सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

पंक्तिया

रीत पुरानी प्रीत नयी लाया हूँ,
प्रेम के परिवेश का दीप जलाने आया हूँ,

मै समझा हूँ तुम्हे समझाने आया हूँ,
राजनीति के पुरोधों से तुम्हे जगाने आया हूँ,

भाई से भाई लड़ाने ये धर्म परिभाषा गढ़ते है,
मतलब खातिर अपने ये विद्वेष भाषा पढ़ते है,

मानवता के हत्यारे मानव को देते है सन्देश,
रंग एक है खून का खून में है करते विभेद,

धन और आज के रिश्ते दिनाँक ३१ अक्टूबर २०१६

धन के परदे है, समाज के नयन दरम्यां,
रिश्ते खून के हो या विश्वास के,
निभाये जाते है,नयनों में बाकी,शर्म-ओं-हया।।

रिश्तों की पूँजी चल रही मतलबी फसानों में,
आत्मीयता खत्म हुयी, अपनों में,
वास कर गया विष विश्वास के दरम्यां ।।

महँगी हुयी यारी, बढ़ रही प्यार की बीमारी,
वादों का खून हुआ, वफ़ा आज हारी,
चरित्र हनन है जारी, क्षणिक सुख के दरम्यां।।

इंसां इंसां का दुश्मन हुआ चंद सिक्कों के लिये,
प्यार सजता है जिस्म की लोलुपता लिये,
प्यार नीलाम हुआ रिश्तों का, नोटों के दरम्यां।।

जालिम धन बल सहारे मौज मनाता रहा कही,
बहन तकती रही रास्ता भाई की आस में,
उपहार बना व्यवहार, रस्म अदायगी दरम्यां।।