मोदी जी द्वारा 500 व 1000 के पुराने नोट के संदर्भ में दिनाँक ०९ नवम्बर २०१६

मोदी ने काले धन की माँद में डाले डाके है,
रखी तिजोरी जहाँ अंधियारे झोपड़ियों में उजाले है,
काला धन बेकार किया मेहनत का कश साकार किया,
जो मतलब वाले थे पैसे के अब घिरे है पैसे से,
दिया रूपया ना लिया रूपया बस स्वरूप बदल दिया,
एक निर्णय निर्भीक लेकर अर्थ जगत का इतिहास बदल दिया,
इतना व्रद्ध निर्णय लिया थोड़ा सा और सोचा होता,
दो नोटों के साथ साथ काश सारे नोट बदले होता,
होता जो निर्णय ऐसा परिवर्तन अलग दिखाई देता,
काला धन का पाई पाई अंदर से बाहर आता दिखाई देता,
हर जमा खोर परेशां होता ओर असल कर बाजारों में,
मोदी तेरा डंका ओर जोर से बजता ईमान के गलियारों में।।

सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

पंक्तिया

रीत पुरानी प्रीत नयी लाया हूँ,
प्रेम के परिवेश का दीप जलाने आया हूँ,

मै समझा हूँ तुम्हे समझाने आया हूँ,
राजनीति के पुरोधों से तुम्हे जगाने आया हूँ,

भाई से भाई लड़ाने ये धर्म परिभाषा गढ़ते है,
मतलब खातिर अपने ये विद्वेष भाषा पढ़ते है,

मानवता के हत्यारे मानव को देते है सन्देश,
रंग एक है खून का खून में है करते विभेद,

धन और आज के रिश्ते दिनाँक ३१ अक्टूबर २०१६

धन के परदे है, समाज के नयन दरम्यां,
रिश्ते खून के हो या विश्वास के,
निभाये जाते है,नयनों में बाकी,शर्म-ओं-हया।।

रिश्तों की पूँजी चल रही मतलबी फसानों में,
आत्मीयता खत्म हुयी, अपनों में,
वास कर गया विष विश्वास के दरम्यां ।।

महँगी हुयी यारी, बढ़ रही प्यार की बीमारी,
वादों का खून हुआ, वफ़ा आज हारी,
चरित्र हनन है जारी, क्षणिक सुख के दरम्यां।।

इंसां इंसां का दुश्मन हुआ चंद सिक्कों के लिये,
प्यार सजता है जिस्म की लोलुपता लिये,
प्यार नीलाम हुआ रिश्तों का, नोटों के दरम्यां।।

जालिम धन बल सहारे मौज मनाता रहा कही,
बहन तकती रही रास्ता भाई की आस में,
उपहार बना व्यवहार, रस्म अदायगी दरम्यां।।

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

भक्ति अथवा चापलूसी दिनाँक २७ अक्टूबर२०१६

देशभक्ति क्या होती है? कोई परिभाषित कर बता दे।।

कर्म करूँ चाहे जैसा देशभक्त कहलाऊँ ऐसा जतन बता दे,
मरकर तिरंगे में लिपटा क्या जाने हूजूम ने प्रमाण किया है,
रहूँ तिरंगे संग जिन्दा सनद लिये ऐसी युक्ति बतला दे।।
देशभक्ति क्या ...…….…...…................................।।

मन,कर्म,वचन से ईमान को पूर्ण योग किया,
जहाँ में जितनी साँसे ली अंर्तआत्मा को सम्मान दिया,
मन,कर्म,वाणी में भेद कर ईमान सिद्ध हो ऐसी युक्ति सीखा दे।।
देशभक्ति क्या ...…….…...…................................।।

कर्म किये मर्म वाले जिसने सादा लिवास रख तन पर,
वो खामोश चला गया ख़ामोशी से जो छला गया पल-पल,
दिल में नस्तर सा चुभता है द्रोही का सम्मान कोई चापलूसी सिखा दे।।
देशभक्ति क्या ...…….…...…................................।।

शिक्षा अच्छी है कि सेवा बिल्कुल निःशुल्क होती है,
क्या ये कथन सिर्फ चंद कर्मीपर शिक्षावत लागू होती है,
अपनी नाराजगी जता सिफारिश कराते है बन्द कमरों में,
खुद की पैरोकारी में खुद का निर्धारण बन्द हो ऐसा कोई क़ानून बता दे ।।
देशभक्ति क्या ...…….…...…................................।।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

बेटियाँ (साक्षी मलिक व पी.वी.सिंधु की रियो ओलंपिक जीत पर )१९ अगस्त २०१६

वाह ! बेटियाँ !
तेरा क्या कहना,
हो तुम देश का गहना,
कल तक थी दुनियाँ को भारी,
आज है दुनियाँ तुम से हारी,
बेटों की चाहत ऐसी,
जीवन प्रत्याशा हो जैसी,
बेटी जो कोख़ में मारी,
उस दिन दुर्गा हारी,
दुर्गा की पूजा हुयी खारी,
देखो आज नारी की शक्ति,
बेटे हार गये खेल की भक्ति,
जब हुयी हताशा ओर रुसवाई है,
बेटियों ने पहचान बनाई है,
उनके आस में उनके विश्वास में,
थोड़ी मायूसी झलकी है,
सोने पे वार किया चाँदी ही छलकी है,
पर क्या कम है बात में दम है,
जब बेटे हार रहे बेटियों ने जीत दिलाई है,
बेटियों के आगे कब पार बसाई है,
बेटियाँ पन्ना का त्याग है,
बेटियाँ लक्ष्मी है, बेटियाँ दुर्गा सी शक्ति है,
अबला है ये कहना गलत है,
साबित ये स्वयं कर दिया है,
सोने के लिये कर यत्न चाँदी और कांस्य का,
सफल जतन कर दिया है,
जो खुद रत्न है और रत्नों को देती जन्म है,
जिनका कर्म रत्न है, जिनका बन्धन रत्न है,
बेटियाँ है बेटों से बढ़कर इनसे ही भारत है,
ये ही कुल को बढाने वाली,
ये ही कुल रत्न है ये ही असली भारत रत्न है।।

सोमवार, 15 अगस्त 2016

मजदूर दिवस 1 मई 2016


तलब-ऐ-मेहनत की मोहब्बत में,
जिन्दगी बेकार हुई,
हम रह गए मजदूरी करते,
और वो सरकार हुई,
जिन्दगी गुजार दी,
मेहनत करते करते जिसके लिए,
आज वो छत, दाल और रोटी,
बूते के भी बाहर हुई,
जिन्दगी का अच्छा शिफा दिया,
मेरी सरकारो ने,
पढ़े लिखे कुशल मजदूर भये,
और निरक्षर नेताओ की सरकार हुई,
मजदूर दिन रात एक कर,
सपने सजाता रहा,
जो कर्जदार रहा माह भर,
आज फैक्ट्री दो से चार हुई,
पूँजीवाद और सिफारिशों के दौर में,
आज मजदूर पिस गया,
जिन्दगी की खातिर (बेटे की),
ताउम्र की पगार नीलाम भरे बाजार हुयी ।।

रविवार, 14 अगस्त 2016

आजादी १५ अगस्त २०१६

कदम-कदम बढ़ाये जा, गीत आजादी के गाये जा।।

जो अपनी ही धुन के मतवाले थे,
मर्म आजादी का जानने वाले थे,
आजादी की खातिर जिन्होंने वरण किये हार ( फाँसी का फँदा)
उन्हें रख मनमंदिर में (पुष्प) हार चढाये जा,
कदम-कदम ....…...............................।।१।।

जिन्होंने माटी को माँ माना,
माँ का दर्द जिन्होंने पहचाना,
माटी का आँचल सजाने को,
कलंक गुलामी मिटाने को,
जिन्होंने घर छोड़ा जिन्होंने दर छोड़ा,
उनके घर (वतन) दिये जलाये जा,
कदम-कदम........................................(२)

जिनको आजादी जान से ज्यादा प्यारी थी,
जिनके बलिदानों से प्रतन्त्रता हारी थी,
उनकी गाथा गानों को,
बलिदानी कीमत बताने को,
नव-नव गीत बनाये जा,
कदम-कदम........................................(३)

जियें खातिर माटी के जो,
माटी की खातिर मिट गये जो,
थे सच्चे सपूत माटी के वो,
उनको श्रद्धा अपर्ण को,
उनको शीश नवायें जा,
कदम-कदम........................................(४)

है नाम पाक जिसका,
निय्यत जिसकी है पाक नहीं,
आतंक का संरक्षक जो,
जिसको पैंसठ-इक्यहत्तर याद नहीं,
उसकी नापाक हरकत मिटाने को,
उस पाक को पाक सबक सिखाने को,
क्रान्ति गीत गाये जा,
कदम-कदम.…….................................(५)

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

अग्निकर्मी रक्षा मंत्रालय दिनाँक : ०८-०७-२०१६

सैन्यकर्मी है हम मंत्रालय रक्षा में अग्नि सुरक्षा के,
भारत की सेनाओं की संपदा व मानवीय अग्नि रक्षा के,
कर्तव्यपरायणता में काम नहीं सेना की किसी कोरों से,
फिर भी मात खा गये हम भारतीय गोरों से,
बावर्दी है हम सेना के हर कर्मी की भाँति,
सेना ही हमें सैल्यूट और ड्रिल सिखाती,
(जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक)
अग्निसुरक्षा खातिर सेना साथ कदम से कदम मिलाती,
फिर भी हर कर्मचारी मायूसी में रहता है,
उत्तर में हर स्तर पर दोहरापन सहता है,
कर्मक्षेत्र में कर्मकारी बावर्दी कहलाता है,
वारी आती है जब लाभान्वित हो पाने की,
किसी कदम पर अधिकारों में सक्षम हो जाने की,
वर्दी वाला चेहरा फिर सिविलियन कहलाता है,
नवप्रशिक्षण से पदुन्नति शिक्षण तक हर कोर्स में,
लिया खंगाल सब सिलेबस, मिले सूत्र भौतिक,रसायन,गणित हर सोर्स में,
वृक्ष की जड़ से पत्ती,हर शाखा को वृक्ष से जाना है,
फिर क्यों अग्निरक्षा में उच्च को टेक्निकल (डिग्री को इंजीनियर)  को निम्न को नोटैक्निकल माना है,
बन सेना का अंगी एक दिन, ख़ुशी छायी थी भारी,
क्रमबद्ध था अब तक सेना में (किसी स्तर पर)परिवारी,
"नादान" को कहाँ मालूम उस दिन खुद से छला गया,
जिस वर्दी को पूजन माना,उस पर सिविलियन लिखा गया,

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

ईद दिनाँक - ०७ मई २०१६

आया ईद का त्यौहार आओ सब मिल इसे मनायें,
जिनसे रूठे है कल-परसों से उनको भी गले लगायें।।

ईद त्यौहार है इंसानियत और परस्पर सौहार्द का,
पड़ौसी हिन्दू है तो क्या, उसको भी ईदी दे आयें।।
आया ईद का....…..…......…..........................।।१।।

इरफ़ान भी याद दिलाता है सच्ची कुर्बानी के बाबत,
सबसे प्यारी है नफ़रत मुझे, आज उसकी कुर्बानी दे आयें।।
आया ईद का....…..…......…..........................।।२।।

अर्द्धनग्न बैठा है चौराहे पर तरसों से वो मजलूम,
चल उठ आज उसको भी नई लिबास पहना आयें।।
आया ईद का....…..…......…..........................।।३।।

मुफ़लिसी में है एक भूखा वो यार भी तेरा,
मज़हबी गैर से क्या, इंसानियत से उसको खाना खिलायें।।
आया ईद का....…..…......…..........................।।४।।

लिखने को तो लिख डालूँ ईद कैसे-कैसे मनायें,
सब समझदार है सिर्फ मै "नादान" शेष क्या समझायें।।
आया ईद का....…..…......…..........................।।५।।





शुक्रवार, 3 जून 2016

शीर्षक - दीवाना कवि नित्यानन्द जी के आदेश पर 03 जून 2016

मुझे मेरे जज्बात ने जीना सिखा दिया,
ठोकरों ने मुझे जहाँ की चलना सिखा दिखा,
दिया जो ज्ञान मात-पिता ने जन्म माटी के कृतार्थ का,
देश भक्ति आ गयी ऐसी रगों में दीवाना बना दिया,
दुनियाँ ने गए गीत प्यार व वफ़ा के,
कवियों ने भी जज्बात उकेरे कलम से जवाँ के,
दिलों में मोहब्बत की ऐसी खायी बनायीं वीर रसियों ने,
देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ानें का दीवाना बना दिया,
सत्य और अनुशासन की बन्ध डोर से,
जीवन को चलाने जो चला उस छोर इस छोर से,
सत्ता के लोभियों ने खून से खून पर नफरत का रंग चढ़ा दिया,
"नादान" ने आईना दिखाने को कलम का दीवाना बना लिया।


सोमवार, 25 अप्रैल 2016

सुन्दरता को देखकर मन की आकांक्षा दिनाँक 26 अप्रैल 2016

तुम खुशबू हो या परी हो,
मेरे दिल की फूल झड़ी हो,
मै गागर हूँ शून्य रिक्त,
तुम सागर सी भरी हो।।

तुम प्यार की मूरत हो,
मेरे सपनों की सूरत हो,
देखकर जिसे प्रफुल्लित हो जाऊं,
वो हँसी मूरत हो।।

ख्यालों में लेकर जब बैठूँ,
मै कलम लिखने को,
"नादान" को मिले शब्दों की,
तुम पावन कविता हो।।

जब से देखा है तुमको,
सब निर्झर लगता है,
आ जाओ जीवन में,
तो सुहाना सावन हो।।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

शिक्षा जे0एन0यू0 प्रकरण 16 फरवरी2016

हर कोई मस्जिद में बैठा,इमाम नहीं हो सकता,
जिसका ईमान हो गिरा,वो मुसलमान नहीं हो सकता।
तिलक लगाकर पूजा करता मंदिर में,जरूरी नहीं पुजारी हो,
जो हत्यारा हो मानवता का,वो इंसान नहीं हो सकता।।

जो भाव में भी ताव दे और सीख दे हर बात में,
संस्कारों की बात करे और इज्जत नीलाम करे बाजार में।
धर्म ज्ञान को सामने रखकर, अधर्मी कर्म करता हो,
जो जान ना पायें मर्म इंसा का, वो विद्वानी नहीं हो सकता।।

प्रहरी हो जो देश के,अलग - अलग भेष में,
जान हथेली पर रखकर, हरदम चलते जोश में।
उनकी करनी को न्याय पूर्ति करने को स्वार्थ की खातिर तौल दे,
पहनकर चौला भारती का बोलो जो दुश्मन की भाषा वो देशभक्त नहीं हो सकता।।

कैसे कोई ज्ञान केंद्र में विद्रोह की भाषा बोल गया,
हो सकता है राजनीति के समर शेष में शक्ति तुला को तौल गया।
जरूरी नहीं जो उतारे जो चीर को वही दुःशासन हो,
कदम है जिसके वह बढ़ चले आँचल के उतरन को उसका सत्कार नहीं हो सकता।।

बुधवार, 27 जनवरी 2016

नववर्ष की बेला 01 जनवरी 2016

शुभप्रभात शुभदिवस शुभनववर्ष

बेला है नववर्ष की चलो ख़ुशी मनाये,
ध्येय धरे हम नेह की मंगल कामना गाये||

हो ऐसा ये वर्ष हमारा,मानव जाति प्रफुल्लित हो,
भारत बनें सिरमौर विश्व का, चहु ओर ख्याति छाये||
बेला है नववर्ष की चलो....................||1||

युवा चले सतकर्मो की ओर, वर्द्ध धर्म मार्ग दिखलायें,
शिशु हो जायें संस्कारी,ऐसी शिक्षा नीति अपनाये||
बेला है नववर्ष की चलो....................||2||

विज्ञानी नित करें चमत्कार,दशों दिशाएँ चकराये,
रक्षा,चिकत्सा,भरण-पोषण,सब पूर्ण हो जाएँ।।
बेला है नववर्ष की चलो....................||3||

स्पर्धी ऐसे हो क्रीडभारती,नित नये आयाम बनायें,
पछाड़ रूस,चीन को,हर खेल में ओलम्पियन बन जायें||
बेला है नववर्ष की चलो....................||4||

जीवन शैली हो धर्म हमारा,यह सब जन जायें,
आर्यन बन सब मानव सत्कर्मो में ढल जाये।।
बेला है नववर्ष की चलो....................||5||

कल्पना कर रहा "नादान" काश ऐसी छवि बन जायें,
हो जायें स्वपन सारे साकार,हम फिर विश्व गुरु कहलायें||
बेला है नववर्ष की चलो....................||6||

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पुष्पेन्द्र सिँह मलिक "नादान"