रविवार, 17 अगस्त 2014

गद्दार १७ अगस्त २०१४

यह पंक्तियां मैने कल जब समाचार पत्र मे मेरठ से आई.एस.आई एजेंट आसिफ अली के पकडे जाने के साथ जब सेना के दो अधिकारी के भी संलिप्त होने कि खबर छपी तो मन बहुत व्यथित हुआ और जो महसूस हुआ वो उद्गार मैंने पंक्तिबद्ध करने कि कोशिश की है :-

कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

इतिहास उठा लो महाभारत का,
चक्रवर्ती सम्राट हुए जो,
उनकी गाथा गौरव का,
खेल जुआ अर्धनग्न नारी करवा ली,
वो भी अपनो के हाथों लाचार हुये,
वो हारे जरूर शकुनि की चालों से,
वो भी हुए बरबाद भाई के हाथों,
अपनो कि गद्दारी से लाचार हुये।
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

अब देखों गाथा पृथ्वीराज चौहान की,
दिल्ली के हार-जीत के सुल्तान की,
नारी के प्यार में विवश हुआ जो,
भोग विलास में व्यस्त हुआ वो,
हारा गौरी के हाथों चौहान,
हाथ डाल हथियार दिये,
मान गया,मान लिया जयचन्द ने,
कि गद्दारी कैसे-कैसे व्यभिचार हुये।
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

आओ चल देखें अब,
झाँसी के दरबारों को,
रानी थी वो वीरांगना थी,
मर्द  से बडी मर्दानी वो,
दिया मुँह तोड़ उत्तर उसने,
जब डलहौजी हर्षाया था,
लिया संभाल मोर्चा और,
किले में पैठ किया,
हार गयी अपनों से ही,
जब दिया फाटक खोल अपनो ने,
बिना किये रण अपनो ने,
ऐसा घातक वार दिये,
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

ये धरती है शूरवीरों की,
चन्द्रशेखर जैसे हीरो की,
आजाद है,आजाद मरेगें,
ऐसा कह आजाद गये,
गोली खायी नहीं अंग्रेजों से,
अपने ही हाथों शहीद हुये,
पकड़ नही सकते थे फिरंगी,
अपनो कि गद्दारी से लाचार हुये,
खुद कि सेवा खुद कर ली,
और फिर प्राण त्याग दिये,
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।

भारत का आकंठ जब भी डूबा,
डूबा आस्तीन के साँपों से,
रावण मरा नही राम से,
हार गया विभीषण के घातों से,
दुश्मन तो प्रत्यक्ष दिखता है,
हाथों में हथियार लिये,
देशद्रोही है वो जो,
जिनके आंतकी विचार हुये,
संभलकर रहना घाती पीछे है,
ये जो अपने ही गद्दार हुये।
कौन कहता है नीति थी दुश्मन कि,
जिसके हम शिकार हुये।
हम हुये बरबाद अपनों के हाथों,
गद्दारों से लाचार हुये।।