मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

आज के समय का वातावरण- व्यवहार इन्सान का दिनाँक २९ दिसम्बर २०२० दिन - मंगलवार

सच को सच कहना जैसे गुनाह हो गया,
देकर सर्वस्व जैसे सज़ावार हो गया,
कहा जिसने भी सच को बहुत दूर बहुत दूर...यारा बहुत बहुत मजबूर हो गया ।।

अदब का लिबास है उनकी बातों के शरीर पर,
हँसी है लपेटी कपट को शमशीर कर,
सत्य का पुरोधा खड़ा अकेला रह गया।।

करते बात पीठ पीछे जो बड़े होशियार हो गये,
लेकर चले जो झूठ का सहारा सामाजिक यार हो गये,
सच बोलकर "नादान" मगरूर हो गया ।।

छिछली चुनी चाहें राह, जीतकर वो तन गया,
आगे बढ़ जो चला पथ पुरोधा बन गया,
मतलब निकाल जो गया परवाना बन गया ।।

मतलबी फ़साने हल करने को,
तू भी पाला बदल लेता "नादान"
जो भी पीर बना वो बेगाना हो गया ।।







सोमवार, 28 दिसंबर 2020

वर्तमान में मनुष्य दिनाँक २९ दिसम्बर २०२० दिन मंगलवार

 नहीं अब मूल्यों का मूल्य सब बेकार हुये,
धरनि, धरन,नभ,पित्र, पिता सब के सब,
पालक जो, सब के सब बौने,नव नव तारणहार हुये,
भले मनुज जो कदम बढ़ाये,कर्महीन रोड़ा अटकाये,
गिनती होती जिनकी धिक्कारों में वो सब नम्बरदार हुये ।।

अचल कुल घालक है जो पालनहार वही बनायें,
जिन सर गठरी पाप धरि, उन पर ही है सिरमौर सजाये,
पाप पुण्य के वाचक बन खेल शतरंज का सजा रहे,
बाजी रखी निज हाथों में वही कर्णाधार बनायें ।।

भोला सत्य सिसक रहा है चमचों के व्यवहारों से,
काँखति हँसी झूठी बाते अच्छी है सच्ची-मुच्ची आँहों से,
सत्य हारता आज झूठ धार एक-एक कतार से,
खड़ा अकेला सोच रहा कैसे रे आधार बनाये ।।

जीवन मूल्य तुला है "नादान" उस प्रभ की कृपा पर,
किसको फल है किसको मल है गुणन ये उसका पल पल है,
राजा से रंक बने बने रंक से राजा जिनका चलता धेला है,
जिसकी करनी उसी को भरनी तू क्यों रोता चक्षु मल मल है ।।
                     "  नादान"
              

मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

अंश मेरी किस्मत से

नजर न लगे इस खूबसूरती को,
जीवन का यौवन छलकता रहे,
बिखेर रही जो रंग जीवन की पृष्ठभूमि पर,
लम्हों की कहानी सदियों तक बरकरार रहे,
मेरी किस्मत का किस्सा खत्म है,
तेरे दर की राह के पहले मोड़ पर,
मैं खाली हूँ हर तरह प्रारबद्ध से,
प्रारबद्ध से ही तेरी हस्ती में है चार चाँद लग रहे,
कदम दो कदम जो साथ मिले,
मन मिले हुये रास्ते छिलछले,
मेरी चोट है मेरी खोट से,
तू क्यों लगाये फिर भी लगाये मरहम,
जिन्दगी रहे सलामत ज़िन्दगी भर,
जिन्दगी मन सहलाये जिन्दगी के वास्ते ।।
      

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

दशहरा दिन रविवार दिनाँक २५ अक्टूबर २०२०

मन रखकर पाप पुण्य का हर्ष मनाते हो,

एक रावण को मारने हर वर्ष रावण सजाते हो,

राम भजो तो राम आचरण ध्यान रखो,

मन मे बैठा रावण घर से तुम भी बाहर करो,

दश शीश है दश दिशायें चहुँ ओर  रावण की गर्जनाये,

शीश धरो ईश से अपने ही भीत से कर वज्र आकांक्षायें,

घर घर रावण है अपने घर बहुत से रावण है,

इस बार प्रण है बाहर निज घर से एक रावण है,

दशमी है विजय उत्सव की राम धीर वीर वर की,

दश शीश गिरा ईश बने पूजित मर्यादित कोशलाधीश की,

एक रावण बाहर कर मन अन्दर राम धरे,

प्रण धर काज करे राम राज्य स्वप्न साकार करे ।।

रविवार, 19 अप्रैल 2020

प्रकृति शिव है दिनाँक :- २० अप्रैल २०२०

सोच में मोच लगी,
दिमाग मे उठा कोहरा घना,
अहम का वहम पाल,
रावण विद्वान से हैवान बना,

हर शख्स में मैं है आज,
प्रकृति शिव है शिव ही सत्य है,
प्रकृति को बौना कर,
शून्य का सजाया ताज,

शून्य का नगण्य समझा मान,
शून्य की है अपनी आन,
कुछ नही कुछ में शून्य,
संग लगे अंग दस गुना तनती तान,

रोग का संयोग बन,
शून्य ने  दिखाया रंग,
प्रकृति ने इंसा को समझाया,
तू नही मैं हूँ अब भी समझे हर जन,

प्रकृति के नियम अटल है,
सत्य सत्ता की शरण लग,
इंसा समझ प्रकृति के खेल को,
शिव का दण्ड और प्रेम निश्छल है ।।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कोरोना वैश्विक संक्रमण दिनाँक १५ अप्रैल २०२०

सब शान्त है, सभी अशान्त है,ये कैसा द्वन्द्व है ? ।
प्रकृति का रौद्र रूप है अथवा,
मानव द्वारा विकसित कुपित कोप है,
कौन है नायक इसका, कोरोना है अथवा महायुद्ध है 
अर्थ के तन्त्र में विकसित चलित शीत युद्ध का फलस्वरूप है,
साम्राज्यवाद की अतिवादिता का मौन रूप है,
ये कैसा योद्धा है? अदृश्य है जो परमवीर है,
मुँह छिपाता जिससे हर शूरवीर है,
ये कैसा विषाणु है, नाम जिसका कोरोना है,
सब ओर त्राहिमाम है, दुःखी हर कोना- कोना है,
जिनफिंग की सौगात है ये पूरब का बेटा है,
बरपाने को कहर आगोश में अपनी, 
उसने दुनिया को समेटा है,
फिर भी कुछ साम्राज्य अछूते थे,
नागरिक भी उनके सीधे और सच्चे थे,
लेकिन उनमें एक वर्ग था आतातायी,
उसको ना बचने-बचाने को, कोई सीख सुहाई,
खुद तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी साथ लेकर डूबेंगे,
उक्ति को पूरा करने की जैसे कसम है उन्होंने खाई,
मेरे देश का पूरे प्रदेश का है बुरा हाल किया,
जन-जन में विषाणु भरने का पूरा पूरा इंतजाम किया,
फिर भी धर्मानुयायियो ने अपने धर्म को पूर्ण अंजाम दिया,
विषधर जन का विष हरने को,जन-मन की पीर  हरने को,
राज-काज के प्रधान सेवक से इकाई के प्रथम सेवक तक, 
सभी ने अपने-अपने कर्म को पूर्ण-पूर्ण अंजाम दिया,
किसी ने तन से किसी ने धन से सब ने मिलकर,
मन से अपने हिस्से की जैसे सेवा की,
हो सकता है निपुण हो कर्म-धर्म-मर्म में विचारों से,
कम न समझना अन्य को ओर भी दक्ष है आचारों में,
"नादान" भी ऐसे में कहाँ था अनजान,
अपने मन कर्म वचन से उसने भी पूर्ण दिया अंजाम, 
कोरोना को हराने को अपने हिस्से का पयाम दिया,
ना किया दिखावा जो बन सके आयाम दिया,
तू भी न कर दिखावा, परोक्ष कर्म है भारी,
अनुशासित कर्म कर, अनुशासित कर्म है भारी,
कोरोना क्या बचेगा अनुशासन के योग से दुनिया है हारी ।।